ऑक्सीजन की उपलब्धता पर मोदी सरकार का सफेद झूठ !

लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में उत्तरदायित्व के बोध और पारदर्शिता की उज्ज्वल परम्पराओं को भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से क्षत-विक्षत करती दिखलाई देती है
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में उत्तरदायित्व के बोध और पारदर्शिता की उज्ज्वल परम्पराओं को भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से क्षत-विक्षत करती दिखलाई देती है। प्रशासन के सभी आयामों में अपने कर्तव्यों के पालन में बुरी और पूरी तरह से विफल नरेन्द्र मोदी सरकार कई विषयों पर तथा अनेक मौकों पर संसद के बाहर और भीतर झूठ बोलती आई है। तथ्यों को छिपाना या उन्हें तोड़-मरोड़कर पेश करना इस सरकार के डीएनए में शामिल है। देश के इतिहास के अनेक पक्षों पर झूठ बोलने वाले मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार न जाने कितने मंचों और अवसरों का इस्तेमाल नोटबंदी, जीएसटी, उज्ज्वला, जन-धन, स्मार्ट सिटी, गंगा की सफाई, स्टार्ट अप, स्वास्थ्य सेवाएं जैसे मुद्दों पर बेधड़क असत्य बोलती रही है।
मोदी सरकार की झूठबयानी की इसी श्रृंखला की कड़ी के रूप में स्तब्ध कर देने वाला एक और उदाहरण मंगलवार को संसद में कोविड-19 की चर्चा के दौरान देखने को मिला। राज्यसभा में सरकार के मंत्री हरदीप पुरी ने कोरोना के नियंत्रण, टीकाकरण, उड़ानों पर रोक आदि की जानकारी दी। उन्होंने विपक्ष पर कोरोना को लेकर गलत विमर्श बनाने का आरोप भी लगाया; पर सरकार का सबसे बड़ा झूठ तो वह था जिसमें स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने दावा किया कि कोरोना के दौरान किसी की भी मृत्यु ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई। एक लिखित उत्तर में उन्होंने कहा कि संक्रमण की दूसरी लहर में किसी भी राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश में ऑक्सीजन के अभाव में किसी के मरने की जानकारी नहीं है। अलबत्ता यह बात उन्होंने मानी कि ऑक्सीजन की मांग इस दौरान अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई थी- पहली लहर की 3095 मीट्रिक टन से 9000 मी. ट.।
यह निश्चित ही सरकार का एक सफेद झूठ है। पता नहीं कि मंत्री न यह बयान किस आधार पर दिया। पूरे देश में देखा गया था कि लाखों की संख्या में लोग ऑक्सीजन की कमी से न केवल जूझ रहे थे बल्कि कई लोग समय पर सिलेंडर न मिलने से मारे गये थे। अस्पतालों, घरों, एंबुलेंसों, बरामदों, आदि में या सड़कों पर ही न जाने कितने लोग हांफते या मरते दिखे। सिलेंडरों के लिये लोग लम्बी कतारों में लगकर अपने परिजनों का जीवन बचाने का यत्न कर रहे थे। इसमें कुछ ही लोग सफल हो पाये थे। स्वयं मोदी ने इस विषय पर मुख्यमंत्रियों की बैठक में पीएम केयर फंड से अनेक ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिये राशि प्रदान की थी। सामान्य विवेक और तर्क बुद्धि से भी यह समझा जा सकता है कि जब इतनी बड़ी संख्या में लोग ऑक्सीजन के लिये तड़फते देखे गये हैं तो यह कैसे संभव है कि उसकी अनियमित सप्लाई के बीच एक की भी मौत न हुई हो। देश के कई अस्पतालों में तो ऑक्सीजन समाप्त होने पर थोक में लोगों की जीवन लीला समाप्त हुई थी जो कोरोना के इलाज के लिए भर्ती थे।
वैसे भी अनेक लोगों की मृत्यु कोरोना से होने के बाद भी सरकार उनकी संख्या काफी घटाकर बतलाती रही है। संसद के इसी सत्र में विपक्षी नेताओं द्वारा दावा किया गया कि भारत में संक्रमण 52 लाख लोगों को लील गया है, जबकि सरकार इसे बहुत कम करके बता रही है। अनेक मौतों को अन्य बीमारियों के कारण होना बतला दिया गया है। मीडिया में भी यह बात उठी थी। कोरोना के कुप्रबंधन की जिम्मेदार मोदी सरकार अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिये झूठ का सहारा ले रही है।
ऐसा नहीं कि कोरोना को लेकर यह कोई इसका पहला असत्य है। अपनी छवि को सतत चमकाने तथा हर बात को इवेंट बनाने में माहिर मोदी ने कोविड को भी भुनाया। कोरोना के दौरान भी मोदी ने वाहवाही लूटने के लिये पूरी सरकार को लगा रखा था। 18 दिनों में संक्रमण को परास्त करने, 80 करोड़ लोगों को सरकार द्वारा भोजन देने, 150 देशों को सहायता करने, कोरोना प्रबंधन को जनअभियान बनाने, लोगों को यात्रा सुविधाएं उपलब्ध कराने जैसे असंख्य झूठ उन्होंने बोले थे। यह झूठ भी उसी सिलसिले में कहा गया एक और असत्य है।
यह भी सोचा जाना चाहिये कि इस सरकार के पास झूठ बोलने की इतनी हिम्मत आती कहां से है। सच तो यह है कि उनके असत्य को सही ठहराने के लिये आईटी सेल एवं पार्टी कार्यकर्ता हमेशा सक्रिय रहते हैं, परन्तु स्वयं मोदी और उनकी सरकार को सोचना चाहिये कि संसद लोकतंत्र का सर्वोच्च मंच है जो पारदर्शिता की मांग करता है तथा वहां असत्य की कोई जगह नहीं है। बहुमत की ताकत पर झूठबयानी को कार्यवाही में तो शामिल कराया जा सकता है लेकिन जनता ने जो सत्य स्वयं देखा है वह सरकार को झूठा साबित करने के लिये काफी है। ऐसे असत्य से संसद की गरिमा गिरती है और लोगों का संवैधानिक संस्थाओं व समग्र लोकतंत्र पर से भरोसा उठता है।