‘न्याय का मजाक…’, आदेश के बावजूद व्यक्ति को रिहा न करने पर सुप्रीम कोर्ट ने जेल अधीक्षक को किया तलब

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अप्रैल में जमानत मिलने के बाद भी आरोपी को जेल से रिहा न करना न्याय का मजाक है। कोर्ट ने गाजियाबाद के जेल अधीक्षक को तलब किया है। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश के जेल महानिदेशक को भी वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए पेश होने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि जमानत आदेश में उपधारा न होने का बहाना गलत है और इस पर जांच जरूरी है।
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि यह न्याय का मजाक है कि जिस व्यक्ति को अप्रैल में जमानत दी गई थी, उसे अब तक जेल से रिहा नहीं किया गया है। यह उत्तर प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानून से जुड़ा मामला है। जस्टिस के वी विश्वनाथन और एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने नाराजगी जताई, जब व्यक्ति ने कहा कि उसे इसलिए रिहा नहीं किया गया, क्योंकि जमानत आदेश में उत्तर प्रदेश धर्मांतरण रोकथाम कानून, 2021 की एक उप-धारा का जिक्र नहीं था।
इस पर बेंच ने गाजियाबाद की जिला जेल के जेल अधीक्षक को निर्देश दिया कि वह 25 जून को व्यक्तिगत रूप से सुप्रीम कोर्ट में हाजिर हों। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि यह मामला ‘बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति’ को दर्शाता है। इसलिए, उत्तर प्रदेश के जेल महानिदेशक को भी वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए पेश होने का निर्देश दिया गया है।
शीर्ष कोर्ट ने यह भी गौर किया कि जब सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल को आरोपी को जमानत दी थी। गाजियाबाद की एक निचली अदालत ने भी 27 मई को आरोपी को रिहा करने का आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि अगर किसी और मामले में हिरासत की जरूरत नहीं है तो उसे मुचलके पर रिहा किया जाए। लेकिन याचिकाकर्ता का कहना है कि उसे इसलिए रिहा नहीं किया गया क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कानून की धारा 5 की उपधारा (1) का जिक्र नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसका 29 अप्रैल का आदेश पूरी तरह स्पष्ट था और इसमें कहा गया था कि जब तक मामले की सुनवाई चल रही है, तब तक आरोपी को जमानत मिलनी चाहिए। इस व्यक्ति पर पहले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 366 (महिला को जबरन शादी के लिए अगवा करना) और धर्म परिवर्तन रोकथाम कानून, 2021 की धारा 3 और 5 (झूठ, दबाव, धोखा या लालच से धर्म बदलवाने पर रोक) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
अब याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि 29 अप्रैल के आदेश को संशोधित किया जाए और उसमें स्पष्ट रूप से धारा 5 की उपधारा (1) शामिल की जाए। कोर्ट ने कहा कि अप्रैल के आदेश में पहले ही जरूरी धाराओं का जिक्र है। यह न्याय का अपमान है कि केवल उपधारा न होने की वजह से आरोपी आज तक जेल में है। इस मामले की गहराई से जांच होनी चाहिए।
हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील को चेतावनी भी दी कि अगर बयान गलत निकला तो कड़ी कार्रवाई होगी। कोर्ट ने कहा, हम आपको फिर से बता रहे हैं, अगर यह बयान गलत हुआ या आप किसी और मामले में हिरासत में हैं, तो गंभीर कार्रवाई की जाएगी। लेकिन अगर यही उपधारा वजह है, तो हम अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करेंगे, क्योंकि यह आजादी का मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा, इस अदालत को हल्के में न लें। यह मामला अब 25 जून को दोबारा सुना जाएगा।