लोक अदालत को गुण-दोष के आधार पर फैसला करने का अधिकार नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने बृहस्पतिवार को कहा कि लोक अदालत (Lok Adalat) को यह सूचना मिलने पर कि उपस्थित पक्षों के बीच समझौता नहीं हो सकता है, ऐसी स्थिति में उसके पास गुण-दोष के आधार पर फैसला करने का अधिकार नहीं है. न्यायालय ने कहा कि समझौता या सुलह असफल रहने के बाद लोक अदालत को वह मामला उसी सामान्य अदालत को लौटाना होगा जहां से उसे यह सुलह के लिए मिला था.
नयी दिल्ली.
उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने बृहस्पतिवार को कहा कि लोक अदालत (Lok Adalat) को यह सूचना मिलने पर कि उपस्थित पक्षों के बीच समझौता नहीं हो सकता है, ऐसी स्थिति में उसके पास गुण-दोष के आधार पर फैसला करने का अधिकार नहीं है. शीर्ष न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि ‘विधिक सेवा प्राधिकरण कानून 1987 के प्रावधानों में स्पष्ट किया गया है कि लोक अदालत का अधिकार क्षेत्र विवाद की स्थिति में दोनों पक्षों के बीच समझौता या सुलह कराना है.
न्यायालय ने कहा कि समझौता या सुलह असफल रहने के बाद लोक अदालत को वह मामला उसी सामान्य अदालत को लौटाना होगा जहां से उसे यह सुलह के लिए मिला था. न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना की पीठ ने कहा, ‘यह पता चलने के बाद कि पक्षों के बीच समझौता या सुलह नहीं हो सकता है लोक अदालत के पास गुण-दोष के आधार पर मामले का फैसला करने का कोई अधिकार नहीं है.’ शीर्ष अदालत ने 2013 के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली एस्टेट अधिकारी की अपील पर यह व्यवस्था दी.
एक अन्य फैसलेे में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी सरकारी रिक्तियों के लिए अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति एक रियायत है, अधिकार नहीं है. न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत सभी सरकारी रिक्तियों के लिए अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति में सभी उम्मीदवारों को समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए, लेकिन मानदंडों को लेकर अपवाद हो सकता है.
बेंच ने कहा, ‘अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति को लेकर इस अदालत के निर्णयों के क्रम में निर्धारित कानून के अनुसार, संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत सभी सरकारी रिक्तियों में सभी उम्मीदवारों को समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए. हालांकि, एक मृत कर्मचारी के आश्रित को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की पेशकश उक्त मानदंडों में अपवाद है. अनुकंपा का आधार एक रियायत है, अधिकार नहीं.’