देश में गृहयुद्धों के लिए CJI जिम्मेदार: BJP नेता निशिकांत दुबे

निशिकांत दुबे ने CJI पर लगाए गंभीर आरोप
भारतीय जनता पार्टी के नेता निशिकांत दुबे ने शनिवार को देश में हो रहे “गृहयुद्धों” के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को जिम्मेदार ठहराया, जब तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेता कल्याण बनर्जी ने भाजपा नेता और वक्फ विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल के इस्तीफे की मांग की। निशिकांत दुबे ने मीडिया से कहा, “भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना इस देश में हो रहे सभी गृह युद्धों के लिए जिम्मेदार हैं।” भाजपा नेता ने आगे आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट इस देश को “अराजकता” की ओर ले जाना चाहता है।
दुबे ने कहा, “आप नियुक्ति प्राधिकारी को कैसे निर्देश दे सकते हैं? राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं। संसद इस देश का कानून बनाती है। आप उस संसद को निर्देश देंगे?…आपने नया कानून कैसे बनाया? किस कानून में लिखा है कि राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना है? इसका मतलब है कि आप इस देश को अराजकता की ओर ले जाना चाहते हैं। जब संसद बैठेगी, तो इस पर विस्तृत चर्चा होगी।”
उनकी यह टिप्पणी वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के बीच आई है। शुक्रवार को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेता कल्याण बनर्जी ने वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर भारतीय जनता पार्टी के नेता और वक्फ विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल की आलोचना की और उन्हें “अलोकतांत्रिक व्यक्ति” कहा। बनर्जी ने मीडिया से कहा, “उन्हें (जगदम्बिका पाल को) अपने घिनौने काम के कारण तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए। वह एक अलोकतांत्रिक व्यक्ति हैं। वक्फ अधिनियम केवल सदस्यों की संख्या के आधार पर पारित किया गया है। मैं आश्वासन दे सकता हूं कि इसे असंवैधानिक घोषित किया जाएगा।”
भारतीय जनता पार्टी के नेता और वक्फ विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदम्बिका पाल ने कहा कि अगर यह पाया जाता है कि संयुक्त संसदीय समिति द्वारा बनाई गई रिपोर्ट असंवैधानिक है तो वह अपने पद से इस्तीफा दे देंगे। जगदम्बिका पाल ने कहा, “मैंने पहले भी कहा है कि अगर हमारी ओर से बनाई गई रिपोर्ट असंवैधानिक है या धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करती है, तो मैं इस्तीफा दे दूंगा।”
उल्लेखनीय है कि केंद्र ने 17 अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था कि वह किसी भी ‘वक्फ-बाय-यूजर’ प्रावधान को रद्द नहीं करेगा और बोर्ड में किसी भी गैर-मुस्लिम सदस्य को शामिल नहीं करेगा। यह आश्वासन शीर्ष अदालत द्वारा कानून के उन हिस्सों पर रोक लगाने पर विचार करने के एक दिन बाद आया है। इस अधिनियम को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें कहा गया कि यह मुस्लिम समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण है तथा उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।