धर्म

बसौड़ा या शीतला सप्तमी व अष्टमी कब है, जानें पूजा मुहूर्त, विधि और क्यों खाते हैं बासी खाना

 होली के बाद शीतला सप्तमी व शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है. मान्यता है कि शीतला माता की पूजा करने से सभी तरह के रोग व कष्ट से मिलती है और शीतला माता के आशीर्वाद से आरोग्य की प्राप्ति होती है. शीतला सप्तमी व अष्टमी तिथि को बसौड़ा या बसोड़ा के नाम से भी जाना जाता है. आइए जानते हैं बसौड़ा को बासी भोजन क्यों किया जाता है…

हाइलाइट्स
  • शीतला सप्तमी 21 मार्च को मनाई जाएगी.
  • शीतला अष्टमी 22 मार्च को मनाई जाएगी.
  • इस दिन बासी भोजन का भोग लगाया जाता है.

होली के सात दिन बाद शीतला सप्तमी तो वहीं कुछ अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी को पर्व मनाते हैं. शीतला सप्तमी व अष्टमी को बसौड़ा या बसोड़ा भी कहा जाता है और इस दिन मां दुर्गा के अन्य स्वरूप माता शीतला की पूजा-अर्चना की जाती है. यह पर्व हर वर्ष चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन शीतला माता को बासी खाने का भोग लगाया जाता है. जिस तरह भद्रकाली माता असुरों का अंत करती हैं, उसी तरह शीतला माता सभी रोग व कष्ट रूपी असुरों का अंत करती हैं. शीतला सप्तमी व अष्टमी तिथि देश के अलग अलग भाग में शुक्ल व कृष्ण पक्ष को अलग अलग तिथियों यानी शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी को मनाते हैं लेकिन सभी का मूल स्वभाव एक ही होता है. आइए जानते हैं शीतला सप्तमी व अष्टमी कब है, पूजा मुहूर्त, पूजा विधि और क्यों खाया जाता है इस दिन बासी खाना…

शीतला सप्तमी कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, सप्तमी तिथि का प्रारंभ 21 मार्च दिन शुक्रवार को सुबह 2 बजकर 45 मिनट पर होगा और समापन सुबह 4 बजकर 23 मिनट को 22 मार्च शनिवार को होगा. उदया तिथि को देखते हुए जो लोग शीतला सप्तमी या बसौड़ा का पर्व करते हैं, वे 21 मार्च दिन शुक्रवार को शीतला माता की पूजा करें.

शीतला अष्टमी कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि का प्रारंभ 22 मार्च दिन शनिवार को 4 बजकर 23 मिनट पर होगा और समापन 23 मार्च दिन रविवार को सुबह 5 बजकर 23 मिनट पर होगा. उदया तिथि को देखते हुए जो लोग अष्टमी तिथि को शीतला माता की पूजा करते हैं, वे 22 मार्च दिन शनिवार को पूजा अर्चना करें.

शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – 22 मार्च, सुबह 5 बजकर 20 मिनट से 6 बजकर 33 मिनट तक

बसौड़ा का महत्व
शीतला सप्तमी व अष्टमी तिथि को शीतला माता को बासी खाने का भोग लगया जाता है और घर के सभी सदस्य पूरे दिन बासी खाना खाते हैं इसलिए इस पर्व को बसौड़ा या बसोड़ा कहा जाता है. यह पर्व शीत ऋतु का अंत और ग्रीष्‍मकाल के आरंभ का प्रतीक भी है. मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से शीतला माता की पूजा अर्चना करता है, उसके सभी रोग व कष्ट दूर हो जाते हैं और सुख, शांति, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है. शीतला माता की पूजा अर्चना करने से चिकन पॉक्स, खसरा, चेचक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्र विकार, पीतज्वर और दाहज्वर आदि रोग खत्म हो जाते हैं और मन व शरीर को रोगों से शीतलता मिलती है, ऐसी धार्मिक मान्यताएं हैं.

क्यों खाया जाता है बासी भोजन, जानें
शाीतला माता का भोग और घर के सदस्यों के लिए एक दिन पहले ही भोजन बनाकर तैयार कर लिया जाता है. फिर अगले दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर महिलाए स्नान व ध्यान करने के बाद शीतला माता की पूजा करती हैं और माता को बासी यानी ठंडे भोजन का भोग लगाती हैं. इस दिन घर के सभी सदस्य शीतल भोजन ही करते हैं क्योंकि इस दिन चूल्हा ना जलाने की परंपरा है. घर के सदस्यों को ताजी खाना बसौड़ा के अगले दिन ही यानी अगर सप्तमी तिथि को पूजा कर लेते हैं तो अष्टमी तिथि को अगर अष्टमी तिथि को पूजा कर रहे हैं तो नवमी तिथि को मिलता है. बिहार में बसौड़ा के एक दिन पहले कढ़ी-चावल खाने की परंपरा भी है.

 

यह पर्व ऋतुओं के बदलने को दर्शाता है इसलिए ऋतु बदलने पर ठंडा खाना खाने की परंपरा बनाई गई है. होली के बाद मौसम में बदलाव आने लगता है. ठंड पूरी तरह खत्म हो जाती है और गीष्म ऋतु का आगमन होता है. बसौड़ा के दिन मुख्य रूप से चावल व घी का भोग लगाया जाता है. मगर चावल को एक दिन पहले ही बनाकर रख लिया जाता है, इन चावल को गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं. मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी भोजन करने की मनाही होती है क्योंकि इस पर्व के बाद तेज गर्मी पड़ना शुरू हो जाती है और कई तरह की बीमारियों का खतरा भी बना रहता है.

शीतला सप्तमी-अष्टमी या बसौड़ा पूजा विधि
पूजा से एक दिन पहले मीठा भात, खाजा, नमक पारे, शक्कर पारे, पकौड़ी, पुए, बेसन चक्की, मगद, बाजरे की रोटी, सब्जी आदि चीजें बना लें और इन सभी को होली के दिन की बची हुई पांच गूलरी या उपले पूजा की थाली में रख दें. फिर बसौड़ा वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान व ध्यान करें और इस दिन सूर्य निकलने से पहले ही शीतला माता की पूजा की जाती है. शीतला माता की पूजा में सबसे पहले माता को जल अर्पित करें और फिर रोली, कुमकुम, सिंदूर, फूल, वस्त्र आदि चीजें अर्पित कर दें. फिर पूजा की थाली में से भोग का सामान अर्पित करें. फिर शीतला माता की बिना दीपक, धूप व अगरबत्ती के आरती करके आशीर्वाद प्राप्त करें और फिर जहां होलिका दहन वाली जगह पर भी पूजा करें. शीतला माता की पूजा में अग्नि का इस्तेमाल नहीं किया जाता.

 

 

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