मोदी सरकार के पास गलती सुधारने का मौका

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को दिल्ली स्थित इंडिया गेट पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की होलोग्राम मूर्ति का अनावरण किया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को दिल्ली स्थित इंडिया गेट पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की होलोग्राम मूर्ति का अनावरण किया। याद रहे कि देश इस साल नेताजी की 125वीं वर्षगांठ मना रहा है और समूचे भारत के गौरव सुभाषचंद्र बोस पर अपना ठप्पा लगाने की कोशिश भाजपा कर रही है। नेताजी की मूर्ति लगाने से पहले मोदी सरकार ने इंडिया गेट पर पिछले 50 बरसों से जल रही अमर जवान ज्योति को भी हटा दिया। अब इसका विलय पास में ही बनाए गए राष्ट्रीय समर संग्रहालय में कर दिया गया है। अमर जवान ज्योति 1971 में पाकिस्तान पर जीत और इसके लिए कुर्बानी देने वाले भारतीय सैनिकों की याद में 1972 से जलती रही थी।
दुष्यंत कुमार ने कहा था कि मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। लेकिन उसका ये मतलब बिल्कुल नहीं था कि उस आग को बुझा दिया जाए जो इतिहास में दी गई कुर्बानियों की याद दिलाती है। भाजपा का मानना है कि जब लोग राष्ट्रीय समर संग्रहालय में आएंगे और वहां शहीदों के नाम पढ़ेंगे और इस ज्योति को देखेंगे तो राष्ट्र के लिए भावना जाग्रत होगी। अब पुरानी सरकारों के वक्त बने स्मारकों, संस्थानों, संग्रहालयों को बदलकर मोदीजी क्या साबित करना चाहते हैं, ये समझना कठिन नहीं है। गनीमत है कि देश का नाम और राजधानी अब भी वही है, वर्ना इसमें भी नेहरूकाल की कोई साजिश भाजपा को नजर आ सकती थी और देशद्रोह का कोई सूत्र यहां भी भाजपा के राष्ट्रवादियों को मिल ही जाता।
नेताजी की मूर्ति इंडिया गेट पर लगेगी, इस बारे में प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर बताया था कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में, इंडिया गेट पर ग्रेनाइट की बनी उनकी भव्य मूर्ति प्रतिष्ठित की जाएगी। ये प्रयास उनके लिए भारत की कृतज्ञता का एक प्रतीक होगा। इस ट्वीट से जाहिर है कि भाजपा की सोच मूर्ति से आगे बढ़ ही नहीं पा रही है। कुछ ऐसी ही राष्ट्रवादी भावना सरदार पटेल की आसमान छूती मूर्ति बनाने और अनावरण करने के वक्त फैलाई गई थी। जबकि यह देश न कभी अपने सरदार को भूला, न नेताजी को भूला। और जहां तक सवाल कृतज्ञता का है, तो क्या मोदीजी को संसद भवन परिसर में लगी नेताजी की मूर्ति कभी नजर नहीं आई, क्या उन्हें भारत के लगभग हर शहर में नेताजी के नाम पर बनी सड़कें, चौराहे, स्टेडियम, संस्थान और उनकी मूर्तियां नजर नहीं आई। ये सब भी तो देश की उनके प्रति कृतज्ञता ही है।
