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देश को भीतर से दरकाते ‘देशभक्त’ ये भाजपा समर्थक दुनिया भर में भारत की साख को मिट्टी में मिला रहे हैं ?

देश की वर्तमान परिस्थितियों का सीधा लाभ पाकिस्तान, उसके संरक्षण में फल-फूल रहे आतंकवादी और इधर भारतीय जनता पार्टी को मिल रहा है

देश की वर्तमान परिस्थितियों का सीधा लाभ पाकिस्तान, उसके संरक्षण में फल-फूल रहे आतंकवादी और इधर भारतीय जनता पार्टी को मिल रहा है। बगैर यह समझे कि उनकी हरकतें पाकिस्तान व दहशतगर्दों को खुश कर रही हैं, खुद को ‘देशभक्त’ कहने वाले भाजपा समर्थक दुनिया भर में भारत की साख को मिट्टी में मिला रहे हैं। सच कहा जाये तो ये लोग, जिसे कभी खुद पार्टी नेतृत्व ने ‘स्प्लिंटर ग्रुप’ कहा था, अपना ही देश तोड़ रहे हैं। देश की सबसे बड़ी ताकत नागरिक एकता होती है, इसे ध्वस्त करने का काम हो रहा है। भाजपा हाईकमान तथा उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को चाहिये कि वे अपने कार्यकर्ताओं तथा समर्थकों को इस बात की समझाइश दें कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के गुनहगारों से लड़ने की ज़रूरत है, न कि देश के भीतर रहने वाले मुसलमानों से। उनकी हरकतें अंतरराष्ट्रीय समुदाय के आगे भारत को एक विभाजित समाज के रूप में प्रस्तुत कर रही हैं।

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की प्रसिद्ध बैसरन घाटी में आतंकियों ने 27 लोगों को मार डाला था। इनमें एकाध को छोड़कर सारे ही पर्यटक थे। इस घटना ने देश भर में पहले से चल रही मुस्लिम विरोधी मानसिकता को और भी सघन कर दिया है। इस बात को बहुत बढ़-चढ़कर बताया जा रहा है कि आतंकियों ने सैलानियों से उनका धर्म पूछकर गोली मारी। हालांकि इस बात की बहुत पुष्टि नहीं हो पायी है, फिर भी इसे भाजपा-संघ के समर्थकों तथा आईटी सेल ने लपक लिया है तथा उसे सच साबित कर रही है। घटना के कुछ ही क्षणों के भीतर छत्तीसगढ़ भाजपा से एक एआई जनरेटेड चित्र सोशल मीडिया पर जारी हुआ, जिसमें एक शोकाकुल नवविवाहित युवती अपने पति के शव के साथ दिख रही है। उस पर स्लोगन दिया गया है- ‘धर्म पूछा जाति नहीं’। जाहिर है कि यह तस्वीर जारी करने का मकसद घटना का लाभ उठाते हुए धु्रवीकरण की प्रक्रिया को तेज करना ही था।

सोशल मीडिया पर हिन्दू-मुस्लिम की लड़ाई घटना के बाद से ही तेज हो गयी है। धर्म पूछकर गोलियां मारने का हाइप इतना बना दिया गया कि एक वर्ग इस बात से कतई प्रभावित नहीं हो रहा है कि अपनी जान का खतरा मोल लेकर गाइडों, घोड़े वालों आदि ने बड़ी संख्या में पर्यटकों को बचाया। वहां से लौटे पर्यटकों की आप-बीती वाले वीडियो कई जगहों से आ रहे हैं जिनमें वे कह रहे हैं कि स्थानीय कश्मीरियों ने उनकी न केवल जान बचाई वरन उन्हें अपने घरों में पनाह दी। उनसे खाने-पीने, रहने का पैसा नहीं लिया, उन्हें बस अड्डों तथा एयरपोर्ट मुफ्त में छोड़ा गया। नज़ाकत अली का किस्सा खूब मशहूर हो रहा है, जिसने छत्तीसगढ़ के चिरमिरी के 11 लोगों को बचाया। इनमें भाजपा से जुड़े जनप्रतिनिधि तक हैं। एक घोड़े वाला सैयद आदिल हुसैन आतंकियों से राइफल छीनने की कोशिश में मारा गया।

