मोदीजी के शाशन में लाठीतंत्र में बदलता लोकतंत्र ?

विपक्ष की तरफ से लगातार मोदी सरकार पर लोकतंत्र को कुचलने और विरोध की आवाज को दबाने के आरोप लगाए जा रहे हैं
विपक्ष की तरफ से लगातार मोदी सरकार पर लोकतंत्र को कुचलने और विरोध की आवाज को दबाने के आरोप लगाए जा रहे हैं। इस समय देश के कम से कम पांच राज्यों की घटनाएं इन आरोपों को बल दे रही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मॉरिशस के प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम के साथ गुरुवार को वाराणसी के दौरो पर थे, लेकिन इससे पहले उत्तरप्रदेश में जगह-जगह कांग्रेस नेताओं को नजरबंद करने की खबरें आईं। उत्तरप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय को भी लखनऊ में नजरबंद कर लिया। जबकि श्री राय ने 11.30 बजे प्रदेश कार्यालय पर प्रेस कान्फ्रेंस बुलाई थी। वह कान्फ्रेंस को संबोधित करने के लिए घर से निकलते इससे पहले ही पुलिस ने दस्तक दी। इसके बाद उन्हें घर से नहीं निकलने दिया गया। इसका वीडियो उन्होंने डाला है।
इधर नजरबंदी का ऐसा ही खेल जम्मू-कश्मीर में हुआ। जब आम आदमी पार्टी के विधायक मेहराज मलिक की गिरफ्तारी पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए आप सांसद संजय सिंह पहुंचे तो उन्हें भी गेस्ट हाउस में ही नजरबंद किया गया। हद तो तब हो गई जब पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस के मुखिया फारुख अब्दुल्ला संजय सिंह से मिलने पहुंचे तो उन्हें भी गेस्ट हाउस के दरवाजे पर ही पुलिस ने रोक दिया। संजय सिंह ने इस अघोषित तानाशाही के खिलाफ जुझारूपन दिखाते हुए बंद दरवाजे की रेलिंग पर चढ़कर फारुख अब्दुल्ला से बात की। इस मौके का वीडियो भी सोशल मीडिया पर है, जिसमें संजय सिंह पुलिस वालों से पूछ रहे हैं कि मैं सांसद हूं और वो पूर्व मुख्यमंत्री हैं, हमें मिलने क्यों नहीं दिया जा रहा। जाहिर है केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर की पुलिस के पास इसका कोई जवाब नहीं है। फारुख अब्दुल्ला ने भी कहा है कि इस राज्य में पहले ही कई मुसीबतें आई हुई हैं। पहले पहलगाम आतंकी हमला, फिर बाढ़ और अब इस तरह के अलोकतांत्रिक काम, इन सबसे राज्य के लोगों की तकलीफें बढ़ रही हैं।
गौरतलब है कि आप के विधायक मेहराज मलिक पर आतंकियों का महिमामंडन करने, अफवाहें फैलाने और डोडा के डीसी को अपशब्द कहने, सरकारी अस्पताल के काम में बाधा डालने और महिलाओं के खिलाफ अभद्र भाषा के इस्तेमाल जैसे कई आरोप लगाकर 8 सितंबर को जनसुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत गिरफ्तार कर कठुआ जेल भेजा गया है। जिसका जनता व्यापक पैमाने पर विरोध कर रही है। एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि को ही लोगों की सुरक्षा के लिए खतरा बता कर गिरफ्तार करने का यह विचित्र उदाहरण है। प्रशासन ने डोडा, भद्रवाह, गंडोह और ठाठरी समेत संवेदनशील इलाकों में भारी संख्या में सुरक्षाकर्मी तैनात कर दिए गए हैं। पुलिस लाउडस्पीकर से ऐलान कर रही है कि लोग घरों में ही रहें। यानी अघोषित कर्फ्यू के हालात हैं, और इसमें विपक्ष को सवाल करने भी नहीं दिया जा रहा।
इधर लद्दाख में भी पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने बुधवार 10 सितंबर से एक और अनशन शुरू किया है, क्योंकि उनकी मांगों को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पिछले दो महीने से कोई बैठक नहीं बुलाई है। वांगचुक ने कहा, ‘लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा और संरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर केंद्र सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही है, इसलिए वह अपना प्रदर्शन तेज करने को मजबूर हो रहे हैं। पिछले काउंसिल चुनाव में भाजपा ने लद्दाख को छठी अनुसूची का दर्जा देने का वादा किया था। लेकिन ये अब तक पूरा नहीं हुआ है।
वादाखिलाफी पर ऐसा ही गुस्सा असम में भी नजर आ रहा है। अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने से जुड़े वादों को पूरा न करने को लेकर असम के दो प्रमुख जातीय समुदायों – मोरान और कोच राजबोंगशी ने तिनसुकिया और धुबरी जिलों में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन किए हैं। प्रदर्शनकारियों ने तालाप, काकोपाथर, मार्गेरिटा और तिनसुकिया शहर की सड़कों पर मार्च निकाला और अनुसूचित जनजाति का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत स्वायत्तता की मांग की। उनका आरोप है कि ये वादे सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में किए थे, लेकिन कभी पूरे नहीं हुए हैं। प्रदर्शनकारी कह रहे हैं कि अगर 2026 के चुनावों से पहले हमारी मांगों को फिर से नजरअंदाज किया गया तो हम और भी आक्रामक और निरंतर आंदोलन शुरू करने के लिए मजबूर होंगे। 15 सितंबर से राज्यव्यापी आर्थिक नाकेबंदी शुरू करने की चेतावनी भी दी गई है। वहीं ऑल कोच राजबंशी स्टूडेंट्स यूनियन ने धुबरी जिले के अंतर्गत गोलकगंज क्षेत्र में एक बड़े विरोध मार्च का आयोजन किया, जिसमें सीआरपीएफ के सुरक्षा बलों ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज किया तो महिलाओं और छात्र नेताओं सहित 50 से ज्यादा प्रदर्शनकारी घायल हो गए और हालात तनावपूर्ण बने हैं।
वहीं पटना में भी लगातार सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ रही है। सरकार नए वादे तो कर रही है, लेकिन पुराने फैसलों पर अमल नहीं हो रहा। हाल ही में राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग में संविदाकर्मियों की सेवा समाप्त कर दी गई है। अपनी नौकरी बहाली और बकाया वेतन की मांग को लेकर संविदाकर्मी पिछले एक महीने से गर्दनीबाग धरना स्थल पर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन बुधवार को जब लगभग 9000 भू सर्वेक्षण कर्मियों ने अपनी नौकरी और बकाया वेतन की मांग को लेकर भाजपा कार्यालय का घेराव करने की कोशिश की, तो पुलिस ने उन पर लाठियां चलाईं।
अलग-अलग राज्यों की ये तमाम घटनाएं बता रही हैं कि देश में लोकतंत्र की जगह लाठीतंत्र हावी करने की कोशिश हो रही है। हालांकि मनमानी और दमन की इस लाठी को जितना तेल पिलाया जा रहा है, उतना अधिक जनता में आक्रोश बढ़ रहा है। मीडिया इस आक्रोश को भले न दिखाए, सरकार को इसकी अनदेखी भारी पड़ेगी।