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‘न्यायिक अफसरों के माता-पिता की तरह काम करें अदालतें’, सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट को दी सलाह

महिला न्यायिक अधिकारी ने छह महीने की चाइल्ड केयर लीव के अनुरोध को झारखंड हाईकोर्ट के अस्वीकार करने के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी। पीठ ने झारखंड हाईकोर्ट से कहा कि वह महिला न्यायिक अधिकारी को हजारीबाग में रहने की अनुमति दे या उसे बोकारो स्थानांतरित कर दे।

नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने एक न्यायिक अधिकारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट को सलाह दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालयों को अपने न्यायिक अधिकारियों के प्रति अभिभावक या माता-पिता की तरह व्यवहार करना चाहिए। महिला न्यायिक अधिकारी ने छह महीने की चाइल्ड केयर लीव के अनुरोध को झारखंड हाईकोर्ट के अस्वीकार करने के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी।

 

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने अनुसूचित जाति वर्ग से संबंधित एक अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (एडीजे) की याचिका पर संज्ञान लेते हुए कहा कि उच्च न्यायालयों को अपने न्यायिक अधिकारियों की समस्याओं के प्रति सजग रहना होगा। पीठ ने झारखंड हाईकोर्ट से कहा कि वह एकल अभिभावक महिला न्यायिक अधिकारी को हजारीबाग में रहने की अनुमति दे या उसके बेटे की आगामी 12वीं कक्षा की परीक्षा को ध्यान में रखते हुए बोकारो स्थानांतरित कर दे।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उच्च न्यायालयों को अपने न्यायिक अधिकारियों के प्रति अभिभावक की तरह व्यवहार करना चाहिए और ऐसे मुद्दों को अहंकार का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। अब आप या तो महिला अधिकारी को बोकारो स्थानांतरित कर दें या उसे मार्च/अप्रैल, 2026 तक हजारीबाग में रहने की अनुमति दें। मेरा मतलब है कि जब तक परीक्षाएं समाप्त नहीं हो जातीं। उच्च न्यायालय को निर्देशों का पालन करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया गया।

महिला न्यायिक अधिकारी ने जून से दिसंबर तक छह महीने की चाइल्ड केयर लीव मांगी थी। लेकिन उनका तबादला दुमका कर दिया गया। उन्होंने उच्च न्यायालय में एक आवेदन देकर मांग की कि या तो वह हजारीबाग में ही अपनी सेवाएं जारी रखें या फिर रांची या बोकारो स्थानांतरित कर दिया जाए। उनका दावा था कि दुमका में कोई अच्छा सीबीएसई स्कूल नहीं है।

उन्होंने मामले को लेकर शीर्ष अदालत का रुख किया था। मई में शीर्ष अदालत ने झारखंड सरकार और उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री से महिला अधिकारी की याचिका पर जवाब मांगा था। न्यायिक अधिकारियों पर लागू बाल देखभाल अवकाश नियमों के अनुसार एडीजे अपने सेवाकाल के दौरान 730 दिनों तक के अवकाश के हकदार हैं। बाद में उन्हें तीन महीने की छुट्टी दे दी गई।

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