जज के घर करोड़ों का कैश, कितनों के साथ अन्याय! कौन हैं जस्टिस यशवंत वर्मा, क्या है जजों को हटाने का नियम?

Justice Yashwant Varma Case: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कैश मिलने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद कोर्ट स्थानांतरित करने की सिफारिश की. जस्टिस यशवंत वर्मा अक्टूबर 2021 में दिल्ली हाई कोर्ट के जज के तौर पर शपथ ली थी.
Justice Yashwant Varma Case
एक जज के घर करोड़ो का कैश मिलना महज एक खबर नहीं हो सकती है. ये कितना गंभीर है, इसका अंदाजा जब आप लगाएंगे और गहराई से सोचेंगे तो पता चलेगा कि इस दौरान कितनो के साथ अन्याय हुआ होगा? सवाल ये भी है कि क्या सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिर्फ दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा ट्रांसफर देकर ही चुप हो जाएगी? ऐसे में न्याय की एक उम्मीद लिए जनता कैसे न्यायाधीश के दर पर जाएगी? सवाल जितना गंभीर है, इस पर सोचने की जरूरत उतनी ही गहराई से है.
जस्टिस यशवंत वर्मा के घर आग लगती है और इसके बाद दमकल कर्मी उनके घर की आग बुझाने पहुंचते हैं और फिर जब संपत्ति के नुकसान की जांच होती है तो जज साहब के घर के एक कमरे से करोड़ों का कैश मिलता है. इसके बाद उनपर एक्शन लेते हुए भारत के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस यशवंत वर्मा के ट्रांसफर की सिफारिश केंद्र सरकार से की है. कौन हैं जस्टिस यशवंत वर्मा? जस्टिस यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था.
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से BCom (Hons) की डिग्री हासिल की और बाद में मध्य प्रदेश के रीवा यूनिवर्सिटी से LLB की डिग्री हासिल की. उन्होंने 8 अगस्त 1992 को एक वकील के रूप में नामांकन कराया. 13 अक्टूबर 2014 को उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किया गया और 1 फरवरी 2016 को उन्हें परमानेंट जज के रूप में प्रमोट किया गया. इसके बाद 11 अक्टूबर, 2021 को उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया. इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपने कानूनी करियर के दौरान जस्टिस यशवंत वर्मा ने संवैधानिक कानून, श्रम और औद्योगिक विधान, कॉर्पोरेट कानून, कराधान और संबंधित क्षेत्रों में एक्सपर्टिज हासिल की. उन्होंने 2006 से अपने प्रमोशन तक इलाहाबाद हाई कोर्ट के विशेष वकील के रूप में भी काम किया. इसके अतिरिक्त, न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किये जाने से पहले, जस्टिस यशवंत वर्मा ने 2012 से अगस्त 2013 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य स्थायी अधिवक्ता का पद संभाला था. क्या है जजों को हटाने का नियम? संविधान में प्रावधान है कि किसी जज को संसद के दोनों सदनों के पारित प्रस्ताव के आधार पर राष्ट्रपति के आदेश से ही हटाया जा सकता है. जजों को हटाने की प्रक्रिया न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 में विस्तार से बताई गई है.
अधिनियम के तहत, संसद के किसी भी सदन में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है. लोकसभा के कम से कम 100 सदस्य स्पीकर को हस्ताक्षरित नोटिस दे सकते हैं. राज्यसभा के कम से कम 50 सदस्य स्पीकर को हस्ताक्षरित नोटिस दे सकते हैं. स्पीकर, सदस्य से परामर्श कर सकते हैं और नोटिस को लेकर जांच कर सकते हैं। इसके आधार पर वह प्रस्ताव को स्वीकार करने या उसे स्वीकार करने से इनकार करने का फैसला कर सकते हैं. यदि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है तो स्पीकर शिकायत की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन करेगा. (i) एक सुप्रीम कोर्ट जज. (ii) एक उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश. (iii) एक प्रतिष्ठित न्यायविद समिति आरोप तय करेगी, जिसके आधार पर जांच की जाएगी. आरोपों की एक कॉपी जज को भेजी जाएगी, जिसके आधार पर वह अपना बचाव पक्ष रख सकते हैं. अपनी जांच पूरी करने के बाद समिति अपनी रिपोर्ट स्पीकर या चेयरमैन को सौंपेगी, जो रिपोर्ट को संसद के सदन के समक्ष रखेंगे. यदि रिपोर्ट में दुर्व्यवहार या गड़बड़ी का पता चलता है तो हटाने के प्रस्ताव पर विचार किया जाएगा और उस पर बहस की जाएगी. हटाने के प्रस्ताव को संसद के प्रत्येक सदन उस सदन की कुल सदस्यता के बहुमत से और उस सदन के उपस्थित और मतदान करने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत से स्वीकार किया जाना आवश्यक है. यदि प्रस्ताव इस बहुमत से स्वीकार हो जाता है तो प्रस्ताव को स्वीकृति के लिए दूसरे सदन में भेजा जाएगा. जब प्रस्ताव दोनों सदनों में पारित हो जाता है तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, जो न्यायाधीश को हटाने का आदेश जारी करेंगे.