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न्यायपालिका, मुख्य न्यायाधीश, संविधान और लोकतंत्र की क्या मोदीजी की खामोशी या ईशारे अवमानना ?

भारत के लोकतंत्र और संविधान पर सत्तारुढ़ भाजपा की तरफ से लगातार प्रहार हो रहे हैं। कभी विपक्ष तो कभी न्यायपालिका इन प्रहारों के सामने ढाल बनकर खड़े हो रहे हैं, ताकि भारत की इस अनमोल धरोहर को बचाकर रखा जाए।

भारत के लोकतंत्र और संविधान पर सत्तारुढ़ भाजपा की तरफ से लगातार प्रहार हो रहे हैं। कभी विपक्ष तो कभी न्यायपालिका इन प्रहारों के सामने ढाल बनकर खड़े हो रहे हैं, ताकि भारत की इस अनमोल धरोहर को बचाकर रखा जाए। लेकिन अब भाजपा ने विपक्ष के साथ-साथ न्यायपालिका को भी अपनी नफरती सोच और जुबान का निशाना बनाया है। बीते गुरुवार भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शीर्ष अदालत पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि ”हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें।…समय आ गया है जब हमारी तीन संस्थाएं – विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका फूलें-फलें… किसी एक की ओर से दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप चुनौती पैदा करता है, जो अच्छी बात नहीं है।” श्री धनखड़ ने यह टिप्पणी सर्वोच्च न्यायालय के ‘तमिलनाडु राज्य बनाम राज्यपाल’ फ़ैसले की आलोचना करते हुए की थी। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल करके वर्षों से लंबित 10 विधेयकों को राष्ट्रपति की ‘अनुमति प्रदान की गई’ मानकर पारित कर दिया। हालांकि श्री धनखड़ की इस टिप्पणी का एक कारण वक्फ संशोधन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट के सरकार से सवाल भी हो सकते हैं। क्योंकि इस अधिनियम के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने केंद्र सरकार से ऐसे सवाल किए जो भाजपा को नागवार गुजर रहे हैं।
जगदीप धनखड़ की टिप्पणी के बाद झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने शीर्ष अदालत और मुख्य न्यायाधीश पर बेहद गंभीर आरोप लगाए, उन्होंने कहा कि, च्च्देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट ज़िम्मेदार है। सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमा से बाहर जा रहा है। अगर हर बात के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना है, तो संसद और विधानसभा का कोई मतलब नहीं है, इसे बंद कर देना चाहिए।ज्ज् इसके साथ ही उन्होंने कहा, च्च्इस देश में जितने गृह युद्ध हो रहे हैं उसके ज़िम्मेदार केवल चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया संजीव खन्ना साहब हैं।ज्ज् इसके बाद भाजपा के राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा ने कहा कि भारत के संविधान के अनुसार, कोई भी लोकसभा और राज्यसभा को निर्देशित नहीं कर सकता है।

भाजपा के दो-दो सांसदों ने सीधे सर्वोच्च न्यायालय की ईमानदारी, लोकतंत्र और संविधान के लिए प्रतिबद्धता और एकनिष्ठता पर सवाल उठाए, लेकिन भाजपा ने इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इन दोनों पर कोई कार्रवाई नहीं की है, न ही प्रधानमंत्री या गृहमंत्री की तरफ से कोई खेद का वक्तव्य आया है। क्योंकि निशिकांत दुबे ने अगर सीजेआई संजीव खन्ना पर गृहयुद्ध भड़काने का आरोप लगाया है, तो उन्हें इसके सबूत देने चाहिए कि देश के कौन से हिस्से में उन्होंने गृहयुद्ध देखा है और गृहमंत्री, प्रधानमंत्री को यह गृहयुद्ध क्यों नहीं दिखा, अगर दिखा तो इसे रोकने के लिए उन्होंने क्या किया।

जाहिर है निशिकांत दुबे ने भाजपा आलाकमान के संरक्षण में ही ऐसे गंभीर आरोप लगाए हैं, हालांकि इस पर विपक्ष ने जब जवाबी हमले शुरु किए तो भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की सफाई आ गई कि पार्टी का इस बयान से कोई लेना देना नहीं है। जेपी नड्डा ने एक्स पर इसको लेकर लिखा, च्च्बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा का न्यायपालिका एवं देश के चीफ़ जस्टिस पर दिए गए बयान से भारतीय जनता पार्टी का कोई लेना–देना नहीं है. यह इनका व्यक्तिगत बयान है, लेकिन बीजेपी ऐसे बयानों से न तो कोई इत्तेफाक रखती है और न ही कभी भी ऐसे बयानों का समर्थन करती है. बीजेपी इन बयान को सिरे से खारिज करती है.’

