दिल्ली

निर्भया कांड के बाद कितना बदल गया लड़कियों को देखने, घूरने और टच की परिभाषा, ये हरकतें ले जाएंगी आपको जेल!

Nirbhaya Case Impact: दिसंबर 2012 के निर्भया कांड ने भारत के कानूनी ढांचे को हिलाकर रख दिया था. इसके बाद जस्टिस वर्मा कमेटी की सिफारिशों पर कानून में बड़े बदलाव किए गए. अब बलात्कार केवल शारीरिक संबंध तक सीमित नहीं है, बल्कि मर्जी के बिना छूना, घूरना और पीछा करना भी संगीन अपराध की श्रेणी में आता है. सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट किया है कि महिलाओं की गरिमा के साथ खिलवाड़ करने वाली हर हरकत के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है. अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत इन कानूनों को और भी सख्त बनाया गया है. जानिए क्या हैं आपके अधिकार और कानून की नई सीमाएं.

 

नई दिल्ली.
‘निर्भया रेप कांड’ के 13 साल पूरे होने वाले हैं. 16 दिसंबर 2012 की काली रात को निर्भया के साथ चलती बस में सामूहिक बलात्कार किया गया. निर्भया के साथ गैंगरेप की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था.  इस घटना से देश की रूह कंप गई थी. निर्भया कांड के बाद भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर न केवल सामाजिक दृष्टिकोण बदला, बल्कि कानून की किताब भी पूरी तरह बदल दी गई. पूरे देश में विरोध प्रदर्शन के बाद सुप्रीम कोर्ट ने लड़कियों को देखने, घूरने और छूने की परिभाषा ही बदल दी.

केंद्र सरकार ने जस्टिस वर्मा कमेटी की सिफारिशों को लागू करते हुए ‘आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013’ पारित किया था. अब, जबकि भारतीय न्याय संहिता (BNS) ने आईपीसी की जगह ले ली है तो यह कानून और मजबूत हो गया है. निर्भया कांड के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में तय किया है कि ‘देखने’, ‘घूरने’ और ‘छूने’ की सीमा क्या होनी चाहिए. आइए जानते हैं कि अब आप ट्रेन, बस, मेट्रो, स्कूल और कॉलेज में लड़कियों को देखें तो आपका व्यवहार या आपकी आंखें किस हद तक रहे.

बलात्कार की परिभाषा बदल गई

निर्भया कांड के बाद देश में बलात्कार की परिभाषा में क्रांतिकारी बदलाव हुए. साल 2012 से पहले बलात्कार की परिभाषा काफी सीमित थी. लेकिन निर्भया कांड के बाद कानून ने स्पष्ट किया कि बलात्कार का मतलब केवल ‘पेनेट्रेटिव सेक्स’ नहीं है. अब यदि कोई पुरुष किसी महिला के निजी अंगों, मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में अपने शरीर का कोई हिस्सा या कोई वस्तु जैसे बोतल, उंगली या अन्य सामान बिना सहमति के डालता है तो उसे बलात्कार माना जाएगा.
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लड़की का ‘सहमति’ का मतलब ‘ना’

लड़कियों को अब कई तरह की कानूनी मजबूती मिली है. अब शारीरिक संभोग यानी सेक्सुअल रिलेशन तक सीमित न रखकर ‘डिजिटल पेनेट्रेशन’ और अन्य हिंसक कृत्यों को भी गंभीर श्रेणी में शामिल किया है. सुप्रीम कोर्ट ने जवान लड़का-लड़की में सहमति को लेकर बहुत सख्त रुख अपनाया है. नए कानून के अनुसार सहमति का मतलब एक स्वैच्छिक और स्पष्ट समझौता है. यदि महिला विरोध नहीं कर रही है तो इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि उसने सहमति दे दी है. मौन को सहमति नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि महिला या लड़की के साथ पहले कोई संबंध रहा हो या वह यौनकर्मी हों, तब भी उसकी मर्जी के बिना किया गया कृत्य बलात्कार ही कहलाएगा.

लड़कियों को घूरना या चोरी से फोटो खींचना

निर्भया कांड के बाद दो नई धाराएं जोड़ी गईं, जो आज भी बेहद महत्वपूर्ण हैं. स्टॉकिंग और वोयूरिज्म. वोयूरिज्म यानी तांक-झांक यदि कोई पुरुष किसी महिला को तब देखता है या उसकी फोटो खींचता है, जब वह निजी काम कर रही हो जैसे कपड़े बदलना या नहाना और उसे उम्मीद हो कि कोई उसे नहीं देख रहा तो यह अपराध है.

स्टॉकिंग (पीछा करना)

यदि कोई पुरुष किसी महिला का बार-बार पीछा करता है या उससे संपर्क करने की कोशिश करता है, जबकि महिला ने मना कर दिया हो या उसके इंटरनेट/सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर नजर रखता है तो इसे ‘स्टॉकिंग’ माना जाएगा. इस केस में पहली बार पकड़े जाने पर आपकको 3 साल और दूसरी बार पर 5 साल तक की सजा का प्रावधान है.

‘स्किन-टू-स्किन टच’

सुप्रीम कोर्ट का महिलाओं को छूने के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट के एक विवादित फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक व्यवस्था दी. हाई कोर्ट ने कहा था कि यदि ‘स्किन-टू-स्किन’ (त्वचा से त्वचा) का संपर्क नहीं हुआ तो उसे यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि अपराधी की ‘नियत’ (Sexual Intent) महत्वपूर्ण है न कि त्वचा का संपर्क. यदि कोई व्यक्ति किसी महिला या बच्ची को गलत इरादे से कपड़ों के ऊपर से भी छूता है तो वह पॉक्सो या छेड़छाड़ की धाराओं के तहत अपराधी माना जाएगा.
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यौन उत्पीड़न की नई सीमाएं

भारतीय न्याय संहिता और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार किसी महिला पर अश्लील टिप्पणी करना, उसे अश्लील फिल्में या तस्वीरें दिखाना, यौन संबंध बनाने की मांग करना या जबरन छूना ‘यौन उत्पीड़न’ की श्रेणी में आता है. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि महिलाओं की गरिमा और उनकी शारीरिक स्वायत्तता (Bodily Autonomy) सर्वोपरि है. कार्यस्थल पर होने वाली छेड़छाड़ को लेकर ‘विशाखा गाइडलाइंस’ को और मजबूती दी गई है.
कुलमिलाकर देश में निर्भया कांड के बाद नया कानून अपराधी के लिए कोई ‘लूपहोल’ नहीं छोड़ता. निर्भया के बाद शुरू हुआ यह सफर अब एक ऐसे मुकाम पर है जहां महिला की मर्जी ही कानून का आधार है. पुलिस और अदालतों को निर्देश दिए गए हैं कि ऐसे मामलों में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाए. समाज के लिए यह जानना जरूरी है कि जिसे वे ‘मामूली छेड़छाड़’ समझते हैं, वह कानून की नजर में एक संज्ञेय अपराध है जो वर्षों की जेल का रास्ता खोल सकता है.

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