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नरेंद्र मोदी की ‘आतंक की सत्ता’ वाले बयान पर तालिबान ने क्या कहा?

अफ़ग़ानिस्तान का नियंत्रण अपने हाथों में लेने वाले तालिबान ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान पर सख़्त आपत्ति जताई है.

रेडियो पाकिस्तान को दिए इंटरव्यू में तालिबान के वरिष्ठ नेता शहाबुद्दीन दिलावर ने कहा कि भारत को जल्द ही पता चल जाएगा कि तालिबान अपनी सरकार सुचारू रूप से चला सकते हैं.

उन्होंने भारत को चेतावनी दी कि वो अफ़ग़ानिस्तान के आंतरिक मामलों में दख़ल न दे.

तालिबान के नेता शहाबुद्दीन दिलावर ने ये भी कहा कि पाकिस्तान उनका पड़ोसी है और मित्र देश है.

उन्होंने पाकिस्तान का इस बात के लिए शुक्रिया अदा किया कि उसने 30 लाख से अधिक अफ़ग़ान शरणार्थियों को अपने यहाँ पनाह दे रखी है.

शहाबुद्दीन दिलावर ने कहा कि वो शरणार्थियों के कल्याण के लिए पाकिस्तान की सेवाओं के लिए उसका धन्यवाद करते हैं.

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान सभी देशों के साथ पारस्परिक सम्मान पर आधारित शांतिपूर्ण संबंध चाहते हैं.

नरेंद्र मोदी ने क्या कहा था

पिछले दिनों गुजरात के सोमनाथ में कई परियोजनाओं का उद्घाटन करते हुए नरेंद्र मोदी ने आतंक की सत्ता के बारे में ज़िक्र किया था.

हालाँकि उन्होंने सीधे-सीधे तालिबान का नाम नहीं लिया था.

पीएम मोदी ने कहा था, “आतंक के बलबूते साम्राज्य खड़ा करने वाली सोच है, वो किसी कालखंड में कुछ समय के लिए भले ही हावी हो जाए, लेकिन उसका अस्तित्व कभी स्थायी नहीं होता. वो ज़्यादा दिनों तक मानवता को दबाकर नहीं रख सकता.”

अब तालिबान ने इसी बयान को आधार बनाकर अपनी टिप्पणी दी थी.

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान

तालिबान

इमेज स्रोत,WAKIL KOHSAR

15 अगस्त को तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर क़ब्ज़ा कर लिया था. तालिबान का दावा है कि अब अफ़ग़ानिस्तान पर उसका नियंत्रण है.

तालिबान के काबुल में घुसने से पहले ही तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी देश छोड़कर चले गए थे.

संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने उन्हें शरण दी हुई है.

देश के पहले उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने अपने को कार्यकारी राष्ट्रपति घोषित करते हुए तालिबान के ख़िलाफ़ संघर्ष का आह्वान किया है.

इस बीच तालिबान के सत्ता संभालते ही बड़ी संख्या में लोग अफ़ग़ानिस्तान से जा रहे हैं.

फ़िलहाल काबुल हवाई अड्डे पर अमेरिकी सैनिकों का नियंत्रण है और कई देश अफ़ग़ानिस्तान से लोगों को निकाल रहे हैं.

इसमें भारत भी है. भारत ने भी अपने नागरिकों को वहाँ से निकाला है. लेकिन माना जा रहा है कि अब भी वहाँ बड़ी संख्या में भारतीय नागरिक फँसे हुए हैं.

हालाँकि तालिबान ने लोगों को आश्वासन दिया है कि उन्हें डरने की आवश्यकता नहीं और देश छोड़ने की भी.

लेकिन गुरुवार को काबुल हवाई अड्डे पर हुए दो धमाकों में 90 से ज़्यादा लोग मारे गए हैं और बड़ी संख्या में लोग घायल हो गए हैं.

इस हमले की ज़िम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली है. इस्लामिक स्टेट ने तालिबान को अमेरिका का पिट्ठू कहकर पहले आलोचना भी की थी.

इसके बाद से तालिबान पर भी सवाल उठ रहे हैं और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन पर भी.

भारत और अफ़ग़ानिस्तान

भारत और अफ़ग़ानिस्तान के रिश्ते पिछले 20 सालों में बेहतर रहे हैं. लेकिन तालिबान के आने के बाद से इस पर ग्रहण लगता नज़र आ रहा है.

दूसरी ओर तालिबान ने पाकिस्तान को अपना दूसरा घर बताकर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं.

हालाँकि पाकिस्तान की इस बात के लिए आलोचना भी हुई है कि वो ही तालिबान की मदद कर रहा है.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने तो यहाँ तक कह दिया था कि अफ़ग़ानिस्तान ने अब ग़ुलामी की जंज़ीरें तोड़ दी हैं.

दूसरी ओर चीन ने भी तालिबान के सत्ता में आने का स्वागत ही किया है और दोस्ताना रिश्ते का संकेत दिया है.

अफ़ग़ानिस्तान को लेकर भारत की दुविधा कई तरह की है. तालिबान को मान्यता देने के ख़तरे से लेकर सुरक्षा को लेकर चिंता और साथ-साथ बड़ी रक़म वाली परियोजनाओं के भविष्य पर कशमकश.

गुरुवार को अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर भारत में सर्वदलीय बैठक भी बुलाई गई थी, जिसे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संबोधित किया.

बैठक के बाद उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति को चिंताजनक बताया और कहा कि फ़िलहाल प्राथमिकता वहाँ से लोगों को निकालने की है.

‘काबुल के कसाई’ ने भारत को दी नसीहत

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