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सैनिकों का अपमान अब इस मोदी सरकार की नयी पहचान बन रहा है ?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जिस कुर्सी पर वे बैठे हैं, जिस महान देश की सत्ता इस समय वो संभाल रहे हैं, उसकी जिम्मेदारी का रत्ती भर एहसास भी उन्हें नहीं हैं

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जिस कुर्सी पर वे बैठे हैं, जिस महान देश की सत्ता इस समय वो संभाल रहे हैं, उसकी जिम्मेदारी का रत्ती भर एहसास भी उन्हें नहीं हैं। चालाक राजनेता की तरह चुनाव जीतना, अपना प्रचार करवाना और सही-गलत की परिभाषा से परे होकर चंद लोगों के इशारे पर काम करना अलग बात है, लेकिन भारत का प्रधानमंत्री होने के लिए जो अघोषित मापदंड बने हुए हैं, जिन पर अब तक के तमाम प्रधानमंत्री पूरी तरह खरे उतरे हैं, नरेन्द्र मोदी उन्हें किसी लिहाज से पूरा नहीं कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी की भाषा और सोच का स्तर और कितना नीचे गिरेगा, इस बारे में अब कोई दावा नहीं किया जा सकता।

मई में ऑपरेशन सिंदूर को जब श्री मोदी ने राजनैतिक मकसद से भुनाना शुरु किया था, तब भी यह देखकर अजीब लगा था कि सेना के काम का राजनीतिकरण इस देश में कभी नहीं हुआ, अब वो भी हो रहा है। लेकिन रविवार 28 सितंबर को एशिया कप जीतने के बाद भारतीय टीम को नरेन्द्र मोदी ने जब बधाई दी, तो ऑपरेशन सिंदूर को मजाक का विषय बना दिया। सेना का ऐसा अपमान देश में कभी नहीं हुआ था। प्रधानमंत्री ने मैच की तुलना ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से करते हुए लिखा कि ‘नतीजा वही रहा, भारत जीता’। मोदी के नक्शेकदमों पर चलते हुए अमित शाह का भी इसी तरह का बधाई संदेश आया और सोशल मीडिया पर नफरती पोस्ट्स की भरमार हो गई। सिंदूर मांगा था, तिलक लगा दिया, जैसे सस्ते फिल्मी संवाद मीडिया की सुर्खियां बनें।

गौरतलब है कि पहलगाम में 22 अप्रैल को चार आतंकियों ने हमला कर पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं, जिनमें 26 लोगों की अकाल मौत हुई थी। आज तक उन आतंकियों का कुछ अता-पता नहीं है कि वो कैसे देश के भीतर आए और किस तरह गोलियां बरसाकर चले गए। इस हमले के बाद 6 मई की आधी रात ऑपरेशन सिंदूर नाम से भारतीय सेना ने अभियान चलाया और पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमला किया। इन हमलों में भारत को सफलता मिल ही रही थी कि अचानक 10 मई को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने दुनिया को बताया कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम करवाया है। तब से अब तक कई बार ट्रंप इस दावे को दोहरा चुके हैं। हालांकि भारत सरकार का दावा है कि ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है, खत्म नहीं हुआ है। जब पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य अभियान जारी है तो फिर उसके साथ मैच क्यों खेला जाए, यह सवाल 14 सितंबर से पहले उठा था, जिसके बेतुके जवाब सरकार की तरफ से आए। 14 के बाद 21 सितंबर को भी दोनों देशों के बीच मैच हुआ और फिर 28 सितंबर को फाइनल मुकाबला भी भारत-पाक के बीच ही हुआ। अब क्रिकेट मैच में फिक्सिंग के सबूत सामने नहीं आते हैं, लेकिन यह महज संयोग नहीं हो सकता कि लगातार तीन रविवार उन दो टीमों के बीच ही मैच हो, जिन में सट्टे से सबसे अधिक कमाई होती है। 28 तारीख का फाइनल मुकाबला भी बिल्कुल सट्टेबाजी जैसा प्रायोजित लगा। पाकिस्तानी टीम भारतीय टीम पर भारी पड़ती दिखाई दी। मैच के अंतिम क्षणों तक रोमांच बना रहे, यह सुनिश्चित किया गया, ताकि सट्टे की कमाई बढ़ती जाए। आखिर में भारत जीत गया और इस पर आश्चर्य नहीं हुआ। हैरानी यह देखकर हुई कि नरेन्द्र मोदी ने फौरन इसे खेल नहीं युद्ध की जीत की तरह प्रस्तुत कर दिया। मानो उनका राष्ट्रवाद इसी के इंतजार में बैठा था। युद्ध के मैदान और खेल के मैदान का फर्क मोदी ने मिटा दिया। खेल में तो हार-जीत को खेल भावना से लिया जाता है, लेकिन लड़ाई में हार का मतलब सैनिकों की शहादत और आम जनता की बर्बादी होता है। ऑपरेशन सिंदूर में भारत को सफलता जरूर मिली है, लेकिन इसके साथ पाक के हमलों में जो आम नागरिक मारे गए, उस नुकसान को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। नरेन्द्र मोदी के इस ट्वीट पर कायदे से सेना को ही आपत्ति दर्ज करनी चाहिए कि उसकी जांबाजी को अपने सस्ते प्रचार के लिए कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है। पहलगाम के 26 मृतकों और पाक के हमलों में मारे गए लोगों के परिजनों को प्रधानमंत्री के ऐसे ट्वीट देखकर कितना दुख होता होगा, इसका अनुमान भी लगाया नहीं जा सकता।

