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‘मध्यस्थता कानून की कमजोरी का संकेत नहीं बल्कि इसका उच्चतम विकास’,: सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत

मुख्य न्यायाधीश ने देश में मध्यस्थता प्रक्रिया की वकालत करते हुए इसे कानून का उच्चतम विकास बताया। उन्होंने कहा कि देश में मध्यस्थता कर्मियों की नियुक्ति करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि मध्यस्थता से अदालतों में लंबित मुकदमों की संख्या को कम किया जा सकता है।

 

पणजी

 

देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने कानून में मध्यस्थता की अहमियत बताते हुए कहा कि मध्यस्थता, कानून की कमजोरी का संकेत नहीं है बल्कि यह कानून का उच्चतम विकास है। सीजेआई ने कहा कि मध्यस्थता को अब एक सफल, कम लागत वाले औजार के रूप में दोनों पक्षों से स्वीकार्यता मिल रही है।

सीजेआई ने मध्यस्थता का किया समर्थन
गोवा में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय सम्मेलन और मध्यस्थता जागरूकता कार्यक्रम में बोलते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, जिला अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, सभी स्तरों पर बड़ी संख्या में मध्यस्थों की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मध्यस्थता, जो न्यायिक मामलों के लंबित होने को कम कर सकती है, कानून की कमजोरी का संकेत नहीं है, बल्कि इसका उच्चतम विकास है।

 

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘जैसे-जैसे हम भविष्य की ओर देख रहे हैं, मैं बहु-द्वार कोर्टहाउस की कल्पना करता हूं। यह एक दूरदर्शी अवधारणा है जहां कोर्ट सिर्फ ट्रायल की जगह नहीं रह जाता है। बल्कि, यह विवाद समाधान के लिए एक व्यापक केंद्र बन जाता है।’ सीजेआई ने कहा कि जब न्याय चाहने वाला कोई व्यक्ति कोर्ट आता है, तो उसे मध्यस्थता और अंततः मुकदमेबाजी के विकल्प मिलने चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हमें यह स्वीकार करना होगा कि कुछ ऐसे मामले होंगे जिन्हें मध्यस्थता या मध्यस्थता के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता है। इसलिए, न्यायिक प्रणाली हमेशा उन विवादों का निपटारा करने के लिए निष्पक्ष मुकदमेबाजी के लिए मौजूद रहेगी।’

देश में ढाई लाख मध्यस्थों की जरूरत
सीजेआई ने कहा कि मध्यस्थता एक ऐसा कारण है जो उनके दिल के बहुत करीब है और जिस पर उन्हें गहरा विश्वास है। उन्होंने कहा, ‘मुकदमेबाजी अक्सर एक मृत रिश्ते का पोस्टमार्टम और क्या गलत हुआ, इसका परीक्षण होता है। इसके उलट, मध्यस्थता वह उपचारात्मक सर्जरी है जो एक रिश्ते की जीवित रखने की कोशिश करती है।’ मध्यस्थता प्रशिक्षण की आवश्यकता पर जोर देते हुए, उन्होंने कहा कि 39,000 प्रशिक्षित मध्यस्थ हैं, लेकिन मांग और आपूर्ति में अंतर है। CJI ने कहा कि सभी स्तरों पर मध्यस्थता को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए, देश को 2,50,000 से ज़्यादा प्रशिक्षित मधस्थों की जरूरत है।

 

उन्होंने कहा कि लोगों को मध्यस्थ के तौर पर ट्रेनिंग देते समय बहुत सावधान रहना होगा क्योंकि मध्यस्थता सिर्फ एक कला नहीं है, बल्कि एक मध्यस्थ का स्वभाव, व्यवहार, दया, जुनून, प्रतिबद्धता और समर्पण प्रयासों को सफल बनाने में बहुत बड़ा फर्क डालता है। उन्होंने कहा कि ‘मेडिएशन फॉर नेशन’ अभियान इस साल जुलाई में शुरू किया गया था ताकि वैवाहिक, कमर्शियल और मोटर दुर्घटनाओं सहित कई तरह के विवादों को सुलझाकर लंबित मामलों को कम किया जा सके। सीजेआई ने कहा कि इसके नतीजे बेहद उत्साहजनक रहे।

एआई, साइबर अपराध से आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर की कानूनी एकेडमी की जरूरत
भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने शुक्रवार को एआई और साइबर अपराध से आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए देश भर के वकीलों को ट्रेनिंग देने के लिए राष्ट्रीय स्तर की लीगल एकेडमी की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘हम एक ऐसे दौर में प्रवेश कर रहे हैं, जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस लीगल प्लेटफॉर्म की मदद करने के लिए एक शक्तिशाली टूल बन रहा है, लेकिन टेक्नोलॉजी हमें अलग-अलग तरह के अपराधों की ओर भी ले जा रही है।’
सीजेआई ने कहा कि कुछ साइबर अपराध पूरी तरह से अनसुने हैं।

उन्होंने कहा, ‘जिस तरह से साइबर अपराधी नए तरीके से अपराधों को अंजाम दे रहे हैं, आने वाले दिनों में (कानूनी सिस्टम के सामने) चुनौतियां और बड़ी और गंभीर हो जाएंगी।’ सीजेआई ने कहा कि उन्हें लगता है कि नेशनल ज्यूडिशियल एकेडमी की तरह ही एक नेशनल लेवल की लीगल एकेडमी होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘बार के सदस्यों के लिए समय-समय पर ट्रेनिंग का समय आ गया है। यह 48 घंटे, या एक या दो दिन का कैप्सूल नहीं हो सकता। इसके लिए इन-हाउस ट्रेनिंग एकेडमी में कुछ महीनों तक कड़ी ट्रेनिंग की ज़रूरत हो सकती है, जहां हमारे पास डोमेन एक्सपर्ट होंगे।’

 

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