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भारत कोआखिर कौन सी मजबूरी थी कि युद्धविराम के लिए सहमत होना पड़ा भाजपा के असंतुलन से देश को नुकसान ?

लगभग 20 दिनों की चुप्पी के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार रात आठ बजे राष्ट्र के नाम संबोधन करने का फैसला लिया तो देश को इत्मीनान हुआ कि आखिरकार प्रधानमंत्री देश की सुरक्षा को लेकर सीधी बात करेंगे

 

लगभग 20 दिनों की चुप्पी के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार रात आठ बजे राष्ट्र के नाम संबोधन करने का फैसला लिया तो देश को इत्मीनान हुआ कि आखिरकार प्रधानमंत्री देश की सुरक्षा को लेकर सीधी बात करेंगे। इससे पहले सोमवार दोपहर तक भारत-पाक के बीच संघर्ष को लेकर कई किस्म के सवाल चर्चा में थे, जैसे अमेरिका किस तरह भारत और पाकिस्तान के मामले में दखलंदाजी कर सकता है। क्या चीन ने इस बार पाकिस्तान को भारत पर आक्रमण करने में मदद की है। क्या भारत ने अमेरिका के पास जाकर युद्धविराम की पहल की। इन सवालों के बीच पहले खबर आई कि भारत और पाक के बीच डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस यानी डीजीएमओ स्तर पर चर्चा हो रही है और उसके थोड़ी देर बाद खबर आ गई कि प्रधानमंत्री मोदी रात आठ बजे राष्ट्र को संबोधित करने वाले हैं। माना गया कि यह संबोधन ऑपरेशन सिंदूर और उसके बाद के घटनाक्रम को लेकर ही होगा।

दरअसल इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री के संबोधन का इंतजार इसलिए था क्योंकि उनकी चुप्पी से बातें अनावश्यक उलझती जा रही थीं। श्री मोदी ने भले ही राजनैतिक लाभ के लिए चुप रहना बेहतर समझा हो, लेकिन इसका कूटनीतिक नुकसान भारत को हुआ और पार्टी के तौर पर भी भाजपा को इसमें संभावित नुकसान ही हुआ। इसलिए रविवार को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा के आवास पर भाजपा के मंत्रियों और बड़े नेताओं की बैठक हुई, और मंगलवार से पार्टी ने 10 दिनों तक यानी 23 मई तक तिरंगा यात्रा निकालने का फैसला किया है, जिसमें ऑपरेशन सिंदूर की उपलब्धियां देश को बताई जाएंगी।

हालांकि सैन्य अभियानों की उपलब्धियां गिनाने की जरूरत नहीं होती। हाथ कंगन को आरसी क्या, जो कुछ सेना ने किया वह नजर आ ही जाता है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी दिख रहा था कि भारत के आगे पाकिस्तान पस्त पड़ रहा है। लेकिन शनिवार शाम से हालात बदल गए। पहले युद्धविराम का ट्रंप की तरफ से ऐलान करना, फिर भारत का यही घोषणा करना और उसके बाद पाकिस्तान की तरफ से नए हमले, ये सारा घटनाचक्र इतनी जल्दी घूमा कि जनता परेशान हो गई कि आखिर कौन सी मजबूरी थी कि भारत को युद्धविराम के लिए सहमत होना पड़ा। युद्धविराम के लिए क्या किसी कागज पर हस्ताक्षर हुए हैं, अगर नहीं तो क्या मुंहजुबानी बात को मान लिया जाए। पाकिस्तान इस बात को क्यों नहीं मान रहा। क्यों एक तरफ पाकिस्तान के हमले हो रहे हैं और दूसरी तरफ शाहबाज शरीफ जीत वाला भाषण दे रहे हैं। ये सारे सवाल विपक्ष से ज्यादा भाजपा समर्थक लोग और खासकर पत्रकार ही उठाने लगे। इस बीच विदेश सचिव विक्रम मिस्री और उनके परिजनों की सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग भी होने लगी क्योंकि युद्धविराम की जानकारी उन्होंने ही दी थी। भाजपा ने ट्रोल आर्मी की शक्ल में भस्मासुर पाले हैं, यह बात जाहिर होने लगी।

