‘न्याय केवल कानूनों तक सीमित नहीं’, पूर्व CJI बालाकृष्णन बोले-मानवता और करुणा ही सच्ची अभिव्यक्ति : पूर्व CJI बालाकृष्णन

पूर्व मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन ने कहा कि न्याय केवल अदालतों और कानूनों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समानता, निष्पक्षता और मानव गरिमा की रक्षा का जीवित सिद्धांत है। उन्होंने नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में ये बाते कही।
नई दिल्ली
पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन ने कहा है कि न्याय कोई अमूर्त अवधारणा नहीं, जो केवल कानूनों या अदालतों तक सीमित हो, बल्कि यह एक जीवित सिद्धांत है, जो समानता, निष्पक्षता और प्रत्येक व्यक्ति के सम्मान में झलकता है। उन्होंने कहा कि न्याय की सच्ची भावना समाज में समान व्यवहार और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने से प्रकट होती है।
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि न्याय केवल अदालतों या विधानों में नहीं रहता, बल्कि यह हर उस कार्य में प्रकट होता है जहां इंसानियत, करुणा और समानता की भावना होती है। उन्होंने कहा कि न्याय एक जीवित सिद्धांत है जो समानता, निष्पक्षता और हर व्यक्ति के प्रति सम्मान के रूप में व्यक्त होता है। न्याय व्यवस्था का उद्देश्य केवल विवाद सुलझाना नहीं बल्कि समाज में संतुलन, शांति और गरिमा की रक्षा करना है।
उन्होंने आगे कहा कि पोप लियो XIV ने अपने जीवन में इस सिद्धांत को कर्म के रूप में जिया है। उनकी अपीलें हिंसा और भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में रही हैं। उन्होंने दया, क्षमा और उपेक्षित वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए जो कार्य किए हैं, उनसे दुनियाभर के लोग प्रेरित हुए हैं।
इस मौके पर वरिष्ठ अधिवक्ता और इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ ज्यूरिस्ट्स के अध्यक्ष आदिश सी. अग्रवाल ने स्वागत भाषण दिया और पोप को मानवता का नैतिक दिशा-सूचक बताया। ये सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
इन्होंने अपने संबोधन में कहा कि यह विशिष्ट पुरस्कार उनके जीवनभर की शांति, न्याय और मानव गरिमा के प्रति प्रतिबद्धता के सम्मान में दिया जा रहा है। उन्होंने आगे यह भी कहा कि शांति की राह सत्ता के गलियारों से नहीं, बल्कि मानवता के अंतरात्मा से शुरू होती है।




