नाटो से निकला अमेरिका तो बदल जाएगी दुनिया की तस्वीर, US का दबदबा होगा खत्म, ट्रंप अपने ही पैरों पर मारेंगे कुल्हाड़ी

अमेरिका में नाटो से बाहर निकलने की चर्चा जोरों पर है, खासकर ट्रंप और उनके समर्थकों के बीच. नाटो से अमेरिका के हटने पर यूरोप असुरक्षित हो जाएगा, रूस आक्रामक रुख अपनाएगा, और वैश्विक शक्ति संतुलन बदल सकता है.
- ट्रंप समर्थक नाटो छोड़ने की बात कह रहे हैं
- अगर अमेरिका नाटो छोड़ता है तो दुनिया बदल जाएगी
- इसमें सबसे बड़ा घाटा अमेरिका का ही होगा
वॉशिंगटन
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद नाटो के भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं. ट्रंप के सबसे खास एलन मस्क ने हाल ही में नाटो और यूएन से निकलने का समर्थन किया था. गौरतलब है कि मस्क अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जो नाटो से निकलने की बात करते हैं. ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के कई सांसद भी इस संगठन से निकलने का समर्थन करते हैं. कुछ का तो कहना है कि तुरंत इससे बाहर हो जाना चाहिए. ट्रंप भी नाटो के यूरोपीय सदस्यों पर बजट का हिस्सा न देने का आरोप लगाते हुए भड़कते रहे हैं. ऐसे में सवाल है कि क्या अमेरिका के राष्ट्रपति नाटो छोड़ सकते हैं और अगर ऐसा होता है तो अमेरिका और दुनिया पर क्या असर होगा?
नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (NATO) की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुई थी. अमेरिका के नेतृत्व में इसे सोवियत संघ (USSR) के बढ़ते प्रभाव और साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए बनाया गया था. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों को डर था कि सोवियत संघ यूरोप में अपना प्रभुत्व बढ़ा सकता है. नाटो में आर्टिकल-5 सबसे खास है, जिसके मुताबिक अगर किसी एक सदस्य देश पर हमला होता है, तो उसे सभी सदस्य देशों पर हमला माना जाएगा. नाटो में यूरोप के सबसे ज्यादा देश हैं, लेकिन इन्होंने लड़ाई हमेशा अमेरिका की लड़ी है. अमेरिका के 9/11 हमले के बाद अफगानिस्तान में नाटो की ही सेना लड़ी थी.
क्या नाटो से बाहर हो सकेगा अमेरिका?
नाटो से बाहर निकलना अमेरिका के लिए आसान नहीं है. साल 2023 में सीनेटर टिम केन और मार्को रुबियो ने कानून लिखा, जिसमें कहा गया कि नाटो से निकलने का किसी भी राष्ट्रपति का निर्णय या तो दो-तिहाई सीनेट की मंजूरी या कांग्रेस के एक अधिनियम के जरिए अधिकृत होना चाहिए. 2024 में इस नियम को पारित किया गया. यह कानून राष्ट्रपति की ओर से एकतरफा फैसले को रोकता है. हालांकि कई एक्सपर्ट्स यह भी कहते हैं कि कानून पूरी तरह ठोस नहीं है और अमेरिकी राष्ट्रपति इसे दरकिनार कर सकते हैं. हालांकि ट्रंप एक ऐसे राष्ट्रपति हैं जो अगर नाटो को छोड़ नहीं पाए तो वे इसे कमजोर जरूर कर देंगे. वहीं यूएन से निकलने की बात करें तो संयुक्त राष्ट्र चार्टर एक बाध्यकारी संधि है, जिसमें स्वैच्छिक वापसी का कोई प्रावधान नहीं है.
अगर अमेरिका नाटो से निकल गया तो क्या होगा?
भले ही नाटो से निकलना अमेरिका के लिए मुश्किल है. लेकिन एक वक्त के लिए मान लेते हैं कि मस्क का मंसूबा कामयाब हो जाता है. ऐसे में दुनिया पर क्या असर होगा?
- अगर अमेरिका NATO से बाहर निकलता है, तो यह न केवल यूरोप के लिए बल्कि अमेरिका के लिए भी मुश्किलें खड़ी करेगा. अमेरिका नाटो की रीढ़ है, जो सबसे ज्यादा सैनिक, हथियार और धन मुहैया कराता है. अमेरिका के बिना नाटो किसी काम का नहीं रहेगा. रूस सीधे नाटो से भिड़ जाएगा. अमेरिकन यूनिवर्सिटी के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर और NATO पर कई किताबों के लेखक जेम्स गोल्डगेयर का कहना है कि इसके परिणाम अराजक होंगे. क्योंकि इसका कोई विकल्प नहीं है. कोई वैकल्पिक कमांड या नेतृत्व नहीं है. यहां तक कि गोला-बारूद की आपूर्ति भी मुश्किल होगी. पूरा यूरोप तुरंत रूस के निशाने पर होगा.
- अगर यह सब वर्तमान में होता है तो यूक्रेन को मिलने वाली रक्षा आपूर्ति भी बंद हो जाएगी. क्योंकि अमेरिका के निकलते ही ज्यादातर देश अपने सैन्य संसाधनों को खुद के लिए बचाने में जुट जाएंगे.
- रूस की सीमा के पास मौजूद यूरोपीय देश ज्यादा असुरक्षित महसूस करेंगे. नाटो को एक कमजोर ताकत के रूप में देखते हुए पुतिन ज्यादा आक्रामक हो सकते हैं. इतना ही नहीं यूरोप अमेरिका से अलग अपना खुद का सैन्य गठबंधन बनाने पर जोर दे सकता है.
- नाटो छोड़ने से अमेरिका का ग्लोबल प्रभाव भी कम होगा. नाटो के बिना अमेरिका के लिए यूरोप, अफ्रीका या पश्चिम एशिया में मौजूदगी बनाए रखना मुश्किल होगा. यूरोप व्यापार और कूटनीति पर चीन या रूस के करीब जा सकता है. रूस को डराने के लिए यूरोप में जो सैन्य अड्डे अमेरिका ने बनाए हैं, उन्हें भी बंद ही करना पड़ जाएगा, जिससे अमेरिका की रणनीति कमजोर होगी.
- नाटो के सहयोगी अमेरिकी हथियार खरीदते हैं. नाटो से अगर अमेरिका निकला तो यह उसके रक्षा उद्योग के लिए अच्छा नहीं होगा. हथियारों की बिक्री कम हो सकती है, जिससे अमेरिका में नौकरियों पर भी प्रभाव पड़ेगा. यूरोप अमेरिका डॉलर का भी विकल्प तलाश सकता है.