‘तारीख पे तारीख…’, न्याय व्यवस्था की पोल खोल रहा ये डायलॉग, जानें कोर्ट में लंबित मामलों की सच्चाई

कोर्ट में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या का सच….
भारत की न्याय व्यवस्था पर भारी दबाव है, जहां 5.2 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट में 11.3 लाख केस लंबित हैं, जो न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति को दर्शाते हैं। न्यायाधीशों की कमी और खाली पद इस समस्या को और बढ़ा रहे हैं, जिससे न्याय की उम्मीद दूर होती जा रही है।
Cases Pending in Court
सनी देओल की फिल्म ‘दामिनी’ का यह मशहूर डायलॉग ” तारीख पे तारीख, तारीख पे तारीख” ये केवल एक फिल्मी संवाद नहीं था, बल्कि भारत की न्याय व्यवस्था की वास्तविकता पर करारा तंज था. यह संवाद आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 1993 में था. हमारे देश की अदालतों की धीमी प्रक्रिया आज भी आम आदमी को हर पेशी पर सिर्फ एक और “तारीख” ही देती है, इंसाफ नहीं.
भारत की न्याय व्यवस्था इस समय गंभीर दबाव में है. मौजूदा स्थिति यह है कि देश की अदालतों में 5.2 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं. हैरानी की बात यह है कि इनमें से करीब 60 लाख केस ऐसे हैं, जो पिछले 10 साल या उससे भी ज्यादा समय से अदालतों में चल रहे हैं. हर सुनवाई के बाद सिर्फ एक नई तारीख मिलती है और इंसाफ दूर होता जाता है.
हाईकोर्ट्स में लंबित मामलों की सच्चाई
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अगर देश के हाईकोर्ट्स की बात करें तो सबसे ज्यादा लंबित मामलों की संख्या इलाहाबाद हाईकोर्ट में है. नेशनल जुडिशियल डाटा ग्रिड के अनुसार इलाहाबाद हाईकोर्ट में 11.3 लाख से ज्यादा केस लंबित हैं. इसमें हाईकोर्ट की इलाहाबाद बेंच के ऊपर लंबित मुकदमों का भार सबसे ज्यादा है. यहां 9.60 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं. वहीं लखनऊ बेंच में 2.18 लाख से अधिक मुकदमे अभी भी निपटारे की राह देख रहे हैं.
प्रति जज मामले और जजों की कमी
भारत न्याय रिपोर्ट 2025 के अनुसार, इलाहाबाद हाईकोर्ट में हर जज पर औसतन 15,000 से ज्यादा मामले लंबित हैं. यह संख्या न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह भी बताती है कि मौजूदा न्यायाधीशों पर काम का कितना दबाव है.
इन राज्यों में भी है लंबित मामलों का अंबार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ही नहीं, कई अन्य राज्यों की उच्च न्यायालयों में भी मुकदमों का अंबार है. आंकड़ों के अनुसार: राजस्थान: 6.8 लाख मामले, महाराष्ट्र: 6.6 लाख, तमिलनाडु 5.3 लाख और मध्य प्रदेश में 4.8 लाख मामले लंबित है. इन सभी राज्यों में भी न्यायिक प्रक्रिया सुस्त रफ्तार से चल रही है.
जजों के खाली पद: एक बड़ी चुनौती
भारत में न्यायिक देरी का सबसे बड़ा कारण जजों की भारी कमी है. कई राज्यों में करीब 50% न्यायाधीशों के पद खाली पड़े हैं, और लंबे समय से इन पदों पर कोई नियुक्ति नहीं हुई है. इससे मौजूदा न्यायाधीशों पर काम का बोझ बढ़ता जा रहा है और नतीजतन, मुकदमे सालों तक चलते रहते हैं.