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भाजपा-मोदी सरकार की नाकाम कश्मीर नीति ?

कश्मीर में हालत बहुत खराब है। कश्मीरी पंडितों की कोई सुरक्षा नहीं है। उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है

कश्मीर में हालत बहुत खराब है। कश्मीरी पंडितों की कोई सुरक्षा नहीं है। उन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा है। ये अल्फाज किसी विपक्षी दल के नेता के होते तो उसे राजनीति कह सकते थे। लेकिन ये उस महिला के शब्द हैं, जिसके पति ने उससे कहा था कि आज वो दफ्तर से जल्दी घर लौटेगा, क्योंकि उन्हें किसी पारिवारिक कार्यक्रम में जाना था। मगर महज 10 मिनट में सारा दृश्य बदल गया। उस दफ्तर में कुछ लोग घुसे, पूछा कि राहुल भट्ट कौन है और उन पर गोलियां बरसा दी गईं। राहुल भट्ट की पत्नी मीनाक्षी ने कहा है कि घाटी में कश्मीरी पंडित सुरक्षित नहीं हैं। कल राहुल की बारी थी, अब किसी और की बारी होगी। अगर सरकार में बैठे जिम्मेदार लोगों में इतनी संवेदनशीलता बची है कि वे आम जनता के दुख और तकलीफों को महसूस कर सकें, तो उन्हें राहुल भट्ट के परिजनों और घाटी में रह रहे बाकी कश्मीरी पंडितों की आवाज सुननी चाहिए।

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाएं फिर बढ़ने लगी हैं और आतंकी एक बार फिर कश्मीरी पंडितों को निशाने पर ले रहे हैं। पिछले गुरुवार को ही आतंकियों ने बडगाम के चडूरा में तहसील परिसर में घुसकर कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या कर दी थी। राहुल भट्ट सरकारी कर्मचारी थे। उन्हें अपनी सुरक्षा का डर सता रहा था और इसलिए वो अपना तबादला करवाना चाहते थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और राहुल को जान से हाथ धोना पड़ा। उनकी तरह बहुत से कश्मीरी पंडित इस वक्त खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और सरकार से अपने लिए आश्वासन चाहते हैं। मगर सरकार का रवैया देखकर लगता नहीं कि वो कोई निर्णायक कदम उठाएगी। भाजपा का ध्यान एक बार फिर जम्मू-कश्मीर की सत्ता पर है। हाल ही में परिसीमन आयोग ने अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी है और अनुमान है कि अपने मन मुताबिक सीटों का निर्धारण होने के बाद अब भाजपा वहां चुनाव की घोषणा करवा सकती है।

5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 वापस लेने का ऐतिहासिक फैसला भाजपा सरकार ने लिया था। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग किया गया और दोनों को दो केंद्र शासित राज्य बना दिया गया। दावा था कि इससे जम्मू-कश्मीर में शांति, स्थिरता और विकास के नए रास्ते खुलेंगे। हालांकि इसके बाद जिस तरह कई दिनों तक जम्मू-कश्मीर में मीडिया पर, इंटरनेट पर, विरोधी दलों के नेताओं की आवाजाही पर पाबंदियां लगी रहीं, उससे समझ आ गया कि सरकार खुद अपने दावों को लेकर आश्वस्त नहीं है। कश्मीर में जनजीवन सामान्य नहीं रह गया है और अब आतंकवाद के जोर पकड़ने से एक बार फिर आम लोगों के सामने सुरक्षा का सवाल खड़ा हो गया है। कश्मीरी पंडितों की घर वापसी का भी जो ऐलान मोदी सरकार करती रही है, उस पर अमल नहीं हो पाया है।

हाल ही में द कश्मीर फाइल्स फिल्म आई थी, जिसमें दावा किया गया कि इसमें कश्मीरी पंडितों के दर्द का सही चित्रण है। विवेक अग्निहोत्री की बनाई इस फिल्म को भाजपा ने खूब प्रचारित किया। भाजपा शासित राज्यों में इसे टैक्स फ्री किया गया। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने इस फिल्म की तारीफ की। हालांकि इस फिल्म के जरिए कश्मीर पर राजनैतिक रोटियां सेंकने की कोशिश की गई है, ये साफ नजर आता है। भाजपा 90 के दशक में कश्मीर से कश्मीरी पंडितों के पलायन और उनकी हत्याओं के लिए कांग्रेस को घेरा करती है, जबकि यह सब उस वीपी सिंह सरकार के कार्यकाल में शुरु हुआ, जिसे भाजपा का समर्थन था। अब भी भाजपा पिछले आठ सालों से सत्ता में है और इन बरसों में जम्मू-कश्मीर में भी वह गठबंधन सरकार में कुछ अर्से रही। पिछले तीन सालों से जम्मू-कश्मीर में भाजपा के नियुक्त उपराज्यपाल ही राज्य को संभाल रहे हैं। इतने वक्त में कश्मीरी पंडितों की वापसी या उन्हें सुरक्षित बसाने के लिए भाजपा ने कोई कारगर उपाय नहीं किया। बल्कि एक फिल्म के जरिए गड़े मुर्दों को उखाड़ने और पुराने जख्मों को कुरेदने का काम किया गया। नतीजा ये है कि जम्मू-कश्मीर एक बार फिर बारूदी गंध में लिपटा जा रहा है।

बहरहाल, राहुल भट्ट की हत्या ने घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों के गुस्से को भड़का दिया है। दो दिन पहले ही वहां सरकार के विरोध में प्रदर्शन हुआ और बहुत से सरकारी कर्मियों ने अपने इस्तीफे उपराज्यपाल को सौंप दिए। लोगों की ये नाराजगी भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं है। हालांकि अब भी वो सच्चाई को आंख खोलकर देखने राजी नहीं है। अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए जनता के हितों की अनदेखी भाजपा को भारी पड़ सकती है।

 

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