‘तकनीक को न्याय प्रणाली का चालक बनाया, तो जनता का अदालतों पर कम होगा भरोसा’, सीजेआई गवई की चेतावनी

CJI: सीजेआई बी.आर. गवई ने चेताया कि तकनीक को न्याय प्रणाली का नियंत्रण देने से जनता का अदालतों में भरोसा कम हो सकता है। उन्होंने कहा कि डिजिटल युग में अदालतों को मानवता के साथ-साथ व्यापारिक व्यावहारिकता का भी संतुलन बनाए रखना चाहिए।
नई दिल्ली
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने न्यायिक प्रणाली में तकनीक को प्राथमिकता देने के खिलाफ चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि अगर तकनीक को न्याय व्यवस्था का नियंत्रण दे दिया गया, तो इससे जनता का न्यायपालिका पर भरोसा कमजोर हो सकता है। उन्होंने अदालतों से मानवता को न भूलने की अपील की।
सीजेआई लंदन में ब्रिटिश इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एंड कंपरेटिव लॉ में ‘अदालतें, वाणिज्य और कानून का शासन’ विषय पर बोल रहे थे। अपने संबोधन में उन्होंने डिजिटल युग में न्यायपालिका की भूमिका पर बात की। उन्होंने कहा कि वाणिज्यिक व्यवहार और कानून के शासन के बीच संतुलन की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अदालतों को इस प्रक्रिया में वाणिज्यिक व्यवहारिकता के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिए।
यहां पर अदालतों के वाणिज्यिक व्यवहारिकता के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने का आशय यह है कि न्यायालयों को व्यापार और उद्योग से जुड़े मामलों में निर्णय लेते समय व्यवहारिक और व्यावसायिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, ताकि न्याय भी मिले और व्यापार में अनावश्यक रुकावटें भी न आएं।
उन्होंने पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ के उस बयान का भी हवाला दिया कि तकनीक का उपयोग न्याय को सबके लिए सुलभ बनाने का माध्यम होना चाहिए। न्यायमूर्ति गवाई ने कहा, जिस क्षण हम तकनीक को हमारी न्याय प्रणाली का चालक बना देते हैं, उसी क्षण जनता का हम पर विश्वास डगमगाने लगता है और उसके साथ ही कानून के शासन की नींव भी हिलती है।
उन्होंने आगे कहा, तकनीकी बदलाव की इस दौड़ में हमें अपनी मानवता को नहीं खोना चाहिए। कानून का शासन कोई कोरी अवधारणा नहीं है, बल्कि यह लोगों के वास्तविक संघर्षों के लिए एक जीवंत वादा है। हर मामला किसी की न्याय की उम्मीद और व्यवस्था में उसके भरोसे का प्रतीक होता है।
उन्होंने कहा कि जब लोग परंपरा और नवाचार के बीच खड़े होते हैं, तब अदालतों को कानून के शासन के प्रहरी के रूप में प्राचीन ज्ञान की रक्षा और भविष्य के न्याय की दिशा तय करनी होती है। उन्होंने दुनियाभर की अदालतों से अपील की कि वे बदलते वाणिज्यिक और तकनीकी परिदृश्य में कानून के शासन को बनाए रखें।
सीजेआई ने कहा, वैश्विक वाणिज्य के क्षेत्र में हमारे पास यह ताकत है कि हम स्वतंत्रता को न्याय के साथ जोड़कर भावी पीढ़ियों के लिए भरोसेमंद और प्रभावी वाणिज्यिक विवाद निपटान प्रणाली को कायम रखें। डिजिटल युग में कानून का शासन केवल हमारी चिंता नहीं, बल्कि हमारी सक्रिय और समझदारी भरी भागीदारी की मांग करता है, जिसमें वाणिज्यिक समझदारी भी जरूरी है। न्यायपालिका की भूमिका पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि अदालतें कानून के शासन को कायम रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।
अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र भारत बनेगा: सीजेआई गवाई
सीजेआई गवई ने गुरुवार को कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र बनने की दिशा में लगातार प्रयास कर रहा है। इसके लिए भारत ने एक प्रगतिशील कानून व्यवस्था, फैसलों को लागू करने में सक्षम न्यायपालिका और मजबूत संस्थागत ढांचा तैयार किया है।
उन्होंने कहा कि भारत और ब्रिटेन के बीच कानूनी साझेदारी की एक लंबी विरासत है, जो लोक-विधि के सिद्धांतों पर आधारित है। उन्होंने जुलाई 2018 में भारत और ब्रिटेन के बीच हुए समझौते का जिक्र किया, जिससे कानून और न्याय के क्षेत्र में आपसी सहयोग को बढ़ावा मिला है। उन्होंने कहा कि इस साल दोनों देशों के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते से व्यापारिक और आर्थिक सहयोग को और मजबूती मिलेगी। सीजेआई ने कहा कि भारत और ब्रिटेन मिलकर ऐसा माहौल बना सकते हैं, जहां व्यापारिक विवादों का समाधान तेज, भरोसेमंद और लागत-कुशल तरीके से किया जा सके।
सीजेआई ने कहा कि व्यापार में विवाद होना सामान्य है, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि उन्हें कैसे हल किया जाता है। मध्यस्थता ऐसा तरीका है, जिससे भरोसे और व्यापारिक संबंधों को नुकसान पहुंचाए बिना विवाद सुलझाए जा सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत और ब्रिटेन के कानून एक जैसे हैं, जिनमें पक्षों की स्वतंत्रता, मध्यस्थों की निष्पक्षता और फैसलों की अंतिमता पर जोर दिया गया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का केंद्र बनाने के लिए विश्व स्तर के स्वतंत्र और निष्पक्ष मध्यस्थों की जरूरत है। साथ ही, भारतीय वकीलों के पास वैश्विक स्तर पर मध्यस्थ बनने की क्षमता है, लेकिन अभी तक यह पूरी तरह से उपयोग नहीं हो पाई है।