भाजपा ने पहलगाम हमले को जिस तरह चुनाव में भुनाने की योजना बनाई होगी, वह अमल में आने से पहले ही बेकार होती नजर आई तो अब प्रधानमंत्री को सामने आना ही पड़ा। इस बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हालात ऐसे बने जिसमें नजर आया कि किस तरह भारत को अकेला किया जा रहा है। शाहबाज शरीफ ने तो अपने संबोधन में अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, तुर्किए, सऊदी अरब, कतर सबका नाम लेकर शुक्रिया अदा कर दिया, और इनमें से किसी ने भी ये नहीं कहा कि अपनी लड़ाई में हमारा नाम मत लो। यानी सबने सहमति दी कि वो पाकिस्तान के साथ खड़े थे। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप जो बार-बार ये कहते रहे कि भारत-पाक मेरे लिए दोनों बराबर हैं, उन्होंने भी इस युद्धविराम की घोषणा से पाकिस्तान को खुश और भारत को असहज कर दिया।

भारत की यह नीति रही है कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मसला है और इसमें किसी तीसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार्य नहीं है। लेकिन ट्रंप ने पहले युद्धविराम का ट्वीट किया फिर अगले दिन के ट्वीट में कश्मीर मसले का जिक्र कर संकेत दे दिए कि ये दखलंदाजी अब कश्मीर मुद्दे तक पहुंचने वाली है। अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भी लिखा है कि भारत और पाकिस्तान विवादों को सुलझाने के लिए किसी तीसरे देश में बात करेंगे। और रुबियो के ट्वीट पर कारोबारी एलन मस्क ने लिख दिया बधाई। यानी अमेरिका ने पूरी तरह भारत को अपनी शर्तों पर चलता हुआ दिखाने की कोशिश की। इस बात ने भारत को असहज कर दिया। विदेश मंत्री एस जयशंकर के ट्वीट से इसका पता चलता है।

भारतीय विदेश मंत्री ने लिखा है, ‘भारत-पाकिस्तान गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए एक सहमति पर पहुंचे हैं। आतंकवाद के खिलाफ़ भारत समझौता नहीं करेगा और यही रुख़ आगे भी रहेगा।’ इस ट्वीट मे न कहीं अमेरिका का जिक्र है, न उसे पाकिस्तान की तरह धन्यवाद दिया गया है। यही होना भी चाहिए था, लेकिन श्री मोदी कूटनीति में विफल हो गए।

उनकी विफलता का नमूना अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी दिखा। सीएनएन ने पहले दावा किया कि भारत ने अमेरिका को मध्यस्थता के लिए कहा। वहीं द टेलीग्राफ ने दावा किया कि चीन की मदद पाकिस्तान को मिल रही थी और इसमें भारत के राफेल विमान को गिराया गया। सवाल उठे कि क्या भारत पाकिस्तान के साथ ही नहीं, बल्कि छिपे हुए चीन के साथ भी लड़ रहा था। हालांकि रविवार को तीनों सेनाओं की तरफ से जो संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस की गई, उसमें वायुसेना के एयर मार्शल एके. भारती से जब यह सवाल किया गया कि क्या ऑपरेशन सिंदूर के दौरान राफेल लड़ाकू विमान को नुकसान पहुंचा है? उन्होंने कहा कि हम अभी भी युद्ध के हालत में हैं। और नुकसान इसका एक हिस्सा है।

सवाल यह है कि क्या हमने अपना उद्देश्य हासिल कर लिया है? इसका जवाब है हां। जहां तक विस्तृत जानकारी का सवाल है, इस समय मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा क्योंकि हम अभी भी युद्ध में हैं और विरोधी पर बढ़त हासिल कर रहे हैं। हमारे सभी पायलट घर वापस आ गए हैं। एयर मार्शल भारती ने तो सधा हुआ जवाब दे दिया। हमारी सेना ने भी सधी हुई कार्रवाई ही की। लेकिन सत्ताधारी भाजपा इस बार संतुलन खोती नजर आई, जिसमें देश को नुकसान हुआ।

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