दिल्ली

‘माई लॉर्ड हनीमून पर मेरे साथ किया गंदा काम’, महिला बोली- मेरा पति नपुंसक है; हाईकोर्ट ने दे दिया बड़ा फैसला

शादी विवाह को भारतीय समाज में काफी ऊंचा दर्जा प्राप्‍त है. इसके बावजूद कई बार ऐसी घटनाएं हो जाती हैं, जिससे दांपत्‍य जीवन बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है. दिल्‍ली हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में बड़ा फैसला दिया है.

नई दिल्‍ली.

भारतीय समाज में शादी के बंधन को काफी पवित्र माना जाता है. विवाह को लेकर लड़का और लड़की के कई अरमान होते हैं. इनमें से हनीमून को यादगार बनाना एक है, लेकिन जब हनीमून ही जिंदगी में जहर घोल जाए तो फिर रिश्‍ते को आगे बढ़ा पाना मुश्किल हो जाता है. ऐसा ही एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है. महिला की ओर से दायर याचिका में पति पर कई तरह के आरोप लगाए गए थे. हनीमून पर गंदा काम करने के साथ ही पति पर नपुंसक (Impotent) होने का संगीन आरोप भी लगाया गया था. महिला ने धारा 377 के तहत इस मामले में कार्रवाई की मांग की थी. मामले की सुनवाई करने और सबूतों पर विचार करने के बाद दिल्‍ली हाईकोर्ट ने महिला की मांग को ठुकरा दिया.

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि यदि पति अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है, तो उस पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने सोमवार को जारी आदेश में एक व्यक्ति के खिलाफ धारा 377 के तहत दर्ज आरोपों को खारिज कर दिया. अदालत ने कहा कि वैध विवाह के भीतर इस तरह के संबंधों को धारा 375 की अपवाद 2 (Exception 2) के तहत सहमति प्राप्त माने जाने का प्रावधान है.

 

 

 

 

 

 

 

यह मामला साल 2023 में दर्ज एक प्राथमिकी से जुड़ा है, जिसमें पत्नी ने आरोप लगाया था कि उनके पति ने हनीमून के दौरान जबरन उनके साथ ओरल सेक्स किया था. महिला ने यह भी आरोप लगाया कि जब उन्होंने अपने पति की कथित नपुंसकता को लेकर सवाल उठाए तो ससुरालवालों ने उनके साथ मारपीट की. ‘टाइम्‍स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार, पति पर IPC की धारा 354, 354B, 376, 377 और 323 के तहत केस दर्ज किया गया था. उन्होंने धारा 377 के तहत आरोप तय किए जाने को अदालत में चुनौती दी और कहा कि वैवाहिक जीवन में आपसी सहमति से किए गए यौन गतिविधियों को इस धारा के तहत अपराध नहीं माना जा सकता, जब तक कि वे स्पष्ट रूप से गैर-सहमति पर आधारित न हों.

जस्टिस शर्मा ने कहा कि 2013 में आपराधिक कानून में संशोधन कर धारा 375 (बलात्कार) की परिभाषा में ओरल और एनल सेक्स जैसे कृत्यों को शामिल किया गया था. हालांकि, धारा 375 की अपवाद 2 के अनुसार, यदि पत्नी की उम्र 15 वर्ष से अधिक है, तो वैवाहिक बलात्कार को अब भी अपराध नहीं माना जाता. कोर्ट ने कहा कि इस प्रावधान के चलते कानून यह मानता है कि विवाह के बाद पत्नी की सहमति यौन संबंधों के लिए स्वतः प्राप्त मानी जाती है. ऐसे में वर्तमान कानून मैरिटल रेप की अवधारणा को मान्यता नहीं देता. अदालत ने यह भी कहा कि महिला ने अपनी शिकायत में स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा कि यौन संबंध उसकी सहमति के बिना हुआ था, इसलिए धारा 377 के तहत आरोप तय करने की शर्तें पूरी नहीं हुईं. हालांकि, अन्य धाराओं के तहत मुकदमा आगे बढ़ेगा.

 

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