कांग्रेस ने PM Cares Fund में चीनी कंपनियों के चंदे और अधूरी माउंटेन स्ट्राइक कोर पर उठाए सवाल

India-China: कांग्रेस महासचिव (संचार), जयराम रमेश ने केंद्र सरकार के समक्ष सवालों की झड़ी लगा दी है। उन्होंने चीन को लेकर 2013 में नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए एक बयान कि ‘समस्या सीमा पर नहीं, समस्या दिल्ली में है’ का हवाला दिया है…
भारत-चीन सीमा पर अरुणाचल प्रदेश के तवांग में दोनों देशों (India-China) के सैनिकों के बीच हुई झड़प को लेकर कांग्रेस पार्टी, केंद्र सरकार पर हमलावर है। कांग्रेस, संसद में इस मुद्दे पर चर्चा कराने के लिए जोर दे रही है। हालांकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, तवांग मामले पर दोनों सदनों में बयान दे चुके हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी व दूसरे कई दल उससे संतुष्ट नहीं हैं। सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने केंद्र पर सदन में न बोलने देने का आरोप लगाया है। पार्टी महासचिव (संचार), जयराम रमेश ने केंद्र सरकार के समक्ष सवालों की झड़ी लगा दी है। उन्होंने चीन को लेकर 2013 में नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए एक बयान कि ‘समस्या सीमा पर नहीं, समस्या दिल्ली में है’ का हवाला दिया है। रमेश ने पूछा, 16 चरणों की बातचीत के बावजूद डेपसांग में चीन, 18 किलोमीटर भीतर बैठा है। 2013 में कैबिनेट द्वारा स्वीकृत ‘माउंटेन स्ट्राइक कोर’ योजना अधर में क्यों लटकी है।
किस अध्ययन का परिणाम है चीन की नई आक्रामकता
जयराम रमेश ने 17 और 18 दिसंबर को जारी अपने दो बयानों में कहा, कुछ समय पहले आपने (पीएम नरेंद्र मोदी) चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अपने भाईचारे और आत्मीयता का बखान किया था। अपने संबंधों को ‘प्लस वन’ के रूप में उद्घाटित किया था। आपने कहा था कि शी ने अध्ययन करके रखा था, आखिर मोदी चीज क्या है। क्या चीन की नई आक्रामकता उसी गहन अध्ययन का परिणाम है। या ये भी हो सकता है, जैसा आपने 2013 में कहा था, ‘समस्या सीमा पर नहीं, समस्या दिल्ली में है’। जयराम रमेश ने पीएम मोदी से कई सवाल पूछे हैं। 20 जून, 2020 को आपने ऐसा क्यों कहा कि पूर्वी लद्दाख में भारतीय क्षेत्र में चीन की ओर से कोई घुसपैठ नहीं हुई है। आपने चीनियों को हमारे सैनिकों को पूर्वी लद्दाख में हजारों वर्ग किलोमीटर तक पहुंचने से रोकने की अनुमति क्यों दी, जहां हम मई 2020 से पहले नियमित रूप से गश्त कर रहे थे।
क्यों छोड़ दी ‘माउंटेन स्ट्राइक कोर’ योजना?
