‘एसआईआर से लाखों लोगों के मताधिकार से वंचित होने और वोट चोरी का खतरा’,: दीपंकर भट्टाचार्य

भाकपा (माले) लिबरेशन ने बिहार में चल रही मतदाता सूची की समीक्षा (एसआईआर) को असांविधानिक और लोकतंत्र के खिलाफ बताया है। पार्टी का आरोप है कि इस प्रक्रिया से करोड़ों लोग वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं। पार्टी महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने इसे नोटबंदी जैसी विघटनकारी प्रक्रिया बताया।
कोलकाता
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी लेनिनवादी) लिबरेशन ने बिहार में जारी मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर कहा कि यह देश की चुनावी परंपराओं से पूरी तरह हटकर है। पार्टी ने कहा कि यह प्रक्रिया बड़े पैमाने पर लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित कर सकती है और चुनाव में धोखाधड़ी को बढ़ावा दे सकती है। भाकपा (माले) लिबरेशन विपक्षी गठबंधन इंडिया का हिस्सा रही है।
अब तक के घटनाक्रम में उनकी आशंका सही साबित हुई है। 65 लाख नाम अब तक हटाए जा चुके हैं और तीन लाख लोगों को नोटिस भेजा जा चुका है। उन्होंने कहा कि यह कोई कल्पना नहीं, सच में हो रहा है। भट्टाचार्य ने दावा किया कि हटाए गए नामों में एक भी विदेशी घुसपैठिया नहीं था। 18 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट केआदेश के बाद जब चुनाव आयोग को हटाए गए नामों की सूची सार्वजनिक करनी पड़ी, तब यह साफ हुआ कि उनमें एक भी बांग्लादेश, नेपाल या म्यांमार का नागरिक नहीं था। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा की ओर से फैलाया गया घुसपैठिया का डर पूरी तरह झूठ निकला।
भट्टाचार्य ने दावा किया कि बिहार में जुलाई से चलाए गए तीन जन अभियानों के चलते चुनाव आयोग को तीन बड़े फैसलों में बदलाव करना पड़ा। पहले चुनाव आयोग ने कहा था कि सभी आठ करोड़ मतदाताओं को 25 जुलाई तक फोटो और दस्तावेजों सहित फॉर्म जमा करना होगा। लेकिन जनता के विरोध के बाद यह आदेश बदल दिया गया। अब केवल फॉर्म देना था, दस्तावेज नहीं। पहली बार चुनाव पीछे हटना पड़ा। दूसरी बात 65 लाख नाम हटाने के बाद आयोग को सुप्रीम के दखल के बाद ही हटाए गए नामों की सूची सार्वजनिक करनी पड़ी। तीसरी बड़ी बात यह रही कि सितंबर में कोर्ट ने आधार कार्ड को वैध दस्तावेज मानने का निर्देश दिया, जिसे पहले आयोग मानने से इनकार कर रहा था।