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वर्षों से बंद कैदियों को पूर्व नीति के तहत क्यों नहीं समय पूर्व रिहाई होनी चाहिए:सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट: शीर्ष अदालत ने कहा- वर्षों से बंद कैदियों को पूर्व नीति के तहत क्यों नहीं समय पूर्व रिहाई होनी चाहिए

नई दिल्ली

 

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली पीठ ने वर्षों से जेलों में बंद 103 कैदियों द्वारा दायर इस रिट याचिका पर यूपी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार से जानना चाहा है कि अपील लंबित होने के दौरान 20-25 वर्षों से जेलों में बंद उन कैदियों की समय पूर्व रिहाई पर क्यों नहीं पूर्व नीति(2018) के तहत विचार किया जाना चाहिए क्योंकि उस समय उनके मामलों पर विचार नहीं किया गया था। दरअसल, राज्य सरकार कैदियों के समय पूर्व रिहाई पर मई, 2021 की नीति के तहत विचार कर रही है।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली पीठ ने वर्षों से जेलों में बंद 103 कैदियों द्वारा दायर इस रिट याचिका पर यूपी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। पीठ अब दो हफ्ते के बाद इस मामले पर विचार करेगी। पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया हमारा मानना है कि ऐसे कैदियों के मामलों पर पूर्व नीति के तहत विचार किया जाना चाहिए। राज्य की अथॉरिटी ने उस समय उनके मामलों पर विचार नहीं किया तो अब अथॉरिटी द्वारा यह नहीं कहा जा सकता है कि उनके मामलों को नई नीति के तहत विचार किया जाएगा।

दरअसल, 2021 की नीति के तहत 60 वर्ष से अधिक उम्र के कैदियों के लिए ही समय पूर्व रिहाई का प्रावधान है। पीठ ने कहा कि यूपी सरकार का पक्ष आने के बाद 17 दिसंबरको आदेश पारित किया जाएगा। यूपी सरकार की ओर से पेश एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद ने नोटिस को स्वीकार किया। प्रसाद ने बताया कि 2018 की नीति के तहत समय पूर्व रिहाई कुछ चुनिदा दिनों पर ही होती है लेकिन नई नीति के तहत हर महीने की 15 तारीख को विचार किया जाता है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि एक कैदी ऐसा भी है जिसकी उम्र 87 वर्ष है। उन्होंने पीठ से उस शख्स को अंतरिम जमानत देने की गुहार लगाई। पीठ ने कहा कि अगली सुनवाई पर इस पर विचार किया जाएगा।

 

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