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टेस्ट क्रिकेट कई देशों को दिवालिया बना सकता है, सबको खेलने को मजबूर ना करें, ऑस्ट्रेलिया ने किसे दी चेतावनी

भारत, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया को छोड़ दें तो तकरीबन हर देश में टेस्ट मैचों में उतने दर्शक स्टेडियम नहीं पहुंचते, जितने वनडे या टी20 मैच देखने आते हैं. इस कारण कई देशों के लिए टेस्ट मैच खेलना घाटे का सौदा साबित हो रहा है.

 

नई दिल्ली.

 क्रिकेट में टेस्ट फॉर्मेट सबसे पुराना और प्रतिष्ठित है. लेकिन पहले वनडे और फिर टी20 फॉर्मेट ने टेस्ट मैचों की लोकप्रियता पर खासा असर डाला है. इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया को छोड़ दें तो तकरीबन हर देश में टेस्ट मैचों में उतने दर्शक स्टेडियम नहीं पहुंचते, जितने वनडे या टी20 मैच देखने आते हैं. इसी कारण अब टेस्ट खेलने वाले देशों को दो टियर में बांटने की बातें होने लगी हैं. इस बीच क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के सीईओ टॉड ग्रीनबर्ग ने कहा है कि सभी देशों को टेस्ट खेलने की जरूरत नहीं है क्योंकि इससे वित्तीय रूप से कुछ कमजोर बोर्ड पर बोझ पड़ता है. टेस्ट मैच खेलने का दबाव डालने पर कई देश (बोर्ड) दिवालिया भी हो सकते हैं.

 

दुनिया में अभी सिर्फ 12 देश ही ऐसे हैं जिन्हें टेस्ट टीम का दर्जा हासिल है. इनमें से कई टीमों को आईसीसी वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि उनका खेल का स्तर थोड़ा नीचे है. टॉड ग्रीनबर्ग ने कहा कि टेस्ट खेलने वाले देशों की संख्या कम होना क्रिकेट के लिए नुकसानदायक नहीं बल्कि फायदेमंद ही है. टेस्ट टीमों के साथ-साथ मैच भी कम ही होते हैं. भारत, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड और पाकिस्तान जैसे देश साल में 10-12 टेस्ट खेलते हैं. बाकी देश 10 से कम टेस्ट मैच ही खेलते हैं.
टॉड ग्रीनबर्ग ने पत्रकारों से कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि टेस्ट खेलने वाले देशों की कोई निश्चित संख्या है. मुझे लगता है कि भविष्य में टेस्ट क्रिकेट की कमी हमारे लिए नुकसानदायक नहीं बल्कि फायदेमंद होगी. मेरे कहने का मतलब है कि मुझे नहीं लगता कि विश्व क्रिकेट में हर किसी देश को टेस्ट क्रिकेट खेलने की इच्छा रखने की जरूरत है या उसे इसके लिए मजबूर किया जाए. इससे कोई परेशानी नहीं है.’
टॉड ग्रीनबर्ग ने इसके बाद एक खतरे का अंदेशा जताया. उन्होंने कहा, ‘बहुत से परंपरावादी लोग शायद इसे पसंद नहीं करें. लेकिन अगर हम उन्हें (सभी देशाें) टेस्ट क्रिकेट खेलने के लिए मजबूर करेंगे तो हम सचमुच इन देशों को दिवालिया बनाने की कोशिश कर रहे होंगे.’ बता दें कि जिम्बाब्वे, अफगानिस्तान, श्रीलंका समेत कई देशों के क्रिकेट बोर्ड आर्थिक तंगी से जूझते रहे हैं. इसी कारण जिम्बाब्वे क्रिकेट बोर्ड कई बार डीआरएस इस्तेमाल नहीं करता क्योंकि इसके लिए जितने संसाधन की जरूरत होती है, उसका खर्च जुटाना मुश्किल होता है.

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