वैसे सैनिकों का अपमान अब इस सरकार की नयी पहचान बन रहा है। लद्दाख में प्रदर्शन कर रहे त्सेवांग थारचिन की गोली मारकर जान ली गई, जबकि थारचिन कारगिल की जंग में शामिल थे। उधर खिलाड़ियों का अपमान भी मोदी सरकार कर रही है। वाराणसी में पूर्व ओलंपियन स्व.मो. शाहिद के घर पर बुलडोजर चलाया गया। जबकि वे पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कारों से सम्मानित खिलाड़ी थे। क्रिकेट की जीत पर सच्ची खुशियां मनाने की जगह पाकिस्तान को भला-बुरा कहकर खुश होने वाले सरकार की इस सच्चाई को भी परखें तो बेहतर होगा।

 

वैसे 28 सितंबर 2025 को भद्रजनों का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट के इतिहास में एक काले दिन के तौर पर दर्ज किया जाना चाहिए। क्योंकि इस दिन खेलभावना की सारी मर्यादाएं टूटी हैं। भारतीय टीम ने जीत के बाद एशियाई क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड प्रमुख मोहसिन नकवी से ट्रॉफी लेने से इनकार कर दिया। दावा है कि भारत ने पहले ही बता दिया था कि अगर नकवी ट्रॉफी देंगे तो टीम इंडिया ट्रॉफी नहीं लेगी। इसके बाद भी नकवी ट्रॉफी वितरण समारोह में स्टेज पर आ गए। अब सवाल ये है कि क्या आईसीसी को इस बारे में औपचारिक सूचना दी गई थी, अगर हां तो फिर जय शाह ने पहले ही हालात क्यों नहीं संभाले। मोहसिन नकवी से ट्रॉफी न लेने वाले भारतीय खिलाड़ियों का एक वीडियो आया है, जिसमें वे मोहसिन नकवी से हाथ मिला रहे हैं। जब हाथ मिला सकते हैं, तो ट्रॉफी क्यों नहीं से सकते। इसी तरह पाक टीम के कप्तान ने मैच का चेक लेकर वहीं फेंक दिया और मुस्कुरा कर चलते बने। इस तरह के प्रसंग बता रहे हैं कि दोनों देशों में खिलाड़ी नफरती एजेंडे को बढ़ाने वाली सरकारों के मोहरे बन चुके हैं। इसमें तो बेहतर यही होगा कि दोनों देश आपस में न खेलें। लेकिन जिन्हें अरबों की कमाई करवानी है, वो इन्हें आपस में भिड़ाते रहेंगे।

 

 

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