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‘शहरों के फैलाव से सिमट रहे जंगल’, जस्टिस सूर्यकांत बोले- विकास की कीमत चुका रहे वन्यजीव

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि शहरीकरण और औद्योगिकीकरण से इंसान-वन्यजीव संघर्ष बढ़ा है। उन्होंने चेताया कि इसका सबसे ज्यादा असर आदिवासी और गरीब तबकों पर पड़ रहा है। केरल सरकार ने भी इस संघर्ष को गंभीर माना है।

नई दिल्ली

 

केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि तेजी से हो रहे शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण शहरों और कस्बों का फैलाव जंगलों की सीमाओं तक पहुंच रहा है। इसका सीधा असर इंसान और वन्यजीवों के बीच टकराव के रूप में सामने आ रहा है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति मानव महत्वाकांक्षाओं का परिणाम है, जो इंसान और जानवरों को अस्वाभाविक नजदीकी में रहने को मजबूर कर रही है।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि जब मानव बस्तियां जंगलों पर कब्जा करती हैं और वन्य आवास सिमटते हैं, तो प्राकृतिक दूरी खत्म हो जाती है। इससे इंसान और जानवरों का आमना-सामना बढ़ जाता है और टकराव की घटनाएं तेजी से बढ़ती हैं। उन्होंने कहा कि यह स्थिति जानवरों की गलती नहीं है बल्कि इंसानों के फैलाव से पैदा हुई है। सुप्रीम कोर्ट की अन्य जज बी.वी. नागरत्ना और एम.एम. सुंद्रेश ने भी यही राय जताई। नागरत्ना ने कहा कि “यह जानवर नहीं, बल्कि इंसान हैं जो उनके क्षेत्रों में घुसपैठ कर रहे हैं”। उन्होंने इंसान केंद्रित सोच के बजाय प्रकृति केंद्रित दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत बताई।

 

सबसे ज्यादा असर आदिवासियों और गरीबों पर
अपने भाषण में जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि इंसान-वन्यजीव संघर्ष का सबसे बड़ा नुकसान समाज के कमजोर वर्गों को झेलना पड़ता है। इनमें आदिवासी और हाशिये पर रहने वाले लोग शामिल हैं। वे अक्सर अपने कानूनी अधिकारों और मुआवजे के दावों के बारे में अनजान होते हैं। आर्थिक तंगी और जानकारी की कमी के कारण वे न्याय तक पहुंचने में असमर्थ रहते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इन्हें मदद से वंचित छोड़ दिया गया तो यह इन्हें मानव महत्वाकांक्षाओं का मात्र शिकार बना देगा।

न्याय तक पहुंच और नई स्कीम
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि न्यायपालिका इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। उन्होंने ‘2025 NALSA स्कीम’ का जिक्र किया, जो इंसान-वन्यजीव संघर्ष के पीड़ितों को न्याय दिलाने का बड़ा कदम होगा। इस योजना में पीड़ितों को तेजी से मुआवजा, कानूनी मदद और अन्य राहत उपलब्ध कराई जाएगी। इस स्कीम की प्रति उन्होंने कार्यक्रम में जारी की। इसे केरल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस नितिन जमदार ने ‘गेम चेंजर’ बताया और कहा कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत है।

केरल सरकार की चुनौतियां और प्रयास
कार्यक्रम में राज्य के कानून मंत्री पी. राजीव ने भी माना कि केरल में मानव-वन्यजीव संघर्ष गंभीर स्थिति में पहुंच गया है और मानव जीवन के लिए खतरा बन गया है। उन्होंने कहा कि मौजूदा कानूनी प्रावधान पर्याप्त नहीं हैं और वन्यजीव संरक्षण कानून राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन को त्वरित फैसले लेने की अनुमति नहीं देता। राज्य सरकार ने कई कदम उठाए हैं, जिनमें इस संघर्ष को राज्य आपदा घोषित करना भी शामिल है। यह दो दिवसीय सम्मेलन रविवार को संपन्न होगा।

 

 

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