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गुजरात में दो दिन का दौरा और ढेरों गलतियां मगर इससे अंतत: देश की प्रतिष्ठा दांव पर ?

26 और 27 मई को दो दिन के गुजरात दौरे पर पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने वडोदरा, दाहोद, भुज, कच्छ, गांधीनगर तमाम जगहों पर कहीं भाषण दिए, कहीं रोड शो किए

 

26 और 27 मई को दो दिन के गुजरात दौरे पर पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी ने वडोदरा, दाहोद, भुज, कच्छ, गांधीनगर तमाम जगहों पर कहीं भाषण दिए, कहीं रोड शो किए। इस दौरान उनका पूरा जोर आत्मप्रचार पर रहा। वैसे भी देश में श्री मोदी से पहले ऐसा कोई प्रधानमंत्री नहीं हुआ जो इस कदर आत्ममुग्ध हो कि बात-बात में अपना नाम लेकर ही संवाद करे। लेकिन प्रधानमंत्री के भाषणों में अक्सर मोदी ने ये किया, मोदी ने वो किया, मोदी यह कर सकता है, यह मोदी की गारंटी है, जैसे वाक्य सुने जा सकते हैं। नाम के अलावा श्री मोदी का खासा ध्यान अपने परिधान पर भी रहता है। जैसे 26 मई की सुबह नरेन्द्र मोदी जब वडोदरा में थे तो लाल-पीले रंग की पगड़ी, सामने सूर्य के डिजाइन वाला ब्रोच, सफेद कुर्ते पर प्याज़ी रंग जैकेट उन्होंने पहनी थी, इसके बाद दाहोद में उन्होंने सफेद कुर्ते पर भगवा जैकेट पहनी और सिर पर हैलमेट लगाया क्योंकि लोकोमोटिव मैन्यूफैक्चरिंग वर्क शॉप का उद्घाटन करना था। फिर श्री मोदी पहुंचे भुज, जहां उन्होंने सफेद कुर्ते पर ग्रे रंग की जैकेट पहनी और उसके बाद शाम तक जब वो कच्छ पहुंचे तो सफेद कुर्ते पर धारीदार ग्रे जैकेट, रंग-बिरंगी बार्डर का सफेद पटका गले में और सिर पर कत्थई, हरे, लाल रंग की पगड़ी पहने नजर आए।

26 मई का दिन नरेन्द्र मोदी के लिए खास था, क्योंकि 2014 में इसी तारीख को उन्होंने पहली बार देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। मगर क्या इस दिन को थोड़ा गरिमामय नहीं बनाया जा सकता था, क्या फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता से इसे दूर नहीं रखा जा सकता था, इस बारे में विचार करने की जरूरत है। गरिमामय शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर को भुनाने के लिए जो रोड शो किया गया, उसमें कर्नल सोफिया कुरैशी का परिवार भी बाद में श्री मोदी के साथ आया। अब खुलासा हुआ है कि उन्हें जिला प्रशासन की तरफ से आने का संदेश मिला था। इन्हीं कर्नल कुरैशी पर अभद्र टिप्पणी करने वाले विजय शाह अब भी भाजपा में बने हुए हैं, लेकिन उनके परिवार को नरेन्द्र मोदी मंच पर साथ रख रहे हैं। उधर भुज में जो भाषण नरेन्द्र मोदी ने दिया, वैसी भाषा कभी किसी प्रधानमंत्री ने इस्तेमाल नहीं की। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को आतंक की बीमारी से मुक्त करने के लिए पाकिस्तान की अवाम को भी आगे आना होगा। सुख-चैन की ज़िंदगी जियो, रोटी खाओ, वरना मेरी गोली तो है ही।

