लोकतंत्र खत्म कर पुलिस स्टेट बनाने की दिशा में मोदी सरकार !

संविधान को खत्म करने और लोकतंत्र को पुलिस स्टेट बनाने की दिशा में मोदी सरकार ने एक कदम और बढ़ा लिया है
संविधान को खत्म करने और लोकतंत्र को पुलिस स्टेट बनाने की दिशा में मोदी सरकार ने एक कदम और बढ़ा लिया है। बुधवार को विपक्ष के भारी विरोध के बीच केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 लोकसभा में पेश किया। हालांकि विपक्ष ने विधेयक की प्रति फाड़कर अपना विरोध दर्ज कराया। बता दें कि ये विधेयक अगर पारित होकर कानून बनता है तो फिर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों को 30 दिनों तक हिरासत में रहने की स्थिति में उनके पद से हटाए जाने का रास्ता साफ हो जाएगा। इसे आसान भाषा में इस तरह समझ सकते हैं कि मान लें जांच एजेंसियों ने प्रधानमंत्री, किसी भी मुख्यमंत्री या मंत्रियों पर भ्रष्टाचार या इसी तरह के किसी गंभीर आरोप पर जांच की, फिर गिरफ्तारी की और अगर आरोपी को पांच साल या उससे अधिक की जेल की सजा वाले अपराध के लिए लगातार 30 दिनों तक गिरफ्तार या हिरासत में रखा जाता है तो फिर वह अपने पद से हटा हुआ माना जाएगा। यहां अदालत की पूरी तरह से अवहेलना होगी, क्योंकि किसी मामले में दोष अदालत में ही साबित हो सकता है, मगर नया कानून बनाकर मोदी सरकार इसमें भी शार्टकट लेकर सजा देने की तैयारी कर चुकी है। विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को भेजने का फैसला सरकार ने लिया है। ये विधेयक एक पूरी तरह से नए कानूनी ढांचे का प्रस्ताव करता है जो जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों, तथा केंद्र में केंद्रीय मंत्रियों और प्रधानमंत्री पर लागू होगा। हालांकि इस में यह भी सुझाव दिया गया है कि बर्खास्त मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को हिरासत से रिहा होने के बाद फिर से नियुक्त किया जा सकता है। लेकिन मौजूदा दौर की राजनीति बताती है कि इस तरह के कानूनों का असल मकसद किसी को पद पर लाना नहीं, बल्कि पद छीनना ही है।
इन लोकसभा चुनावों से पहले विपक्ष ने संविधान बदलने के जिस खतरे से जनता को आगाह किया था, वह दरअसल अब दहलीज तक आ गया है। अगर ये नया कानून बन जाता है तो फिर इसमें कोई शक नहीं कि इसका वहां भरपूर इस्तेमाल होगा, जहां गैर भाजपाई सरकारें हैं। दरअसल भ्रष्टाचार मिटाने और स्वच्छ प्रशासन की लुभावनी बातों की आड़ में मोदी-शाह द्वय ने लोकतंत्र के लिए घातक कदम उठा लिया है, जिसमें जनादेश और अदालतों की भूमिका नगण्य रह जाएगी। मान लें कि लोकतंत्र के लिए दिखावे के लिए चुनाव हों, तब भी कोई गारंटी नहीं रहेगी कि जिसे जनता ने चुना है वही शासन करेगा। बल्कि अब शासन चलाने वाले ईडी और सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों के रहमोकरम पर होंगे और असल में इनकी बागडोर केंद्र सरकार के हाथों में होगी।
पिछले लोकसभा चुनाव से पहले कम से कम तीन ऐसे बड़े प्रकरण आए हैं, जिनमें विपक्ष के नेता कार्रवाई की जद में आए। राहुल गांधी को मानहानि मामले में सजा के नाम पर संसद सदस्यता से बर्खास्त किया गया, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वे फिर से सांसद बने। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भूमि घोटाले की जांच में गिरफ्तार किया गया, हालांकि गिरफ्तारी से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया था, लेकिन उनकी फरारी तक की खबरें चलाई गईं। बाद में उन पर कोई दोष साबित नहीं हुआ। दिल्ली आबकारी घोटाले में दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया गया। उसके बाद उन पर इस्तीफे का दबाव भी खूब बनाया गया। लेकिन श्री केजरीवाल ने अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया। आबकारी घोटाले में तो आप सरकार के कई मंत्रियों और नेताओं को जेल भेजा गया, हालांकि चुनावों के बाद से भाजपा की तरफ से इस मुद्दे पर शांति है। इन तीन बड़े मामलों के अलावा तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, केरल, प.बंगाल, आंध्रप्रदेश ऐसे तमाम गैर भाजपा शासित राज्यों में कई मंत्रियों और नेताओं पर ईडी या सीबीआई की जांच चल रही है। राहुल गांधी पर इस समय कई मुकदमे दर्ज हैं, सोनिया गांधी पर नेशनल हेराल्ड को लेकर जांच चल रही है।
हालांकि इन कार्रवाइयों में दोषसिद्धि की दर बेहद कम है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी ईडी पर कड़ी टिप्पणी की है और उसे राजनैतिक दलों के लिए काम करने से आगाह किया है। गौर करने वाला तथ्य ये भी है कि 11 सालों में भाजपा सरकार में शामिल किसी मंत्री या मुख्यमंत्री पर कार्रवाई नहीं हुई, और प्रधानमंत्री पर तो किसी किस्म की कार्रवाई का सवाल मौजूदा परिदृश्य में तो है ही नहीं। इसका मतलब विपक्ष को कुचलने की नयी तरकीब मोदी-शाह ने निकाली है। इसके साथ ही एनडीए के घटक दलों पर भी दबाव का यह नया पैंतरा है कि अगर किसी ने मोदी सरकार के खिलाफ आवाज उठाई तो फिर 30 दिन की हिरासत का डर दिखाया जाएगा। खासकर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के लिए ये अघोषित धमकी है, क्योंकि दोनों पर भ्रष्टाचार के आरोप खुद भाजपा ने पहले लगाए हैं।
वोट चोरी के मुद्दे के बाद जनता का बड़ा वर्ग चुनावी धांधली पर सवाल उठाने लगा है। ऐसे में प्रस्तावित संशोधन विधेयक सरकार का नया पैंतरा हैं। विपक्ष इसकी आलोचना तो कर रहा है, लेकिन उसे अब एक मजबूत रणनीति बनाने की जरूरत है ताकि एक व्यक्ति वाले शासन की तरफ बढ़ने से देश को बचाया जा सके। फिलहाल देखने वाली बात ये है कि सरकार इस विधेयक को पारित कराने के लिए कौन सी चाल चलती है क्योंकि संविधान संशोधन विधेयक के लिए दो तिहाई बहुमत होना जरूरी है, जिसमें सरकार फंस सकती है।