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राष्ट्रपति-राज्यपाल के पावर: क्यों संविधान पीठ ही करेगा सुनवाई, कहां से शुरू हुआ पूरा विवाद?

Presidential Reference: राष्‍ट्रपति और राज्‍यपाल की शक्तियों को लेकर बहस छिड़ी हुई है. केरल, तमिलनाडु और पंजाब के गवर्नर की ओर से पूर्व में उठाए गए कदमों पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया था. शीर्ष अदालत का यह फैसला खासतौर पर तमिलनाडु से जुड़ा था. कोर्ट के फैसले के बाद एक और नया संवैधानिक सवाल खड़ा हो गया.

हाइलाइट्स
  • राज्‍यपाल के कदम के खिलाफ तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी याचिका
  • दो जजों की पीठ ने दिया था बड़ा फैसला, अब प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर होगी सुनवाई
  • राष्‍ट्रपति और राज्‍यपाल के संवैधानिक अधिकारों और शक्तियों से जुड़ा है यह मामला

 

Presidential Reference
सुप्रीम कोर्ट 22 जुलाई 2025 को राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत मांगे प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुनवाई करेगा. यह मामला राज्य विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा निर्णय लेने की समयसीमा तय करने से जुड़ा है. सीजेआई जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ इस संवैधानिक मुद्दे पर विचार करेगी. संविधान पीठ में सीजेआई के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्‍हा और जस्टिस एएस चंदुरकर शामिल हैं. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 13 मई को अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट की सलाह मांगी थी. इस अधिकार के तहत राष्ट्रपति कानून या तथ्य से जुड़े किसी प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट से राय मांग सकते हैं. हालांकि, कोर्ट की यह राय फैसले की तरह बाध्यकारी नहीं होती है. यह प्रेसिडेंशियल रेफरेंस सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के उस फैसले के पांच हफ्ते बाद मांगा गया था, जिसमें दो-न्यायाधीशों की पीठ ने राष्ट्रपति के पास भेजे गए विधेयकों को मंजूरी देने की अधिकतम समयसीमा तीन महीने तय कर थी। उस फैसले में तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा 10 विधेयकों को लंबित रखने या अस्वीकृत करने के निर्णय को भी खारिज कर दिया गया था. अब संविधान पीठ तय करेगी कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेयकों पर निर्णय लेने की समय-सीमा तय करना कितना संवैधानिक और व्यावहारिक है.

विधेयक को स्‍वीकार करने का क्‍या है संवैधानिक प्रावधान?

दरअसल, संबंधित राज्‍य की विधानसभा से पारित किसी विधेयक को गवर्नर ने राष्‍ट्रपति के पास विचार के लिए भेजा है तो उसे कितने दिनों में लौटाया जाए. संविधान में इसको लेकर किसी तरह की समयसीमा तय नहीं की गई है. तमिलनाडु के राज्‍यपाल विधानसभा से पास 10 विधेयकों को राष्‍ट्रपति के पास विचार के लिए भेजकर उसपर अपनी सहमति‍ देने से इनकार कर दिया. उधर, राष्‍ट्रपति की ओर से इसपर तत्‍काल विचार नहीं किया गया. इसके बाद तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. 8 अप्रैल 2025 को जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्‍यक्षता वाली दो जजों की पीठ ने इसपर बड़ा फैसला दिया. कोर्ट ने राज्‍यपाल की ओर से राष्‍ट्रपति के पास विचार के लिए भेजे गए विधेयकों को क्लियर करने के लिए तीन महीने की समयसीमा तय कर दी. शीर्ष अदालत के इस आदेश के बाद राष्‍ट्रपति ने संविधान के अनुच्‍छेद 143 के तहत दी गई शक्तियों का इस्‍तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से प्रेसिडेंशियल रेफरेंस मांगा.

 

पांच जजों की संविधान पीठ ही क्‍यों कर रही सुनवाई?

 

राष्‍ट्रपति की ओर से प्रेसिडेंशियल रेफरेंस मांगे जाने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ इसपर 22 जुलाई 2025 को व‍िचार करेगी. अन्‍य फैसलों की तरह इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दी गई राय बाध्‍यकारी नहीं होगी. संविधान के अनुच्‍छेद 145(3) के तहत किए गए प्रावधान के अनुसार, प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर पांच जजों की संविधान पीठ ही सुनवाई कर सकती है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट मेजोरिटी ओपिनयन के साथ प्रेसिडेंशियल रेफरेंस को वापस लौटा देगा. संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह पर कार्य करता है. सलाहकारी अधिकार क्षेत्र उसे कुछ संवैधानिक मामलों पर कार्य करने के लिए स्वतंत्र सलाह लेने का अधिकार देता है. राष्ट्रपति ने 1950 से अब तक कम से कम 15 मौकों पर इस शक्ति का प्रयोग किया है.

 

 

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