‘उनका मकसद संविधान बदलकर…’, राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने मोदी सरकार पर लगाए गंभीर आरोप

राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने संसद के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने सरकार को एसआईआर पर बहस से बचने और अप्रासंगिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए घेरा।
नई दिल्ली
राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने शुक्रवार को दावा किया कि संसद की प्रासंगिकता धीरे-धीरे कम हो रही है, क्योंकि सत्ता में बैठे लोग इसकी ज्यादा परवाह नहीं करते हैं। सिब्बल ने कहा कि वे उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो वर्तमान समय के लिए अप्रासंगिक हैं।
निर्दलीय सांसद ने कहा कि यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है, क्योंकि संसद में वास्तविक मुद्दों पर चर्चा नहीं होती है। उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि हमारी संसद की प्रासंगिकता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। अब इसकी बैठकें कम होती हैं और लोगों को लगता है कि वहां कुछ नहीं होता।’
‘संविधान बदलकर एक राष्ट्र-एक चुनाव, एक पार्टी करना चाहते हैं’, बोले सिब्बल
उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा, ‘सरकार का उद्देश्य राज्य सरकारों को गिराना है और जब सभी राज्य उनके नियंत्रण में आ जाएंगे, तो वे संविधान में बदलाव करके यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि- ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव; एक राष्ट्र, एक भाषा और एक राष्ट्र, एक पार्टी’ हो।’ संसद के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सांसद ने कहा, ‘यह लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक है, क्योंकि असली मुद्दों पर चर्चा नहीं होती। इसके बजाय ऐसे मुद्दे उठाए जाते हैं जो वर्तमान समय के लिए अप्रासंगिक हैं।’
उन्होंने बताया कि शीतकालीन सत्र 1 से 19 दिसंबर तक आयोजित किया गया था, जिसके दौरान 15 बैठकें हुईं। उन्होंने कहा, ‘जब हम पहले संसद में थे, तब शीतकालीन सत्र 20 नवंबर से शुरू होता था। 2017 में 13 सत्र हुए, 2022 में 13 सत्र हुए और 2023 में 14 सत्र हुए। अगर यही सिलसिला जारी रहा तो ये बहसें नहीं हो पाएंगी।’
‘लोकतंत्र में सांस कैसे ले पाएंगे’, कपिल सिब्बल ने उठाया सवाल
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने एसआई के मुद्दे पर बात करते हुए कहा कि विपक्ष 1 दिसंबर को मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण पर चर्चा चाहता था क्योंकि यह आज देश का सबसे बड़ा मुद्दा है। उन्होंने आरोप लगाया कि अगर मतदाता सूची दूषित है तो हम लोकतंत्र में सांस कैसे ले पाएंगे? इसलिए, एसआईआर पर चर्चा होनी चाहिए।
हालांकि, उन्होंने कहा कि हम इस पर चर्चा नहीं कर सकते क्योंकि मामला अदालत में है। इसी के साथ उन्होंने तर्क दिया कि बोफोर्स का मामला भी अदालत में था और उस पर संसद में चर्चा हुई थी। उन्होंने कहा कि सरकार इसे बहाने के तौर पर इस्तेमाल कर रही है क्योंकि वो नहीं चाहती कि चुनाव आयोग की ओर से उनके इशारे पर की गई कार्रवाइयां जनता के सामने आएं।’
सिबल ने परमाणु ऊर्जा, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और एमजीएनआरईजीए को निरस्त करने संबंधी विधेयकों को लाने के लिए सरकार की कड़ी आलोचना की और विधेयकों में शामिल किए गए प्रावधानों के पीछे सरकार के इरादे पर सवाल उठाया।




