लखीमपुर खीरी:मोदी सरकार को याद नहीं दिलाया गया तो फिर इंसानियत, लोकतंत्र, मानवाधिकार सबके कुचले जाने की बारी एक-एक कर आएगी।

लखीमपुर खीरी में किसानों को गाड़ी से कुचलकर मारने की घटना के बाद जिस तेजी से मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने अपनी सरकार को संभालने के लिए मोर्चा संभाला, किसान नेता राकेश टिकैत को साथ लेकर मृतकों के परिजनों को मुआवजे आदि की घोषणा की, न्यायिक जांच का ऐलान किया। उसके बाद गोदी मीडिया में ये खबर बड़ी तेजी से चलने लगी कि योगीजी ने विपक्ष का दांव विफल कर दिया। आक्रोशित किसानों को अपने राजनैतिक कौशल से उन्होंने शांत कर दिया। भाजपा के लिए हालात बिगड़ने से पहले संभाल लिए। लेकिन इस घटना के दो दिन बाद भी विपक्ष के नेताओं को जिस तरह रोकने की कोशिश में योगी सरकार लगी हुई है, उससे यही नजर आ रहा है कि लखीमपुर का मामला अभी संभला नहीं है, बल्कि अब बात आगे बढ़ने तैयार है।
एक वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ, जिसमें नजर आ रहा है कि एक गाड़ी अपने आगे चल रहे किसानों को जबरन रौंदने के लिए उन पर चढ़ा दी जाती है। किसी फिल्म का यह दृश्य होता तो निर्देशक इस एक्शन के बाद कट कहता और कलाकार जमीन से उठकर अपने कपड़ों पर लगी धूल, नकली खून सब साफ कर लेते, गाड़ी चढ़ाने वाला खलनायक और झूठी मौत मरने वाले पीड़ित साथ बैठे गप्पे हांक रहे होते। लेकिन यह वीभत्स दृश्य असल जिंदगी में घटा, जिसे देखने के बाद हर संवेदनशील इंसान की रूह कांप उठी। इस वीडियो की सत्यता की पुष्टि नहीं की गई है, लेकिन इसे गलत बताने का दावा भी सामने नहीं आया है। इसलिए फिलहाल यह तो माना ही जा सकता है कि किसी जीते-जागते इंसान ने अपने ही सरीखे दूसरे इंसानों की बेरहमी से हत्या कर दी।
आठ लोगों की मौत हकीकत में हुई है, मगर न जाने केंद्र सरकार पर आजादी के अमृत महोत्सव का कैसा नशा सवार है कि शोक की इस घड़ी में भी कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी आज सशरीर लखनऊ पधारे, और वहां पीएम आवास योजना के लाभार्थियों से संवाद किए। अपनी चिर-परिचित शैली में खुद का गुणगान करते हुए विरोधियों को इस बात के लिए कोसा कि गरीबों को घर मिलने पर भी वे उनकी आलोचना करेंगे। सामान्य परिस्थितियों में विपक्ष की ऐसी खिंचाई से कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन क्या मोदीजी हालात की गंभीरता को समझ नहीं पा रहे हैं या जानबूझकर ऐसा माहौल बना रहे हैं कि उनके भाषण की चर्चा हो और लखीमपुर का मामला हाशिए पर चला जाए।
कैसी विडंबना है कि हर वक्त गरीबों, पीड़ितों, किसानों के रहनुमा होने की बात करने वाले प्रधानमंत्री के पास इतना वक्त नहीं है कि वे अकाल मौत का शिकार बना दिए गए लोगों के प्रति संवेदना के दो बोल कहते, लखनऊ से लखीमपुर तक की महज 130 किमी दूरी का फासला तय कर पीड़ितों के साथ खड़े होने पहुंचते। विपक्ष के नेताओं को तो योगी सरकार वहां तक पहुंचने से रोक रही है, लेकिन प्रधानमंत्री तो सुरक्षा के तामझाम और सरकारी खर्च पर वहां जा सकते थे। दिखावे के लिए भी अगर वे यह संवेदना यात्रा करते तो उसमें दो-ढाई घंटे से अधिक का वक्त नहीं लगता। 20-20 घंटे काम करने का रिकार्ड बनाने वाले मोदीजी के लिए क्या दो घंटे निकालना नामुमकिन था।
इस घटना में आरोप केंद्र सरकार के एक मंत्री के बेटे पर है, इसलिए यह मामला केंद्र का भी है। लेकिन मोदीजी शायद इसे राज्य का मामला मानकर सारा दारोमदार योगी सरकार पर छोड़े हुए हैं। मुख्यमंत्री योगी आगामी चुनाव को देखते हुए मामले को संभालने में लगे हैं। लेकिन महज मुआवजा देकर वे सवालों से बरी नहीं हो सकते। योगी सरकार को यह बताना चाहिए कि विपक्ष के नेताओं को किन वजहों से लखीमपुर खीरी जाने से रोका जा रहा है। प्रियंका गांधी को सुबह साढ़े चार बजे गिरफ्तार किया गया, उन्हें इसके लिए कोई ठोस वजह नहीं बताई गई। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक प्रियंका गांधी को सीतापुर के पीएसी गेस्ट हाउस में बनी अस्थायी जेल में रखा गया है। भाजपा के नेता प्रियंका गांधी पर अक्सर तंज कसते हैं कि वे राजनैतिक पर्यटन के लिए उत्तरप्रदेश आती हैं। अब भाजपा से पूछा जा सकता है कि क्या पर्यटकों के साथ उसका यही व्यवहार रहता है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के विमान को भी पहले लखनऊ में विमानतल पर उतरने की इजाज़त नहीं दी गई और अगले दिन जब वे लखनऊ विमानतल पहुंचे तो उन्हें वहां से निकलने नहीं दिया गया। क्या एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को इस तरह दूसरे राज्य में प्रवेश करने से रोकना स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है। बगैर किसी ठोस कारण के विपक्षी नेताओं को उप्र पुलिस ने रोक लिया, लेकिन जिस आशीष मिश्रा पर आरोप हैं, वह अब तक आजाद है।
क्या उत्तरप्रदेश में इसी कानून व्यवस्था की तारीफ प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी करते रहे हैं। किसान नेता राकेश टिकैत ने साफ कहा है कि उत्तरप्रदेश सरकार के साथ जो समझौता हुआ है उसके तहत आठ दिन के अंदर अभियुक्तों की गिरफ़्तारी करनी है। क्या योगीजी इस समझौते का पालन कर पाएंगे।
विपक्ष के नेता, किसान सभी अपनी-अपनी भूमिकाओं का निर्वाह कर रहे हैं। अब जनता को भी अपनी नागरिक जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार होना चाहिए। मंदिर-मस्जिद, धर्म-जाति के स्वार्थी मुद्दों से बढ़कर इंसान की गरिमामयी जिंदगी होती है। अगर इस बात को अब भी सरकार को याद नहीं दिलाया गया तो फिर इंसानियत, लोकतंत्र, मानवाधिकार सबके कुचले जाने की बारी एक-एक कर आएगी।