उपराष्ट्रपति के इस्तीफे के असल कारण क्या मोदीजी है तो सब कुछ मुमकिन …?

मोदी है तो मुमकिन है, यह भाजपा का केवल चुनावी या सियासी जुमला नहीं है, बल्कि भाजपा इसे भारत की हकीकत बनाने पर तुली है
मोदी है तो मुमकिन है, यह भाजपा का केवल चुनावी या सियासी जुमला नहीं है, बल्कि भाजपा इसे भारत की हकीकत बनाने पर तुली है। इसका शर्मनाक उदाहरण सोमवार को संसद का मानसून सत्र शुरु होते ही नजर आया। जिसमें राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ के आसंदी पर होने की पूरी तरह उपेक्षा करते हुए भाजपा अध्यक्ष और सांसद जे पी नड्डा ने विपक्ष को कहा कि आप लोग जो बोलेंगे वो रिकॉर्ड में नहीं जाएगा (नथिंग विल गो ऑन रिकार्ड) केवल मैं जो बोलूंगा वो ही रिकॉर्ड में जाएगा। यह आपको मालूम होना चाहिए। जिस तरह से श्री नड्डा ने आसंदी के अधिकार और सम्मान दोनों का हनन किया, वह अपने आप में अनोखा है। इसी राज्यसभा में उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने पिछले कार्यकाल में कई सांसदों को निलंबित कर दिया था, लेकिन श्री नड्डा के खिलाफ क्या इस अनुशासनहीनता पर कोई कार्रवाई होगी, अब यह सवाल ही बेमानी है। क्योंकि मोदी शासनकाल में संवैधानिक तकाजों और मर्यादाओं को तार-तार किया जा रहा है, यह उसका ही एक प्रमाण है, मोदी के होने पर सब कुछ मुमकिन होने का प्रदर्शन है।
बहरहाल, राज्यसभा में सोमवार दोपहर करीब 12 बजे के इस घटनाक्रम के बाद भी पूरा दिन सामान्य तरीके से ही बीता, लेकिन रात को अचानक खबर आई कि भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से अचानक इस्तीफा दे दिया। इस खबर से राजनैतिक गलियारों में हलचल मच गई। जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे अपने पत्र में कहा, ‘सेहत की देखभाल को महत्व देने और डॉक्टरी सलाह का पालन करने के लिए, मैं भारत के उपराष्ट्रपति के पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूं, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 67(ए) में प्रावधान है।’ इसके आगे उन्होंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री समेत सबका आभार जताया। गौरतलब है कि श्री धनखड़ मार्च में ही हृदय रोग संबंधी बीमारी से पीड़ित हुए थे, उनका इलाज भी चला था। लेकिन इसके बाद वे जल्द ही सार्वजनिक कार्यक्रमों में नजर आने लगे थे। वैसे भी इस्तीफे के इस कारण पर भरोसा नहीं किया जा रहा है, क्योंकि अगर ऐसी कोई बात थी तो फिर संसद का मानसून सत्र शुरु होने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा क्यों नहीं दिया। क्यों सत्र शुरु होने के साथ ही उन्हें स्वास्थ्य की चिंता हुई। इस इस्तीफे के वक्त और हालात दोनों संदिग्ध हैं।
आश्चर्य इस बात पर भी है कि जब इस्तीफे की खबर लगते ही विपक्ष की तरफ से प्रतिक्रियाएं आने लगीं और श्री धनखड़ के स्वास्थ्य लाभ की कामना की जाने लगी। तब न राष्ट्रपति महोदया ने न भाजपा के किसी नेता ने इस पर कुछ कहा। कम से कम उनके स्वास्थ्य की चिंता पर ही दो शब्द कहे जा सकते थे। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि राष्ट्रपति मुर्मू भी प्रधानमंत्री की हरी झंडी का इंतजार करती हैं। श्री मोदी ने पूरे 12 घंटे बाद इस इस्तीफे पर प्रतिक्रिया दी कि श्री जगदीप धनखड़ जी को भारत के उपराष्ट्रपति सहित विभिन्न क्षमताओं में हमारे देश की सेवा करने के कई अवसर मिले हैं। उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं।’
