क्यों गणपति बप्पा को तुलसी चढ़ाना माना जाता है वर्जित, जानिए इसके पीछे की धार्मिक कथा

गणेश जी को तुलसी चढ़ाना वर्जित माना गया है क्योंकि एक कथा के अनुसार तुलसी ने गणपति को विवाह का प्रस्ताव दिया था जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया. इसके बाद दोनों ने एक दूसरे को श्राप दिया और तभी से गणेश पूजा में तुलसी वर्जित हो गई. गणपति को दूर्वा, मोदक और लाल फूल प्रिय माने जाते हैं. तुलसी का निषेध आज भी धार्मिक मान्यता के रूप में माना जाता है.
गणेश चतुर्थी का पर्व पूरे भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. भक्त बप्पा को प्रसन्न करने के लिए उन्हें तरह तरह के भोग, फूल और पत्तियां अर्पित करते हैं. जहां एक ओर भगवान विष्णु और भगवान शंकर को तुलसी अर्पित करना शुभ माना जाता है, वहीं गणेश जी को तुलसी देना वर्जित बताया गया है. यह बात कई लोगों के मन में सवाल भी पैदा करती है कि आखिर बप्पा जो विघ्नहर्ता हैं, उन्हें तुलसी क्यों नहीं चढ़ाई जाती. इसका संबंध एक प्राचीन धार्मिक कथा और मान्यता से जुड़ा है. माना जाता है कि यह कथा सिर्फ आस्था ही नहीं बल्कि जीवन को सही दृष्टिकोण से समझाने का संदेश भी देती है. इसी वजह से आज भी गणेश पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता और इसे विशेष रूप से निषेध माना जाता है. इस बारे में बता रहे हैं ज्योतिषाचार्य अंशुल त्रिपाठी.
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक समय तुलसी जी ने भगवान गणेश को विवाह का प्रस्ताव दिया था. लेकिन गणेश जी ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे थे और उन्होंने विवाह का विचार नहीं किया. जब गणेश जी ने तुलसी का प्रस्ताव ठुकराया तो तुलसी ने क्रोध में आकर उन्हें श्राप दे दिया कि उनका विवाह अवश्य होगा. इसके जवाब में गणेश जी ने भी तुलसी को श्राप दिया कि वह विवाह के लिए अनुपयुक्त होंगी और कभी भी उनकी पूजा में स्वीकार नहीं की जाएंगी. तभी से गणेश पूजा में तुलसी अर्पित करना वर्जित माना जाता है.

हिंदू धर्म में हर फूल, पत्ता और भोग का अपना विशेष महत्व होता है. गणपति जी को दूर्वा, मोदक और लाल फूल प्रिय माने जाते हैं. वहीं तुलसी उनके लिए वर्जित है. इसे केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं बल्कि एक संदेश के रूप में भी देखा जाता है. मान्यता है कि गणपति जी को तुलसी चढ़ाने से पूजा का फल नहीं मिलता और भक्तों की मनोकामना अधूरी रह जाती है.
गणेश चतुर्थी के 10 दिनों तक भक्त बप्पा को दूर्वा घास, शमी पत्र, सिंदूर, लाल फूल और मोदक चढ़ाते हैं. इन चीजों को गणेश जी का प्रिय माना गया है और इन्हें अर्पित करने से बप्पा प्रसन्न होकर सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.

तुलसी का निषेध केवल धार्मिक मान्यता ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक शिक्षा भी है. गणपति जी बुद्धि और विवेक के देवता हैं. उनका जीवन हमें सिखाता है कि हर चीज हर जगह उपयुक्त नहीं होती. जिस प्रकार तुलसी का स्थान विष्णु पूजा में सर्वोच्च है, वहीं गणेश पूजा में उसका प्रयोग वर्जित है. यह संतुलन और सही दृष्टिकोण की सीख देता है.

आज भी घरों और पंडालों में गणेश पूजा के दौरान तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता. कई बार लोग भूल से तुलसी रख देते हैं लेकिन पुरानी मान्यता के कारण इसे तुरंत हटा लिया जाता है. धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में भी इसका उल्लेख मिलता है. यही कारण है कि भक्त पूरी श्रद्धा और परंपरा के साथ गणेश पूजा करते समय तुलसी का इस्तेमाल नहीं करते.