दरअसल भाजपा जब सत्ता में नहीं थी, तब भी उसके मन में कहीं न कहीं यह हीनभावना थी कि आजादी के लिए उसका योगदान शून्य रहा। फिर जब सत्ता में आई, तब इस हीनभावना के साथ शासन करना और कठिन हो गया, क्योंकि उत्सवधर्मी भारत में, धार्मिक पर्वों के साथ-साथ महापुरुषों की जयंतियां भी त्योहार की तरह ही मनाई जाती रही हैं। ऐसे में भाजपा जिन भी महापुरुषों के नाम लेती, सबके संबंध कहीं न कहीं से कांग्रेस से निकल ही आते। इसलिए भाजपा ने अपने तरीके से इतिहास गढ़ने की कोशिश करते हुए कुछ महापुरुषों को कांग्रेस यानी नेहरू-गांधी परिवार का पीड़ित बता दिया। इनमें भगत सिंह से लेकर सरदार पटेल और नेताजी सुभाषचंद्र बोस का नाम सबसे पहले आता है। यह बिल्कुल सही बात है कि आजादी के लिए लड़ाई के दौरान कई तरह की विचारधाराएं देश में एक साथ चल रही थीं। इन अलग-अलग विचारों के कारण भगत सिंह के गांधीजी से मतभेद थे, गांधीजी और बाबा अंबेडकर में गहरी असहमितयां थीं, नेहरूजी और गांधीजी में बहुत सी बातों पर मतभेद थे, और सुभाषचंद्र बोस की रणनीतियों पर, खासकर हिटलर के साथ उनके मिलने को लेकर गांधीजी, नेहरूजी सहमत नहीं थे।
लेकिन गहरी असहमतियों और मतभेदों के बावजूद, इनमें से किसी के बीच मनभेद कभी नहीं रहा। इन तमाम महानुभावों का एक ही लक्ष्य था भारत की आजादी और यहां के लोगों को न्याय और इसके लिए इन्होंने जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे के विचारों या फैसलों का विरोध किया, पत्र लिखकर या सामने बात करके नाराजगी जताई, लेकिन मजाल है कि एक दूसरे के लिए कभी दुर्भावना से कोई शब्द कहें हों। नेहरूजी का एक पत्र कुछ सालों से वायरल किया गया कि उन्होंने नेताजी को युद्ध अपराधी कहा। लेकिन उस पत्र में जो भाषायी और तथ्यात्मक त्रुटियां हैं, उनसे साबित हो चुका है कि ऐसा कोई पत्र नेहरूजी ने कभी लिखा ही नहीं था। लेकिन फिर भी सुभाषचंद्र बोस से नेहरूजी की नफरत साबित करने और उन्हें गलत ठहराने की कोशिश में इस पत्र को बढ़ा-चढ़ा तक प्रसारित किया गया।
ये महज एक उदाहरण है, जिससे समझा जा सकता है कि किस तरह सोशल मीडिया का सहारा लेकर एक नया इतिहास गढ़ने की कवायद देश में चल रही है। रविवार को नेताजी की मूर्ति का अनावरण करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि देश पिछली गलतियों को सुधार रहा है और ऐसा करने से कोई नहीं रोक सकता है। आ•ाादी के अमृत महोत्सव का संकल्प है कि भारत अपनी पहचान और प्रेरणाओं को पुनर्जीवित करेगा। ये दुर्भाग्य रहा कि आ•ाादी के बाद देश की संस्कृति और संस्कारों के साथ ही अनेक महान व्यक्तित्वों के योगदान को मिटाने का काम किया गया।
मोदीजी के ये शब्द फिर से इस देश को बनाने में कांग्रेस के योगदान को कम करने की कोशिश हैं। बेशक भाजपा के लिए कांग्रेस विपक्षी और विरोधी दल है, लेकिन ताकतवर विपक्ष ही गणतंत्र की असली पहचान है। भाजपा इस पहचान को क्यों मिटाना चाहती है, यह विचारणीय है। रहा सवाल पिछली गलतियों को सुधारने का, तो सरकार को सबसे पहले अपनी उन गलतियों को सुधार लेना चाहिए, जिनसे भारत की आत्मा यानी संविधान को ठेस पहुंच रही है। भारत की बहुलतावादी, उदार, धर्मनिरपेक्ष छवि को धक्का लग रहा है। अगर सरकार ने इस गलती को सुधार लिया तो गणतंत्र दिवस भी अच्छे से मन जाएगा और नेताजी के प्रति कृतज्ञता भी ज्ञापित हो जाएगी।