श्री मोदी की प्रतिक्रिया में साफ तौर पर यह झलका दिया गया है कि जगदीप धनखड़ को कई मौके दिए गए और अब आगे नहीं मिलेंगे। यानी राष्ट्रपति बनने की कोई उम्मीद उनके सामने नहीं है। इस प्रतिक्रिया का सीधा सा अर्थ यह भी है कि अब जगदीप धनखड़ को इस्तीफे पर पुनर्विचार करने भी नहीं कहा जाएगा। इसका एक मतलब है कि श्री धनखड़ से इस्तीफा लिया गया और इसकी तैयारी शायद कई दिनों से चल रही थीं। ऐसा नहीं है कि जगदीप धनखड़ ने अपनी तरफ से भाजपा की सेवा में कोई कसर छोड़ी हो। जब वे प.बंगाल के राज्यपाल थे, तब भी टीएमसी के लिए उनका व्यवहार भाजपा वाला ही था। और जब वे उपराष्ट्रपति बनाए गए और राज्यसभा में सभापति बने, तब भी अपनी चाटुकारिता के प्रदर्शन में उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी। श्री मोदी के आने पर खड़े होना, उन्हें झुक कर नमस्कार करना यह सब तो व्यावहारिक तौर पर उन्होंने दिखाया, इसके अलावा राज्यसभा में भी वे खुलकर भाजपा के साथ खड़े दिखते रहे, ठीक वैसे ही जैसे ओम बिड़ला लोकसभा में नजर आते हैं।
मगर सोमवार को राज्यसभा में श्री धनखड़ का रुख थोड़ा अलग था, उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष और सदन में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को ट्रंप सीजफायर विवाद पर बोलने दिया। जबकि भाजपा इस पर रोक लगाए बैठी थी। शायद यह एक बड़ी तात्कालिक वजह बनी कि जगदीप धनखड़ को एक दिन भी और रुकने की मोहलत नहीं दी गई। उन्हें रात गुजरने से पहले ही इस्तीफा देने कहा गया होगा, तभी जो काम मंगलवार को हो सकता था, वह सोमवार रात ही हो गया। ऐसा करके संभवत: नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने भाजपा के उन बाकी नेताओं को चेतावनी दे दी है कि अगर उनके किसी फैसले से इस जोड़ी को असुविधा होगी, तो उनका हश्र भी यही होगा। बहरहाल, अब इस इस्तीफे के बाद तमाम कयास लग रहे हैं कि अब उपराष्ट्रपति की जिम्मेदारी किसे सौंपी जाएगी। क्या नीतीश कुमार को इस पद पर बिठाकर बिहार के लिए कोई बड़ा खेल भाजपा रचेगी। क्या जे पी नड्डा को यह जिम्मा सौंपा जाएगा, ताकि वे आसंदी पर बैठकर कह सकें नथिंग विल गो ऑन रिकार्ड। आगे क्या होगा, यह तो शायद श्री मोदी के इस विदेश दौरे के बाद पता चले। लेकिन सोमवार के इस घटनाक्रम ने जाहिर कर दिया कि देश में अब न संविधान सुरक्षित है, न संवैधानिक पदों की मर्यादा का कोई ख्याल बाकी है। राजनाथ सिंह ने कहा था कि एनडीए में इस्तीफे का कोई चलन नहीं है, श्री धनखड़ के इस्तीफे ने उस चलन को चला दिया है। अब देखना होगा कि आगे और किन-किन नेताओं या मंत्रियों से ऐसी ही कुर्बानी ली जाती है ताकि सत्ता बची रहे। बाकी शिवसेना सांसद संजय राउत का कहना है कि सितंबर का इंतजार कीजिए, कुछ बड़ा होने वाला है।