राज्यपाल का पद महत्वपूर्ण, उन्हें संविधान के तहत काम करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट की जज बी.वी. नागरत्ना

“मुझे असहमति दिखानी पड़ी क्योंकि…” : नोटबंदी के फैसले पर न्यायमूर्ति नागारत्ना….
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि उन्हें केंद्र सरकार के इस कदम के खिलाफ असहमत होना पड़ा क्योंकि 2016 में, जब निर्णय की घोषणा की गई थी, 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोट बंद कर दिए गए थे जो कुल मुद्रा नोटों का 86% थे. इसमें से 98% नोटबंदी के बाद वापस आ गए थे.
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश बीवी नागरत्ना ने पंजाब के राज्यपाल से जुड़े मामले का जिक्र करते हुए निर्वाचित विधायिकाओं द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपालों द्वारा रोक लगाए जाने की आलोचना की है और साथ ही इसके प्रति आगहा भी किया है. शनिवार को यहां एनएएलएसएआर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ में आयोजित न्यायालयों और संविधान सम्मेलन के पांचवें संस्करण के उद्घाटन सत्र में अपने मुख्य भाषण में, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने एक अन्य उदाहरण में महाराष्ट्र विधानसभा मामले के बारे में बात की. उन्होंने कहा कि यहां राज्यपाल के पास फ्लोर टेस्ट की घोषणा करने के लिए पर्याप्त सामग्री की कमी थी.
उन्होंने कहा, “किसी राज्य के राज्यपाल के कार्यों या चूक को संवैधानिक अदालतों के समक्ष विचार के लिए लाना संविधान के तहत एक स्वस्थ प्रवृत्ति नहीं है. मुझे लगता है कि मुझे अपील करनी चाहिए कि राज्यपाल का पद, एक गंभीर संवैधानिक पद है. राज्यपालों को संविधान के तहत अपने कर्तव्यों का निर्वहन संविधान के अनुसार करना चाहिए ताकि कोर्ट में इस तरह की मुकदमेबाजी से बचा जा सके.”
उन्होंने कहा कि राज्यपालों को कोई काम करने या न करने के लिए कहा जाना काफी शर्मनाक है. उन्होंने कहा, “इसलिए अब समय आ गया है जब उन्हें संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए कहा जाएगा”. न्यायमूर्ति नागरत्ना की यह टिप्पणी भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा डीएमके नेता के पोनमुडी को राज्य मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में फिर से शामिल करने से इनकार करने पर तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि के आचरण पर “गंभीर चिंता” व्यक्त करने के कुछ दिनों बाद आई है.
नोटबंदी पर जस्टिस नागरत्ना ने कही ये बात
जस्टिस नागरत्ना ने नोटबंदी मामले पर अपनी असहमति पर भी बात की. उन्होंने कहा कि उन्हें केंद्र सरकार के इस कदम के खिलाफ असहमत होना पड़ा क्योंकि 2016 में, जब निर्णय की घोषणा की गई थी, 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोट बंद कर दिए गए थे जो कुल मुद्रा नोटों का 86 प्रतिशत थे और इसमें से 98 प्रतिशत नोटबंदी के बाद वापस आ गए थे.
अक्टूबर 2016 में, भारत सरकार ने कथित तौर पर काले धन के खिलाफ 500 रुपये और 1,000 रुपये के बैंक नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया था. न्यायाधीश बीवी नागरत्ना ने कहा, “मैंने सोचा कि यह नोटबंदी पैसे को सफेद धन में बदलने का एक तरीका है क्योंकि सबसे पहले, 86 प्रतिशत मुद्रा का विमुद्रीकरण किया गया और 98 प्रतिशत मुद्रा वापस आ गई और सफेद धन बन गई. सभी बेहिसाब धन बैंक में वापस चले गए.”
न्यायाधीश ने कहा, “इसलिए, मैंने सोचा कि यह बेहिसाब नकदी का हिसाब-किताब करने का एक अच्छा तरीका है. इसलिए, आम आदमी की इस परेशानी ने मुझे वास्तव में उत्तेजित कर दिया. इसलिए, मुझे असहमति जतानी पड़ी”. एनएएलएसएआर की एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि तेलंगाना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आलोक अराध और एनएएलएसएआर के चांसलर न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने भी सम्मेलन में बात की.