पिछड़ों के ‘सूरमा’ कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव का निधन

पूर्व केंद्रीय रक्षा मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का 82 साल की उम्र में निधन हो गया है.
मुलायम सिंह यादव पिछले कई दिनों से गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल के आईसीयू में भर्ती थे. वे पिछले कई सालों से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से प्रभावित थे, जिनकी वजह से वह सक्रिय राजनीति से भी दूर थे. लेकिन करीब छह दशक तक उत्तर प्रदेश और देश की राजनीति में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद वो राजनीति पर अपनी गहरी छाप छोड़ गए हैं.
क्या कांग्रेस, क्या बीजेपी, क्या बसपा और क्या लेफ्ट, उनके निधन पर सभी पार्टियां शोक मना रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई ट्वीटों में यादव को श्रद्धांजलि दी है. मोदी ने यादव को आपातकाल के दौरान लोकतंत्र के एक प्रमुख सिपाही के रूप में याद किया.
कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यादव के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि “समाजवादी विचारों की एक मुखर आवाज़ आज मौन हो गई”. सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने यादव को पिछड़ों और अधिकारहीन लोगों के हितों का “सूरमा” बताया और यह भी कहा कि यादव “धार्मिक कट्टरता” के खिलाफ भी दृढ़तापूर्वक लड़ते रहे.
पहलवान से रक्षा मंत्री तक
यादव का जन्म भारत की आजादी से छह साल पहले 22 नवंबर 1939 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में हुआ था. उत्तर प्रदेश को उस समय यूनाइटेड प्रॉविन्सेस के नाम से जाना जाता था.
पेशे से पहलवान और फिर अध्यापक रहे यादव ने राम मनोहर लोहिया और राज नारायण जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के नेतृत्व में राजनीति में अपना शुरुआती सफर तय किया. वे 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गए और फिर नौ बार सदन के सदस्य रहे.
1989 में वे जनता दल के नेता के रूप में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. यह पहली बार था जब कांग्रेस प्रदेश में सत्ता से बाहर हुई थी. उत्तर प्रदेश में यह कांग्रेस के लिए सत्ता से वनवास जैसा साबित हुआ. उसके बाद कांग्रेस आज तक उत्तर प्रदेश में सरकार नहीं बना पाई है.
लेकिन यादव यहां से राजनीति में ऊपर की सीढ़ियां ही चढ़ते गए. 1990 में जब चंद्र शेखर ने जनता दल (समाजवादी) पार्टी बनाई तो यादव उसमें शामिल हो कर मुख्यमंत्री बने रहे. 1992 में उन्होंने अपनी ही समाजवादी पार्टी की स्थापना की और 1993 में फिर से मुख्यमंत्री बन गए.
2003 में वो तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. उस समय वो लोक सभा के सदस्य थे और मुख्यमंत्री बने रहने के लिए उन्होंने जनवरी 2004 में गुनौर विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव लड़ा. उस समय प्रदेश में उनकी और उनकी पार्टी इतनी लोकप्रिय हो चुकी थी कि उन्होंने उपचुनाव में करीब 94 प्रतिशत मत हासिल किए और रिकॉर्ड जीत दर्ज की.
उत्तर प्रदेश की राजनीति के साथ साथ ही यादव का केंद्र की राजनीति में भी दखल रहा. उन्होंने लोकसभा चुनावों में भी सात बार जीत दर्ज की. 1996 में जब संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी तो उनकी पार्टी भी मोर्चा का हिस्सा थी. उन्हें उस सरकार में रक्षा मंत्री बनाया गया.
लगभग सभी दलों में इतनी इज्जत पाने के बावजूद यादव अपनी राजनीतिक यात्रा में कई विवादों में भी घिरे रहे.




