हत्या के 42 साल के बाद अब आरोपी जाएगा जेल, सुप्रीम कोर्ट ने पलटा हाईकोर्ट का फैसला, मामला क्या हैजानें

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आईपीसी की धारा 146 के तहत दंगा शब्द को परिभाषित किया गया है. वहीं धारा 148 के तहत अपराध घोषित किया गया है. धारा 146 के अनुसार जब भी किसी गैर-कानूनी सभा द्वारा या उसके किसी सदस्य द्वारा ऐसी सभा के सामान्य उद्देश्य के अभियोग में बल या हिंसा का प्रयोग किया जाता है तो ऐसी सभा का प्रत्येक सदस्य दंगा करने के अपराध का दोषी होता है.
कोर्ट ने आरोपी को समर्पण करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है.
नई दिल्ली:
राशन की दुकान से जबरदस्ती शक्कर और केरोसीन ले जाने के लिये वर्ष 1980 में हुई हत्या के एक मामले में 42 साल बाद अब आरोपी को जेल जाना होगा. आरोपी सुभाष उर्फ पप्पू इलाहाबाद हाईकोर्ट से हत्या के मामले में दोषमुक्त हो चुका था. उत्तर प्रदेश सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए आरोपी को 10 साल की सजा सुनाई है. आरोपी को समर्पण करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया गया है.
4 दिसंबर 1980 को फिरोजाबाद के गल्लामण्डी स्थित हरीराम के राशन की दुकान पर सुभाष, प्रमोद, मुन्नालाल के साथ कुछ अन्य आरोपी आए. इन आरोपियों ने वहां काम कर रहे कर्मचारी बंगाली पर लाठी, हॉकी स्टीक और चाकू से हमला कर दिया. इस हमले में घायल बंगाली की करीब एक माह के उपचार बाद मौत हो गयी. मौत से पूर्व दिये गये बयान के आधार पर फिरोजाबाद पुलिस ने आरोपी सुभाष, प्रमोद और मुन्नालाल को गिरफतार कर लिया. ट्रायल के बाद आगरा सेशन कोर्ट ने प्रमोद और मुन्नालाल को दोषमुक्त करते हुए केवल सुभाष को आजीवन उम्रकैद की सजा सुनाई.
34 साल के बाद हाईकोर्ट ने सुनाया था अपील पर बड़ा फैसला
आरोपी सुभाष की ओर से ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में 31 मई 1985 को अपील दायर की गयी. अपील दायर करने के करीब 34 साल बाद 30 अगस्त 2019 को हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने मृतक बंगाली के मृत्युपूर्व दिये गये बयान के आधार पर संदेह का लाभ देते हुए आरोपी सुभाष को बरी कर दिया. हाईकोर्ट के अनुसार मृतक ने आरोपी पर हॉकी स्टीक से हमला करने का बयान दिया था. जबकि पुलिस ने चाकू से हमला कर हत्या करने के आरोप में उसे गिरफतार किया था. यहां तक कि मामले में एफआईआर दर्ज कराने वाले राशन दुकान के मालिक हरी सिंह ने अपना बयान बदल दिया था .
मामले की एफआईआर राशन दुकानदार हरी सिंह की ओर से दायर करायी गयी थी. हरी सिंह की ओर से आरोपी सुभाष ने किस तरह से हमला किया इसे लेकर कोई स्पष्ट बयान नही दिया गया था, लेकिन मृतक बंगाली ने मृत्यु से पूर्व दिये बयान में आरोपी सुभाष के लिए कहा कि उसने हॉकी स्टीक से उस पर हमला किया था.
दूसरी तरफ पुलिस ने अपनी चार्जशीट में सुभाष पर ही चाकू से हमला कर हत्या करने का मुख्य आरोप तय किया था. ऐसे में सेशन कोर्ट ने जहां मृतक के बयानों को गंभीरता से लेते हुए ये माना कि घटना में सुभाष शामिल था और उसने हत्या में मुख्य भूमिका निभायी है. लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी को ये कहते दोषमुक्त कर दिया कि मृतक के बयानों में आरोपी द्वारा चाकू से हमला करने का कोई साक्ष्य नहीं है. क्योंकि मृतक के बयान सुभाष द्वारा हॉकी स्टीक से हमला करने की गवाही देते है. इसके बावजूद कि पुलिस ने आरोपी सुभाष के खून से सने कपड़े और उसकी निशानदेही पर चाकू बरामद किया था.
हाईकोर्ट के फैसले को यूपी सरकार ने दी थी चुनौती
उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर चुनौती दी. सरकार की ओर से अदालत में कहा गया कि हाईकोर्ट ने मृतक के बयानों को नजरअंदाज करते हुए गलत तरीके से आरोपी को दोषमुक्त किया है. हाईकोर्ट ने मृतक के बयानों के आधार पर आरोपी सुभाष को चाकू से हमला करना नही माना है जबकि मृतक पर हमला करते समय 5 से ज्यादा लोग थे. ऐसे में तीन आरोपियों की पहचान मृतक द्वारा भी की गयी है. तीन में से दो आरोपियों को कोर्ट पहले ही दोषमुक्त कर चुका है जबकि ये एक स्पष्ट तथ्य है कि मृतक बंगाली की मौत चाकू के हमले से घायल होने के चलते हुई है.
क्या कहा मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आईपीसी की धारा 146 के तहत दंगा शब्द को परिभाषित किया गया है. वहीं धारा 148 के तहत अपराध घोषित किया गया है. धारा 146 के अनुसार जब भी किसी गैर-कानूनी सभा द्वारा या उसके किसी सदस्य द्वारा ऐसी सभा के सामान्य उद्देश्य के अभियोग में बल या हिंसा का प्रयोग किया जाता है तो ऐसी सभा का प्रत्येक सदस्य दंगा करने के अपराध का दोषी होता है. वही उपरोक्त घटना में 5 से अधिक लोग गलत उद्ददेश्य से एकत्रित हुए और उन्होने दंगा किया है. इस दौरान हॉकी स्टीक और चाकू से हमला कर एक व्यक्ति की मौत का कारण बने है, इसलिए आरोपी आईपीसी की धारा 146 के तहत दंगा करने और धारा 148 आईपीसी के तहत अपराध का दोषी ठहराया गया था.
कोर्ट ने 10 साल और 10 हजार रूपये की सजा
सुप्रीम कोर्ट ने दंगे में शामिल होकर एक व्यक्ति की हत्या का मामला सही मानते हुए आरोपी सुभाष को आईपीसी की धारा 304, 149 और 148 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया है. कोर्ट ने आरोपी को हत्या के मामले से बरी करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को भी रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी सुभाष को 10 साल की कैद और 10 हजार रूपये के जुर्माने की सजा सुनाई है. साथ ही अदालत ने शेष बची सजा को पूर्ण करने के लिए आरोपी को समपर्ण के लिए चार सप्ताह का समय दिया है. आरोपी सुभाष को हत्या के करीब 42 साल बाद फिर से जेल जाकर अपनी सजा पूर्ण करनी होगी.