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पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना बोले- सोचने और व्यवहार के तरीके बदल सकती है समाचार रिपोर्टिंग

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने समाज में समाचार रिपोर्टिंग के असर को रेखांकित किया है। उन्होंने लोगों के सोचने और व्यवहार करने के तरीकों पर समाचार प्रसारण के असर का जिक्र करते हुए कहा, प्रेस और न्यायपालिका को हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के दो प्रहरी हैं। जानिए रिटायर्ड जस्टिस खन्ना ने समाचार रिपोर्टिंग के और किन पहलुओं पर बात की।

 

नई दिल्ली

 

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, जहां न्यायिक फैसले समाज पर असर डालते हैं, वहीं समाचार रिपोर्टिंग लोगों के सोचने और व्यवहार करने के तरीके को बदल सकती है। उन्होंने प्रेस और न्यायपालिका को लोकतांत्रिक व्यवस्था के दो प्रहरी बताया, जो कार्यपालिका और विधायिका के अतिक्रमण पर निगरानी रखते हैं। रिटायर्ड जस्टिस खन्ना ने कहा कि खबरें केवल तथ्यों का निष्क्रिय स्रोत नहीं होतीं, बल्कि वे अवचेतन रूप से हमारे जीवन में हस्तक्षेप करती हैं। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक समाज में मीडिया रिपोर्टिंग तभी स्वस्थ मानी जाती है जब उसमें पूर्वाग्रह, पक्षपात और ध्रुवीकरण न हो। मीडिया यह काम सीधे तौर पर करती है, जबकि न्यायपालिका इसे अधिक सूक्ष्म तरीके से अंजाम देती है। दोनों का उद्देश्य उकसाने के लिए नहीं, बल्कि लोकतंत्र को संरक्षित और मजबूत करने के लिए सत्य बोलना होना चाहिए।

उन्होंने जोर दिया कि दोनों संस्थाओं की वैधता जनता के विश्वास और भरोसे से आती है, जो तर्क, ईमानदारी और निष्पक्षता पर आधारित होते हैं। यदि इनमें पक्षपात, गलत सूचना या स्वतंत्रता की कमी आ जाए तो यह विश्वास खत्म हो सकता है, और इससे अधिकारों की हानि होती है। इसलिए दोनों क्षेत्रों में तटस्थता, निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता जरूरी है। पूर्व चीफ जस्टिस सोमवार को ‘प्रेम भाटिया जर्नलिज्म अवॉर्ड्स और मेमोरियल लेक्चर’ (एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित) में ‘न्यायपालिका और मीडिया: साझा सिद्धांत, समानताएं और भिन्नताएं’ विषय पर अपने विचार साझा कर रहे थे।

क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अधिक व्यापक, समावेशी और लचीली हुई है? 
पूर्व सीजेआई खन्ना ने सवाल किया कि 75 साल बाद क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अधिक व्यापक, समावेशी और लचीली हुई है? क्या इसमें नए स्वर, गहन असहमति और संवाद के उभरते तौर-तरीकों को समायोजित करने के लिए अपना दायरा बढ़ाया है? क्या इसने आज की मांगों का सार्थक ढंग से जवाब दिया है? उन्होंने चेताया कि इस स्वतंत्रता को राजनीतिक हस्तक्षेप, डिजिटल विकृति और आर्थिक असुरक्षा जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

जिम्मेदार रिपोर्टिंग भावनाओं को भड़काए बिना पूरी कहानी बयां करती है
उन्होंने कहा कि जिम्मेदार रिपोर्टिंग पूरी कहानी बताती है, भावनाएं भड़काए बिना और बहस को सीमित किए बिना, तथा विभिन्न दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करती है। जैसे न्यायाधीश सभी पक्षों को तौलकर तर्कसंगत फैसले देते हैं, वैसे ही पत्रकारिता को भी इसी अनुशासन और मानक का पालन करना चाहिए। सत्य, दृष्टिकोण और आलोचनात्मक सोच ही न्यायपालिका और स्वतंत्र प्रेस की साझा भूमि है।

पीत पत्रकारिता के नए रूपों से सावधान रहने की जरूरत
उन्होंने मीडिया को चेताया कि वह तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने, अपनी सुविधा के अनुसार काटने-छांटने या पूर्वाग्रहपूर्ण फ्रेमिंग से बचे। मीडिया को संवाद और आलोचनात्मक सोच में संलग्न होना चाहिए। उन्होंने ‘पीत पत्रकारिता’ के नए रूपों से सावधान रहने की बात कही।

गहन सोचने की क्षमता घटाती है फास्ट न्यूज 
जस्टिस खन्ना ने कहा कि ‘फास्ट न्यूज’ के नकारात्मक असर हैं- यह गहन सोचने की क्षमता घटाती है। सोशल मीडिया पर समय और बौद्धिक प्रयास की जरूरत नहीं होती, जिससे युवा जटिल मुद्दों पर गंभीर विचार करने की क्षमता खो रहे हैं। परिणामस्वरूप सर्वश्रेष्ठ विचार सामने नहीं आते, बल्कि भावनाओं या बहुमत के आधार पर विचार हावी हो जाते हैं। उन्होंने टीवी बहसों को ‘फ्लेम वॉर’ बताया और कहा कि इनमें रचनात्मक पुल नहीं बनते।अंत में उन्होंने कहा कि न्यायपालिका और प्रेस अलग-अलग संस्थाएं हैं, लेकिन दोनों का स्वास्थ्य एक-दूसरे पर निर्भर है। संविधान ने दोनों को अलग भूमिकाएं दी हैं, और किसी को भी दूसरे की भूमिका नहीं लेनी चाहिए।

 

 

 

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