पूरी दुनिया को आतंकवाद के खिलाफ लड़ने का संदेश दिया जा सकता है, लेकिन किसी देश विशेष का नाम लेकर वहां की जनता को कुछ कहना यह विदेश नीति के तकाजों के खिलाफ है, लेकिन श्री मोदी किसी तकाजे पर कहां यकीन करते हैं। जिस तरह वे ट्रंप के लिए वोट मांग आए थे, वैसे ही उन्होंने पाकिस्तानी जनता को आगे आने की सलाह दे दी। और उसके बाद मेरी गोली तो है ही, वाली बात कहकर और बड़ी भूल कर दी। क्योंकि भारत की अब तक यही नीति रही है कि वह पहले से किसी पर आक्रमण नहीं करता, केवल आत्मरक्षा के लिए जवाब देता है। मगर यहां प्रधानमंत्री जिस धमकी वाले अंदाज में बात कर रहे हैं, वह बी ग्रेड फिल्मों का घटिया संवाद हो सकता है, प्रधानमंत्री के भाषण में उसकी जगह नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन शायद श्री मोदी का अभिनय की तरफ इतना झुकाव बढ़ गया है, या शेक्सपियर से वे इतना प्रभावित हैं कि उनकी लिखी दुनिया एक रंगमंच है, पंक्ति को उन्होंने देश एक रंगमंच है में तब्दील कर दिया है और अब वे इसी रंगमंच पर दिन-रात अभिनय करना चाहते हैं। सोमवार के भाषण की गलतियां मंगलवार को भी जारी रहीं।

मंगलवार 27 मई को पं.नेहरू की पुण्यतिथि थी, इस अवसर पर श्री मोदी ने एक लाइन की पोस्ट लिखकर अपनी श्रद्धांजलि तो अर्पित की, लेकिन गांधीनगर के भाषण में उन्होंने फिर से बिना नाम लिए प.नेहरू पर कश्मीर समस्या और भारत-पाक विभाजन का इल्जाम लगा दिया। उन्होंने कहा 1947 में मां भारती के टुकड़े हुए। कटनी चाहिए थी जंजीरें लेकिन काट दी गईं भुजाएं। देश के तीन टुकड़े कर दिए गए और उसी रात पहला आतंकी हमला कश्मीर की धरती पर हुआ। मां भारती का एक हिस्सा आतंकवादियों के बलबूते पर, मुजाहिदीनों के नाम पर पाकिस्तान ने हड़प लिया। अगर उसी दिन इन मुजाहिदीनों को मौत के घाट उतार दिया गया होता और सरदार पटेल की बात मान ली गई होती, तो 75 साल से चला आ रहा ये सिलसिला (आतंकी घटनाओं का) देखने को नहीं मिलता।

इतिहास की घटनाओं की आधी-अधूरी, मनमानी व्याख्या और उसे गलत संदर्भों के साथ पेश करना नैतिक और वैचारिक तौर पर सही नहीं है, मगर यहां भी प्रधानमंत्री ने तकाजों को किनारे कर दिया। इसके बाद ऑपरेशन सिंदूर को राष्ट्रवाद के लिए इस्तेमाल करते हुए उन्होंने जब विदेशी सामान न खरीदने की सलाह जनसमुदाय को दी तो फिर दो बड़ी गलतियां कर बैठे, पहली तो यह कि उन्होंने कहा कि गणेश जी की मूर्ति से लेकर होली की पिचकारी तक सब विदेश से आता है। लेकिन क्या प्रधानमंत्री यह नहीं जानते कि देश में व्यापार, आयात-निर्यात, विपणन सबके नियम सरकार ही बनाती है। अगर विदेश से यह सब आकर हमारे बाज़ारों में अटा पड़ा है तो इसके लिए सरकार जिम्मेदार है न कि जनता। खुद नरेन्द्र मोदी ने मेक इन इंडिया तामझाम से शुरु करवाया था, क्या अब वे अपनी नाकामी को ही बता रहे थे। दूसरी गलती, उन्होंने कहा कि आज छोटी आंखों वाले गणेश जी भी विदेश से आ जाते हैं, गणेश जी की आंख भी नहीं खुल रही है। यह वाक्य सीधे-सीधे शारीरिक संरचना का मजाक उड़ाना है। छोटी आंख कहकर श्री मोदी भले ही चीन की तरफ इशारा कर रहे हों, लेकिन यह किसी लिहाज से सही नहीं है। क्योंकि चाहे चीन के बाशिंदे हों या हमारे अपने देश में पूर्वोत्तर के लोग, उनके नैन-नक्श को लेकर ऐसी टिप्पणी करना बेहद अशोभनीय है।

लेकिन फिलहाल ऐसा लग रहा है कि नरेन्द्र मोदी अपने पद के दायित्व और गरिमा सब ताक पर रखकर केवल चुनावों को ध्यान में रख रहे हैं और इसलिए तालियां बटोरने की कोशिश में यह सब कह रहे हैं। मगर इससे अंतत: देश की प्रतिष्ठा दांव पर लग रही है।

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