देश
‘छह साल से जेल…कोई ट्रायल नहीं’, गढ़चिरौली आगजनी केस में कोर्ट सख्त; कहा- आरोपी को कारावास में रखना गलत

सुप्रीम कोर्ट ने 2016 गढ़चिरौली आगजनी मामले में ट्रायल में देरी पर महाराष्ट्र सरकार से जवाब मांगा है। अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग 6.7 साल से जेल में हैं और उन पर माओवादियों की मदद करने और खदान विरोध आंदोलन भड़काने का आरोप है। वे यूएपीए और आईपीसी की धाराओं में आरोपी हैं और एल्गार परिषद मामले से भी जुड़े हैं।
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के गढ़चिरौली आगजनी मामले में ट्रायल की देरी पर गंभीर चिंता जताई है। बुधवार को शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से इस देरी पर स्पष्टीकरण मांगा और अभियोजन एजेंसी से साफ किया कि छह साल से ज्यादा समय तक किसी आरोपी को बिना ट्रायल के जेल में रखना न्यायसंगत नहीं है।
नागपुर हाईकोर्ट का आदेश और सुप्रीम कोर्ट की दखल
गाडलिंग ने जनवरी 2023 के नागपुर बेंच के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने उन्हें 2016 सुरजगढ़ आयरन ओर माइंस आगजनी मामले में जमानत देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में अभियोजन पक्ष से जवाब मांगा और कहा कि ट्रायल में देरी की वजह स्पष्ट की जाए। अदालत ने इस मामले को अगली सुनवाई के लिए 29 अक्तूबर को सूचीबद्ध किया है।
गाडलिंग ने जनवरी 2023 के नागपुर बेंच के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने उन्हें 2016 सुरजगढ़ आयरन ओर माइंस आगजनी मामले में जमानत देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में अभियोजन पक्ष से जवाब मांगा और कहा कि ट्रायल में देरी की वजह स्पष्ट की जाए। अदालत ने इस मामले को अगली सुनवाई के लिए 29 अक्तूबर को सूचीबद्ध किया है।
आगजनी और माओवाद से संबंध का आरोप
25 दिसंबर 2016 को माओवादी विद्रोहियों ने गढ़चिरौली के सुरजगढ़ खदान से लौह अयस्क ढोने वाले 76 वाहनों को आग के हवाले कर दिया था। गाडलिंग पर आरोप है कि उन्होंने माओवादियों को मदद पहुंचाई, उन्हें सरकारी गतिविधियों की गुप्त जानकारी और नक्शे उपलब्ध कराए। उन पर यह भी आरोप है कि उन्होंने स्थानीय लोगों को खदानों का विरोध करने के लिए उकसाया और माओवादी आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
25 दिसंबर 2016 को माओवादी विद्रोहियों ने गढ़चिरौली के सुरजगढ़ खदान से लौह अयस्क ढोने वाले 76 वाहनों को आग के हवाले कर दिया था। गाडलिंग पर आरोप है कि उन्होंने माओवादियों को मदद पहुंचाई, उन्हें सरकारी गतिविधियों की गुप्त जानकारी और नक्शे उपलब्ध कराए। उन पर यह भी आरोप है कि उन्होंने स्थानीय लोगों को खदानों का विरोध करने के लिए उकसाया और माओवादी आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
यूएपीए और आईपीसी की धाराओं में मामला दर्ज
गाडलिंग के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है। अभियोजन पक्ष का कहना है कि उन्होंने माओवादियों के साथ साजिश रची और खदान संचालन का विरोध किया। साथ ही, उन पर भूमिगत विद्रोहियों को सहयोग करने का आरोप है।
एल्गार परिषद मामले से भी जुड़े आरोप
गाडलिंग का नाम एल्गार परिषद-माओवादी लिंक केस में भी शामिल है। उन पर आरोप है कि 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद कार्यक्रम में दिए गए भड़काऊ भाषण ने अगले दिन भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़काई। इस मामले में भी वे आरोपी बने हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस रुख से महाराष्ट्र सरकार और एजेंसियों पर अब ट्रायल जल्द पूरा करने का दबाव बढ़ गया है।
गाडलिंग का नाम एल्गार परिषद-माओवादी लिंक केस में भी शामिल है। उन पर आरोप है कि 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद कार्यक्रम में दिए गए भड़काऊ भाषण ने अगले दिन भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़काई। इस मामले में भी वे आरोपी बने हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस रुख से महाराष्ट्र सरकार और एजेंसियों पर अब ट्रायल जल्द पूरा करने का दबाव बढ़ गया है।