भाजपा शाशन में सेना और न्यायपालिका के सम्मान का सवाल ?

देश के नए मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई अपना पद संभालने के बाद रविवार को पहली बार अपने गृहराज्य महाराष्ट्र पहुंचे थे…
देश के नए मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई अपना पद संभालने के बाद रविवार को पहली बार अपने गृहराज्य महाराष्ट्र पहुंचे थे। लेकिन उनकी अगवानी के लिए महाराष्ट्र की मुख्य सचिव सुजाता सौनिक, पुलिस महानिदेशक रश्मि शुक्ला और मुंबई के पुलिस आयुक्त देवेन्द्र भारती, तीनों वरिष्ठ अधिकारी नहीं पहुंचे। यह बात आई-गई हो जाती, अगर खुद जस्टिस गवई इसका जिक्र नहीं करते। क्योंकि मौजूदा दौर के मीडिया में ऐसी बातों का जिक्र अब नदारद है। खुद जस्टिस गवई ने इस बात को छोटा मुद्दा ही बताया, लेकिन जो कुछ उन्होंने कहा उससे जाहिर होता है कि यह मामूली अनदेखी नहीं थी।
महाराष्ट्र-गोवा बार काउंसिल के कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि, ‘मैं ऐसे छोटे-मोटे मुद्दों पर बात नहीं करना चाहता, लेकिन मैं इस बात से निराश हूं कि महाराष्ट्र के बड़े अफसर प्रोटोकॉल का पालन नहीं करते। लोकतंत्र के तीनों स्तंभ समान हैं और उन्हें एक-दूसरे के प्रति सम्मान दिखाना चाहिए। प्रोटोकॉल कोई नई चीज नहीं है। यह एक संवैधानिक निकाय द्वारा दूसरे को दिए जाने वाले सम्मान का सवाल है। सीजेआई गवई ने कहा, जब किसी संवैधानिक संस्था का प्रमुख पहली बार राज्य का दौरा करता है तो उसके साथ जिस तरह का व्यवहार किया जाता है, उस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। जस्टिस गवई ने कहा कि वो इस तरह की छोटी बातों में नहीं उलझना चाहते हैं, लेकिन उन्हें इसे सार्वजनिक रूप से बताने की जरूरत महसूस हुई ताकि लोग इसके बारे में जानें। इसके आगे उन्होंने हल्के फुल्के अंदाज में कहा, अगर मेरी जगह कोई और होता तो अनुच्छेद 142 के बारे में चर्चा होने लगती। ये छोटी-छोटी बातें लग सकती हैं, लेकिन लोगों को इनके बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
गौरतलब है कि संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को न्यायिक कार्यवाही में पूर्ण न्याय देने के लिए जरूरी आदेश जारी करने का अधिकार देता है। इसके तहत न्यायालय को व्यक्तियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी करने का भी अधिकार है। कुछ समय पहले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका के शक्तिशाली होने के संदर्भ में इस अनुच्छेद को परमाणु मिसाइल कहा था।
बहरहाल, जस्टिस गवई की टिप्पणी के कुछ घंटे बाद तीनों शीर्ष अधिकारी दादर स्थित चैत्यभूमि पहुंचे, जहां प्रधान न्यायाधीश ने डॉ. बीआर अंबेडकर को श्रद्धांजलि दी। सीजेआई गवई ने कहा, सीजेआई बनने के बाद मैं पहली बार चैत्यभूमि आया हूं। मैं यहां डॉ. अंबेडकर का आशीर्वाद लेने आया हूं। मैं प्रोटोकॉल को लेकर ज्यादा परेशान नहीं हूं। मैंने बस इसका जिक्र किया है। जानकारी के लिए बता दें कि देश के मुख्य न्यायाधीश जब किसी राज्य का दौरा कर रहे हों, तब उनकी अगवानी और स्वागत से लेकर ठहरने तक प्रोटोकॉल का पालन करना होता है। इसके लिए राज्य के प्रमुख अधिकारी मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और संबंधित अफसरों को अगवानी के लिए उपस्थित होना चाहिए। राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्री भी स्वागत समारोह में उपस्थित हो सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश के लिए एयरपोर्ट से लेकर कार्यक्रम स्थल तक सुरक्षा घेरा सुनिश्चित किया जाता है। राज्य सरकार की ओर से वीआईपी गेस्ट हाउस की व्यवस्था की जाती है। यदि मुख्य न्यायाधीश किसी न्यायिक या विधायी कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं तो राज्य के प्रमुख न्यायिक अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित रहते हैं। न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन और आपसी सम्मान बनाए रखने के लिए प्रोटोकॉल का पालन जरूरी माना जाता है।
लेकिन जस्टिस गवई के मुंबई दौरे के शुरुआती पलों में यह प्रोटोकॉल नदारद रहा। ऐसा नहीं है कि प्रशासन के इतने वरिष्ठ अधिकारी इस सामान्य जानकारी से अनभिज्ञ होंगे। लेकिन किस वजह से उन्होंने मुख्य न्यायाधीश की अगवानी के लिए उपस्थित होना जरूरी नहीं समझा, यह बड़ा सवाल बना हुआ है। सवाल यह भी है कि क्या महाराष्ट्र सरकार अपने इन अधिकारियों से इस संदर्भ में कोई जवाब-तलब करेगी, या यह बात आई-गई हो जाएगी। क्या जस्टिस गवई की जाति या धर्म का इस प्रकरण से कोई वास्ता है। और सबसे गंभीर सवाल यह कि भाजपा शासित राज्य में ऐसा होने का क्या अर्थ है। क्योंकि इससे पहले भाजपा के ही सांसद निशिकांत दुबे ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर गृहयुद्ध करवाने जैसे गंभीर और बेहूदा आरोप लगाए थे। भाजपा ने अपने सांसद की ऐसी धृष्टता पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की।
भाजपा के शासन में ही बार-बार कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच कौन बड़ा है इसकी बहस खड़ी हो रही है। जगदीप धनखड़ उपराष्ट्रपति हैं, फिर भी उन्होंने परमाणु मिसाइल जैसा बयान दिया था। निशिकांत दुबे भी ऐसे सवाल उठा चुके हैं। हालांकि मुंबई में जस्टिस गवई ने एक बार फिर कहा है कि न तो न्यायपालिका, न ही कार्यपालिका और न ही संसद सर्वोच्च है, बल्कि भारत का संविधान सुप्रीम है और तीनों अंगों को संविधान के अनुसार काम करना है। भाजपा के उठाए सवालों का जवाब मुख्य न्यायाधीश के इस बयान में मिल जाता है।
अब भाजपा को भी देश की सत्ता पर काबिज होने और सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते इन सवालों का जवाब देना चाहिए कि आखिर क्यों उसके राज्य में मुख्य न्यायाधीश के लिए प्रोटोकॉल निभाने में अनदेखी की गई। सेना और न्यायपालिका इन दो संस्थाओं की साख देश में तमाम राजनैतिक लाभालाभ से परे बनी रही है। आम जनता का इन दोनों पर ही अटूट विश्वास रहा है। लेकिन क्यों भाजपा के शासन में ही सेना को लेकर भी अभद्र टिप्पणियां हुईं और उसमें भी जाति, धर्म, प्रांत की बातें आ गईं, वही रवैया क्या अब न्यायपालिका को लेकर भी भाजपा बरत रही है।