ये सारी बातें मुस्लिमों ने घृणा करने वाले कुनबे को कतई प्रभावित नहीं कर रही हैं। जो भी साम्प्रदायिक सौहार्द्र की बात कह रहा है, वही आलोचना का पात्र बन रहा है। ऐसे लोगों को देशद्रोही, राष्ट्रविरोधी, पाकिस्तानपरस्त, हिन्दूविरोधी आदि न जाने क्या-क्या कहा जा रहा है। ऐसा नहीं कि यह कोई पहली बार हो रहा है। देश में होने वाली प्रत्येक घटना पर ऐसा ही वैचारिक विभाजन और कटु मतभेद दिखाई पड़ता है। फर्क यह है कि इस बार उसका उफ़ान ज्यादा है, कुछ-कुछ 2019 में हुए पुलवामा कांड के वक्त जैसा। सरकार से पहलगाम की घटना पर सवाल करने वाले फिर से वैसे ही निशाने पर लिए जा रहे हैं, जैसे तीन तलाक, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने, राम मंदिर का फैसला, वक्फ़ कानून में संशोधन आदि के समय देखा गया था। वैसे तो लगभग हर महत्वपूर्ण मुद्दे पर सरकार समर्थकों एवं विरोधियों के बीच ठनती रहती है, लेकिन जो मसले साम्प्रदायिक हों, खासकर जिनमें हिन्दू व मुस्लिम दो पक्ष हों, वहां यह संघर्ष कुछ बड़ा ही स्वरूप धारण कर लेता है।

अगर यह युद्ध केवल सोशल मीडिया पर ही जारी रहता तो कोई बात नहीं रहती, लेकिन यह सड़कों पर उतर आया है। आगरा में गौरक्षा दल वालों ने गुलफाम नामक व्यक्ति की हत्या कर दी और उसके एक साथी सैफ पर फायर किया। भीड़ के नेताओं ने एक वीडियो में कहा कि वे ’26 के बदले 2600 को मारेंगे’। (वैसे पुलिस इसे पुराना वीडियो बता रही है)। जयपुर में विधायक बालमुकुन्द आचार्य के नेतृत्व में जामा मस्जिद में ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ के नारे लगाये गये तो वहीं अम्बाला में मुस्लिमों की दुकानों को तोड़ा गया, उनके ठेले पलटा दिये गये और श्रमिकों से मार-पीट की गयी। यहीं तीन कश्मीरी छात्रों को भी मारा गया जिन्हें गुरुद्वारा में शरण दी गयी। हाथरस में मंदिर बनाने वाले कारीगरों को काम से निकाल दिया गया तथा जोधपुर के जालोरी गेट चौराहे पर पुलिस के रहते मुसलमानों को मारने-काटने की धमकियां दी गयीं। गाजियाबाद के एक गांव में मुस्लिम रेहड़ीवाले को भगा दिया गया तो देहरादून में हिन्दू रक्षा दल ने वीडियो जारी किया कि कोई भी कश्मीरी मुसलमान शहर में नहीं दिखना चाहिये। पश्चिम बंगाल में एक लेडी डॉक्टर ने एक मुस्लिम महिला का इलाज करने से यह कहकर इंकार कर दिया कि ‘तुम मेरे धर्म वालों को मारते हो।’ महाराष्ट्र के मंत्री नीतेश राणे कहते हैं कि ‘जहां से सामान खरीदो, पहले उसका धर्म जान लो।’

पाकिस्तान और आतंकी जो चाहते थे (देश में साम्प्रदायिक टकराव), वैसा ही हो रहा है; और यह कर रहे हैं भाजपा-संघ के लोग, देश के मुसलमानों की कीमत पर, जो खुद को देशभक्त कहते हैं।

मुमकिन है कि भाजपा इस माहौल को बनाए रखना चाहेगी ताकि उसका सियासी लाभ कम से कम इस साल के अंत में होने वाले बिहार चुनाव में लिया जा सके।

 

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