कांग्रेस नेता ने पूछा, आपने ‘माउंटेन स्ट्राइक कोर’ की स्थापना के लिए 17 जुलाई 2013 को कैबिनेट द्वारा स्वीकृत योजना को क्यों छोड़ दिया। आपने चीनी कंपनियों को पीएम केयर्स फंड में योगदान की अनुमति क्यों दी है। आपने पिछले दो वर्षों में चीन से आयात को रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ने की अनुमति क्यों दी है। आप इस बात पर जोर क्यों दे रहे हैं कि सीमा की स्थिति और चीन से हमारे सामने आने वाली चुनौतियों पर संसद में बहस नहीं होनी चाहिए। आपने शीर्ष चीनी नेतृत्व से अभूतपूर्व 18 बार मुलाकात की है और हाल ही में बाली में शी जिनपिंग से हाथ मिलाया है। इसके तुरंत बाद चीन ने तवांग में घुसपैठ शुरू कर दी और सीमा की स्थिति में एकतरफा बदलाव करना जारी रखा। आप देश को भरोसे में क्यों नहीं लेते। दोनों देशों के सैनिकों को अपनी मूल चौकियों पर वापस भेजने की 2 साल की प्रक्रिया के बीच चीन को ऐसा दुस्साहस करने का हौसला कैसे हुआ कि वो तवांग के यांग्त्से क्षेत्र में भारतीय चौकी पर कब्जा करने का प्रयास करे।
समदोरंग चू टकराव के बाद भारत का दबदबा
बतौर जयराम रमेश, प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा वर्ष 1986 में समदोरंग चू में टकराव के पश्चात यहां मजबूती के साथ सैन्य बलों की तैनाती की गई थी। भारत का उस क्षेत्र में लगातार पूरा दबदबा रहा है। अब वहां एक नया फ्रंट खोलने का साहस चीन को कैसे हुआ। ईस्टर्न क्षेत्र में चीन द्वारा बार-बार घुसपैठ की जा रही है। पूर्ववर्ती सरकारों में इतना आत्मविश्वास था कि वे वर्ष 1965, 1971 और कारगिल 1999 के दौरान पत्रकारों और सांसदों को वास्तविक स्थिति से अवगत कराने के लिए मौके पर ले जा सके। यहां तक कि डोकलाम मुद्दे पर भी रक्षा मामलों संबंधी स्थाई संसदीय समिति में चर्चा हुई थी। तवांग मामले में प्रधानमंत्री देश के लोगों से क्या छुपा रहे हैं। वे सदन में चर्चा से क्यों भाग रहे हैं। डेपसांग में 18 किलोमीटर अंदर आकर चीन बैठा है। सैंकड़ों किलोमीटर वाले सामरिक महत्व के इस क्षेत्र में भारतीय गश्ती दल, पेट्रोलिंग करने में असमर्थ है। भारतीय वायु सेना के प्रमुख ने ऑन रिकॉर्ड ये बात कही है कि 42 स्क्वाड्रन की अपेक्षित युद्धक क्षमता की तुलना में वर्तमान में 12 स्क्वाड्रन की कमी है। यूपीए सरकार ने 6 स्कॉर्पिन पनडुब्बियों को खरीदने के आदेश दिए थे, लेकिन 6 और पनडुब्बियां खरीदने के लिए प्रस्तावित परियोजना बार-बार विलम्ब का सामना करना पड़ रहा है। देश इन सवालों का जवाब जानना चाहता है।
देश को बीस साल बाद क्यों मिल सका सीडीएस का पद
तीनों सेनाओं के बीच बेहतर तालमेल और मौजूदा संसाधनों का पूर्ण उपयोग, इसके लिए कारगिल समीक्षा समिति (केआरसी) ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ ‘सीडीएस’ के पद सृजित करने की जरूरत बताई थी। इस कमेटी का गठन, कारगिल युद्ध के बाद हुआ था। देश को पहला सीडीएस (स्व: जनरल बिपिन रावत) मिलने में लगभग दो दशक लग गए। देश के रक्षा बजट में भी तेज गति से इजाफा हो रहा है। कारगिल युद्ध के दौरान सैन्य खर्च 13.90 अरब डॉलर था। साल 2021-22 में सैन्य बजट 49.6 अरब डॉलर हो चुका है। ‘आक्रमण ही सर्वश्रेष्ठ बचाव है’ इस सिद्धांत के साथ 2014 में मेजर जनरल रेमंड जोसेफ नोरोन्हा ने नव-स्वीकृत 17वीं माउंटेन स्ट्राइक कोर की स्थापना की थी। खासतौर पर चीन से लगती सीमा की सुरक्षा के लिए लगभग 90,000 जवानों को इस कोर का हिस्सा बनाने की योजना बनी थी। इसके कई डिवीजन तैयार करने की बात कही गई थी। सत्रहवीं वाहिनी, जिसे ब्रह्मास्त्र कोर भी कहा जाता है, उसमें 16,000 जवानों वाली पैदल सेना की एक डिवीजन है। पठानकोट में प्रस्तावित दूसरे डिवीजन का काम अभी सुस्त है। ‘इंटीग्रेटेड बैटेल ग्रुप’ को सत्रहवीं वाहिनी के जवानों से तैयार किया गया है। स्ट्राइक कोर की सुस्त गति के लिए लगभग 65,000 करोड़ रुपये का भारी खर्च भी जिम्मेदार रहा है।