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कॉरपोरेट-सियासत से आजादी की लड़ाई मीडिया को खुद लड़नी होगी : उड़ीसा हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस

Media Freedom: उड़ीसा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस. मुरलीधर ने कहा कि भारतीय मीडिया को अपनी स्वतंत्रता के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ा है, क्योंकि यह बड़े कॉर्पोरेट घरानों और राजनीतिक दलों के प्रभाव में है। उन्होंने मीडिया पर बढ़ती पाबंदियों और पेड न्यूज की समस्या पर प्रकाश डाला और कहा कि इससे निष्पक्ष पत्रकारिता खतरे में है।

 

नई दिल्ली

 

उड़ीसा हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस. मुरलीधर ने कहा कि भारत में मीडिया को अपनी आजादी के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ा है, क्योंकि मुख्यधारा के कई मीडिया संस्था या तो बड़े कॉर्पोरेट घरानों के स्वामित्व में हैं या फिर राजनीतिक दलों के नियंत्रण में हैं। जस्टिस (सेवानिवृत्त) मुरलीधर बी.जी. वर्गीज स्मृति व्याख्यान में ‘मीडिया, अदालत और अभिव्यक्ति की आजादी’ विषय पर बोल रहे थे।

उन्होंने कहा, मीडिया का मुख्य काम सत्ता को जवाबदेह बनाना है, लेकिन अगर वह कॉर्पोरेट और राजनीति के प्रभाव में रहेगा, तो वह निष्पक्ष पत्रकारिता नहीं कर पाएगा। पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने स्वतंत्र पत्रकारिता पर बढ़ती पाबंदियों और कॉर्पोरेट व राजनीतिक दखल की चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज के दौर में बड़े मीडिया हाउस पूरी तरह से व्यवसाय के सिद्धातों पर काम कर रहे हैं और सररकार के विज्ञापनों, लाइसेंस, कॉर्पोरेट प्रायोजन और विज्ञापनों पर निर्भर हैं।

हाल ही में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भारतीय मीडिया को मजबूत और समृद्ध बताया था। हालांकि, पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने इस कहा कि यह मीडिया के स्वतंत्र और स्वायत होने के समान नहीं है। उन्होंने कहा, आज मुख्यधारा का मीडिया पूरी तरह से व्यवसाय के आधार पर काम करता है। सरकारी विज्ञापनों, कॉर्पोरेट प्रायोजनों और राजनीतिक संरक्षण पर निर्भर करता है। उन्होंने आगे कहा, इस निर्भरता के कारण बड़े पैमाने पर सेल्फ सेंसरशिप, पेड न्यूज और लाभ की पत्रकारिता को सच के ऊपर रखने की प्रवृत्ति बढ़ गई है।

जस्टिस (सेवानिवृत्त) मुरलीधर ने जोसेफ पुलित्जर की चेतावनी का जिक्र करते हुए कहा, जब कोई प्रकाशक मीडिया को केवल एक व्यावसायिक उपक्रम के रूप में देखता है, तो वह अपनी नैतिक ताकत खो देता है। आज भारत में टीआरपी और कॉर्पोरेट फंडिंग की होड़ ने स्वतंत्र पत्रकारिता को गंभीर खतरे में डाल दिया है।

उन्होंने चिंता जताई की मुख्यधारा का मीडिया सत्ता के करीब होता जा रहा है। उन्होंने हाल ही में एक पैनल चर्चा का जिक्र किया, जिसमें सत्तारूढ़ दल के एक वरिष्ठ वकील और सांसद ने मीडिया की निष्पक्षता पर सवालों को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा कि मीडिया संस्थानों को सरकार समर्थन करना किसी स्वतंत्र चुनाव का परिणाम नहीं, बल्कि दबाव और विवशता का नतीजा है।

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