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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस लोकुर बोले- चुनावी बॉन्ड पर अदालत का फैसला अधूरा, SIT गठित..

चुनावी बॉन्ड पर देश के सर्वोच्च अदालत के फैसले को अधूरा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन लोकुर ने कहा कि- इस मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन होना चाहिए था।

 

नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस (सेवानिवृत्त) मदन लोकुर ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरी तरह से संतोषजनक नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन होना चाहिए था। जस्टिस लोकुर ‘इंडिया इंक्ड’ नामक एक नई किताब के विमोचन कार्यक्रम में बोल रहे थे। यह किताब पत्रकार पूनम अग्रवाल ने लिखी है, जिसमें भारत में चुनाव प्रक्रिया और राजनीतिक चंदे से जुड़ी बातें बताई गई हैं। किताब में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम का भी जिक्र है, जिसे फरवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने पूरा सच नहीं खोला- लोकुर
जस्टिस लोकुर ने कहा, ‘फैसला तो आया, लेकिन वह अधूरा था। उन्होंने इसे असंवैधानिक तो बताया, लेकिन इससे आगे नहीं बढ़े। दो बातें जरूरी थीं- एक पारदर्शिता और दूसरा आगे की कार्रवाई। अगर किसी ने 1000 करोड़, 200-300 करोड़ दिए हैं, तो यह पैसा कहां से आया? यह तो सफेद धन माना जा रहा है।’ उन्होंने कहा कि इस तरह के मामलों की तह तक जाने के लिए एसआईटी बनानी चाहिए थी ताकि सच्चाई सामने आए।

ADR संस्थापक ने कहा- ‘ऑपरेशन सफल, मरीज मर गया’
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के संस्थापक जगदीप छोकर, जो इस मामले में याचिकाकर्ताओं में शामिल थे, ने कहा कि यह स्कीम एक ‘सफल ऑपरेशन’ थी, लेकिन ‘मरीज मर गया।’ उन्होंने कहा, ‘इस स्कीम ने पारदर्शिता लाने का दावा किया, लेकिन असल में दानदाताओं की पहचान ही छुपाई गई।’

विपक्ष को नुकसान हुआ- कांग्रेस
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि यह स्कीम विपक्ष के लिए अनुचित थी। ‘सरकार को दानदाताओं की जानकारी मिलती थी, लेकिन विपक्ष को नहीं। हमने संसद में इस बिल का विरोध किया था’। हालांकि, छोकर ने कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने इस कानून को चुनौती देने के लिए अदालत का रुख क्यों नहीं किया। उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) का उदाहरण दिया, जो इस मामले में याचिकाकर्ता थी।

छोकर ने सवाल किया, ‘कांग्रेस चाहती तो दान चेक से ले सकती थी। उन्होंने अदालत का रुख क्यों नहीं किया?’। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस का संसद में विरोध ‘सिर्फ औपचारिकता’ था और उसमें कोई जुनून नहीं दिखा। जगदीप छोकर ने कहा कि अब राजनीतिक दल चुनाव को जनप्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया नहीं मानते, बल्कि केवल सत्ता पाने का जरिया समझते हैं। ‘वे सिर्फ जीतना चाहते हैं’।

नागरिकों के लिए है चुनाव, पार्टियों के लिए नहीं
सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने कहा कि हमें चुनाव प्रक्रिया में और पारदर्शिता चाहिए। उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र में चुनाव पार्टियों के लिए नहीं, नागरिकों के लिए होता है। ताकि वे अपने प्रतिनिधि चुन सकें।’

चुनाव आयोग सीमाओं में बंधा होता है- अशोक लवासा
पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने कहा कि चुनाव आयोग हमेशा कानून की सीमाओं में रहकर काम करता है। ‘चुनाव आयोग तो नियमों के तहत काम करता है, लेकिन लोगों की अपेक्षाएं बहुत अधिक होती हैं’। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग चुनाव लड़ते हैं, वे जीतने की सोचते हैं, नियमों की नहीं।

 

 

 

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