उन्होंने लिखा, भारतीय जनता पार्टी ने सदैव ही न्यायपालिका का सम्मान किया है, उनके आदेशों और सुझावों को सहर्ष स्वीकार किया है क्योंकि, एक पार्टी के नाते हमारा मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय सहित देश की सभी अदालतें हमारे लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं तथा संविधान के संरक्षण का मजबूत आधार स्तंभ हैं. मैंने इन दोनों को और सभी को ऐसे बयान ना देने के लिए निर्देशित किया है।’

लेकिन श्री नड्डा के इस निर्देश के कुछ देर बाद निशिकांत दुबे का एक और बयान आ गया, जिसमें उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाय कुरैशी को च्चुनाव आयुक्त नहीं, मुस्लिम आयुक्तज् क़रार दिया और लिखा, च्आपके कार्यकाल में संथालपरगना में मतदाता सूची में बांग्लादेशी घुसपैठियों को बड़े पैमाने पर जोड़ा गया।ज् दरअसल एस वाय कुरैशी ने भी वक्फ संशोधन अधिनियम की आलोचना की थी, जिस पर निशिकांत दुबे ने बेतुके आरोप उन पर लगाए।

दरअसल ये सारी प्रतिक्रियाएं बता रही हैं कि सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में भाजपा के मनमुताबिक माहौल नहीं बना, तो भाजपा बौखला गई है। भाजपा यह समझना नहीं चाहती कि कोई भी राजनैतिक दल चाहे कितना भी शक्तिशाली हो या उसे बड़ा बहुमत मिला हो, लेकिन उसे भारत के लोगों के मौलिक अधिकारों के हनन का अधिकार नहीं मिल सकता। अगर सरकार ऐसा करती है तो फिर संविधान का अभिरक्षक होने के नाते सर्वोच्च न्यायालय का काम उसे रोकना है। इस समय शीर्ष अदालत इसी कर्तव्य को निभा रही है। बुलडोजर न्याय से लेकर नफरती भाषण, इलेक्टोरल बॉंड, चंडीगढ़ मेयर चुनाव में धांधली, राज्यपालों द्वारा शक्ति का दुरुपयोग ऐसे कई मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान की कसौटी पर मुद्दों को परख कर फैसले दिए। वक्फ संशोधन अधिनियम में भी वह यही काम कर रहा है।

जानकारों की राय में यह क़ानून ‘समानता का अधिकार’, ‘धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार’ और संस्कृति व शिक्षा संबंधी अधिकारों का उल्लंघन करता है। ये सभी अधिकार संविधान में मूल अधिकारों की श्रेणी में आते हैं। अल्पसंख्यक समुदाय इन्हीं अधिकारों की रक्षा के लिए अदालत गया है, जिससे सरकार असहज हो रही है। याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुनने और क़ानून को प्रथम दृष्टया देखने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश वाली पीठ ने इस क़ानून के अनुपालन पर 5 मई को होने वाली अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है। बीते बुधवार और गुरुवार को सुनवाई के दौरान अदालत ने सरकार से पूछा है कि सदियों पुराने ‘वक़्फ़ बाय यूजर’ के लिए पीड़ित पक्ष दस्तावेज कहाँ से लाएगा। न्यायालय ने समानता के अधिकार का हवाला देते हुए यह भी पूछा है कि जब मन्दिर के न्यासों में मुसलमान नहीं हो सकते तो वक़्फ़ बोर्ड में हिंदुओं को किस आधार पर जगह दी गई है?
इन्हीं सवालों पर भाजपा ऐसी बौखला गई है कि विपक्ष के बाद अब उसने सर्वोच्च न्यायालय को निशाने पर ले लिया है। अगर अदालत सरकार की मर्जी के हिसाब से चलती तो फिर निशिकांत दुबे ऐसे वक्तव्य नहीं देते। अब देखना ये है कि क्या निशिकांत दुबे पर कोई कड़ी कार्रवाई भाजपा करती है, या श्री मोदी ने अपने विरोधियों को निशाने पर लेने के लिए श्री दुबे के कंधों का इस्तेमाल किया है।

 

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