मुख्य न्यायाधीश के स्वर्णिम विचार पर आज के सत्ताधारी इन पर गौर करेंगे।

सत्ता और न्याय की आसंदी पर बैठे लोगों के प्रति आम जनता के डगमगाते विश्वास के गहरे संकट के बीच भारत के मुख्य न्यायाधीश ने एक मौजूं टिप्पणी की है
सत्ता और न्याय की आसंदी पर बैठे लोगों के प्रति आम जनता के डगमगाते विश्वास के गहरे संकट के बीच भारत के मुख्य न्यायाधीश ने एक मौजूं टिप्पणी की है। मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने कहा कि लोकतंत्र को बचाये रखने के लिए यह जरूरी है कि तर्कसंगत और अतर्कसंगत, दोनों तरह के विचारों को जगह दी जाये। दिन-ब-दिन होने वाली राजनीतिक चर्चाएं, आलोचनाएं और विरोधियों की आवाजें, एक अच्छी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं। इनका सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की ख़ूबसूरती इसी में है कि इस व्यवस्था में आम नागरिकों की भी एक भूमिका है।
सीजेआई रमन्ना ने 17वें पीडी देसाई मेमोरियल लेक्चर को संबोधित करते हुए कानूनी विद्वान जूलियस स्टोन के कथन को उद्धृत किया कि, हर कुछ वर्षों में एक बार शासक को बदलने का अधिकार, अपने आप में तानाशाही के खिलाफ सुरक्षा की गारंटी नहीं होनी चाहिए। इसके साथ ही न्यायपालिका की आजादी की हिमायत करते हुए उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए। इसे विधायिका या कार्यपालिका द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता, क्योंकि अगर ऐसा किया गया तो कानून का शासन छलावा बनकर रह जायेगा। सोशल मीडिया के प्रभाव में आकर मीडिया ट्रायल से बचने की सलाह जजों को देते हुए मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने कहा कि नये मीडिया टूल जिनमें किसी चीज को बढ़ा-चढ़ाकर बताने की क्षमता है, वे सही और गलत, अच्छे या बुरे और असली या नकली के बीच अंतर करने में असमर्थ हैं। इसलिए मीडिया ट्रायल, मामलों को तय करने में मार्गदर्शक कारक नहीं हो सकते। जजों को कभी भी भावुक राय से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
जस्टिस पीडी देसाई मेमोरियल ट्रस्ट के इस कार्यक्रम में व्याख्यान का विषय ‘कानून का शासन’ था। जिस पर अपने विचार रखते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आजादी के बाद से 17 आम चुनावों में जनता ने अपने कर्तव्यों को उचित रूप से निभाया है और अब उन लोगों की बारी है जो राज्य के प्रमुख अंगों का प्रबंधन कर रहे हैं कि वे इस पर विचार करें कि क्या वे संवैधानिक जनादेश पर खरा उतर रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश की यह टिप्पणी आज के राजनीतिक हालात पर बेहद प्रासंगिक लगती है।
पिछले सात सालों में सरकार पर लगातार यह आरोप लगते रहे हैं कि असहमति और विरोध की आवाज़ को दबाया जा रहा है। विपक्ष तो खैर सत्ताधीशों के निशाने पर रहता ही है, अब सरकार से असहमति रखने वालों की देशभक्ति पर संदेह व्यक्त करने की परिपाटी चल पड़ी है। पिछले कुछ बरसों में यूएपीए और एनएसए के तहत न जाने कितने मुकदमे दर्ज हुए, जिनमें दोषी कुछ ही लोग पाए गए, बाकी लोगों ने सरकार का विरोध करने का खामियाजा भुगता।
सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, लेखक ऐसे कितने ही लोगों ने अभिव्यक्ति की आजादी की कीमत चुकाई है। मीडिया का धर्म सत्ता के दबाव में आए बिना निष्पक्ष होकर अपनी राय देना है, लेकिन इस वक्त देश में राष्ट्रवादी मीडिया, गोदी मीडिया जैसी श्रेणियां बन गई हैं, जो यह दखिाती हैं कि देश में लोकतंत्र, समानता, न्याय, अभिव्यक्ति की आजादी, नैतिकता आदि के लिए नजरिया किस तरह बदल चुका है। ऐसे वक्त में मुख्य न्यायाधीश के उद्गार रेगिस्तान में झील मिलने के सुख देने के समान हैं।
24 अप्रैल को देश के 48वें मुख्य न्यायाधीश का पद संभालने वाले जस्टिस एन वी रमन्ना के आने के बाद से न्यायपालिका के प्रति लोगों का विश्वास और दृढ़ हुआ है। इस पद पर आने से पहले सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर भी जस्टिस एनवी रमन्ना ने कई अहम फैसले सुनाए हैं। वे तीन जजों की सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच के सदस्य थे, जिसने इंटरनेट को अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकार माना था। घरेलू महिलाओं के हक में जस्टिस रमन्ना ने कहा था कि घरेलू महिलाएं काम नहीं करतीं, आर्थिक योगदान नहीं देतीं, यह सोच ही गलत है। वर्षों से प्रचलित इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है। इनकी आय तय करना महत्वपूर्ण है।
मुख्य न्यायाधीश रहने के दौरान जस्टिस रंजन गोगोई पर लगे कथित यौन उत्पीड़न के मामले में आरोपों की जांच के लिए गठित समिति का हिस्सा बनने से जस्टिस एनवी रमन्ना ने इंकार कर दिया था, क्योंकि आरोप लगाने वाली महिला ने आपत्ति दर्ज करते हुए कहा था कि रंजन गोगोई और जस्टिस रमन्ना खास दोस्त हैं। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक समिति ने जस्टिस गोगोई पर लगे आरोपों को निराधार पाया था। इसी तरह जस्टिस एनवी रमन्ना ने एम नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से भी खुद को अलग कर लिया था, क्योंकि वह एम नागेश्वर की बेटी की शादी में शामिल हुए थे। ये कुछ उदाहरण बताते हैं कि न्याय की आसंदी पर बैठकर सत्यनिष्ठा और ईमानदारी को जस्टिस रमन्ना ने कितनी अहमियत दी है।
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने अक्टूबर 2020 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे को एक चिठ्ठी लखिकर जस्टिस एनवी रमन्ना पर कई तरह के आरोप लगाए थे। जिसके बाद एक कार्यक्रम में जस्टिस रमन्ना ने कहा था कि एक अच्छा जीवन कहे जाने के लिए व्यक्ति को असंख्य गुणों के साथ जीना होता है, जिसमें विनम्रता, धैर्य, दया, काम के प्रति नैतिकता और लगातार सीखने और सुधारने का उत्साह शामिल है। खासकर जजों के लिए सबसे महत्वपूर्ण ये है कि उन्हें अपने सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं करना चाहिए और अपने फैसलों में निडर होना चाहिए। जजों में ये खूबी होने चाहिए कि वे सभी तरह के दबावों को झेल सकें और विषम परिस्थितियों का डटकर मुकाबला कर सकें। जस्टिस रमन्ना ने यह भी कहा था कि न्यायपालिका की सबसे बड़ी ताकत उसमें लोगों का विश्वास है। विश्वास और स्वीकार्यता के लिए आदेश नहीं दिया जा सकता है, उन्हें अर्जित करना पड़ता है।