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सीजेआई:‘न्यायपालिका को बदनाम करने की साजिश’; सीजेआई सूर्यकांत पर हमले की मुहिम के विरोध पर रिटायर्ड जजों का बयान

सुप्रीम और हाईकोर्ट के 40 से अधिक रिटायर्ड जजों ने सीजेआई सूर्यकांत के खिलाफ चल रही मोटीवेटेड मुहिम का विरोध किया। रोहिंग्या प्रवासियों से जुड़े मामले में टिप्पणी को गलत रूप में पेश करने का आरोप।

 

नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कई सेवानिवृत्त जजों ने मंगलवार को एक संयुक्त बयान जारी कर भारत के चीफ जस्टिस सूर्यकांत के खिलाफ चल रही मोटीवेटेड कैंपेन पर कड़ी आपत्ति जताई है। यह बयान उस समय सामने आया है जब सीजेआई कांत द्वारा रोहिंग्या प्रवासियों से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान की गई टिप्पणियों को लेकर विवाद पैदा हुआ। जजों ने कहा कि 5 दिसंबर को कुछ पूर्व जजों, वकीलों और कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल एकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स (CJAR) द्वारा लिखे गए खुले पत्र में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को संदर्भ से हटाकर पेश किया गया। पत्र में कहा गया था कि 2 दिसंबर की सुनवाई में रोहिंग्या शरणार्थियों पर अमानवीय टिप्पणी हुई।

 

रिटायर्ड जजों द्वारा जारी बयान में कहा गया सुप्रीम कोर्ट को बदनाम करने का प्रयास अस्वीकार्य है। न्यायपालिका की आलोचना तर्कपूर्ण और जिम्मेदार होनी चाहिए, न कि सुनियोजित तरीके से उसकी छवि खराब करने वाली।

बयान में कहा गया कि CJI सूर्य कांत ने सिर्फ एक मूलभूत कानूनी सवाल पूछा था कानून के तहत यह दर्जा किसने दिया है? जबकि इसे जानबूझकर गलत अर्थों में पेश किया गया। जजों ने कहा कि सुनवाई के दौरान पीठ ने बेहद स्पष्ट शब्दों में कहा था कि भारत की जमीन पर मौजूद कोई भी व्यक्ति चाहे नागरिक हो या विदेशी उसे यातना, गायब करने या अमानवीय व्यवहार का सामना नहीं करना पड़ेगा और हर व्यक्ति की गरिमा का सम्मान होना चाहिए।

उन्होंने कहा इसे छिपाकर कोर्ट पर ‘अमानवीयता’ का आरोप लगाना वास्तविक तथ्यों का विकृत रूप है। बयान में चेतावनी दी गई कि यदि हर सवाल चाहे वह राष्ट्रीयता, दस्तावेज, सीमा सुरक्षा या प्रवासन नीति से जुड़ा हो को ‘नफरत’ या ‘पूर्वाग्रह’ कहकर बदनाम किया जाएगा, तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी। रिटायर्ड जजों ने कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट और सीजेआई पर पूरा विश्वास व्यक्त करते हैं और अदालत की टिप्पणियों को तोड़-मरोड़कर पेश करने की निंदा करते हैं। साथ ही उन्होंने विदेशी नागरिकों द्वारा भारतीय पहचान और कल्याणकारी दस्तावेजों की अवैध प्राप्ति की जांच के लिए कोर्ट-निगरानी वाली SIT बनाने का समर्थन भी किया। अंत में बयान में कहा गया हमारा संवैधानिक ढांचा मानवता और सतर्कता दोनों की मांग करता है। न्यायपालिका ने राष्ट्रीय अखंडता और मानव गरिमा के संतुलन में अपने कर्तव्य का पालन किया है। इसे समर्थन मिलना चाहिए, न कि बदनाम करने की कोशिश।

 

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