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डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति बनते ही मोदीजी के शाशनमें असह्य हो चला है भारत का अपमान ?

दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बनकर आये डोनाल्ड ट्रम्प के फैसले भारत के लिये हानिकारक तो हैं ही, अपमानजनक भी हैं

 

दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बनकर आये डोनाल्ड ट्रम्प के फैसले भारत के लिये हानिकारक तो हैं ही, अपमानजनक भी हैं। यह ऐसे वक्त में हो रहा है जब ट्रम्प ने दुनिया भर के खिलाफ़ ट्रेड वार की शुरुआत कर दी है। कारोबारी पृष्ठभूमि से आये ट्रम्प की दिलचस्पी व्यवसायों के बूते दुनिया पर राज करने में है। वे जानते हैं अब विश्व विजेता सैन्य शक्ति के बल पर सम्भव नहीं, न परम्परागत साम्राज्यवादी तरीके से दुनिया मु_ी में की जा सकती है। उनके इन खतरनाक विचारों को दुनिया समझ चुकी है। कुछ देश नयी परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिये खुद को तैयार कर रहे हैं। चीन जैसा देश तो न केवल व्यवसाय के स्तर पर बल्कि ज़रूरत पड़ी तो उससे युद्ध के मैदान में भी दो-दो हाथ करने की तैयारी कर रहा है। बहुत छोटे-छोटे देश भी अपनी सम्प्रभुता व प्रतिष्ठा को बचाने के लिये कृतसंकल्पित हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को न तो खुद के सम्मान की चिंता है और न ही देश की प्रतिष्ठा की। इससे उत्साहित ट्रम्प हर रोज़ भारत का अपमान कर रहे हैं। अमेरिकी इरादों से निपटने की यहां कोई तैयारी नहीं दिखती।

शुरुआत करें तो ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह से। अमेरिकी राष्ट्रपति के वर्ष 2020 के चुनाव में पद की गरिमा और अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकोल को ताक पर रखकर मोदी ने अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान उनके पक्ष में यह कहकर प्रचार किया था कि ‘अब की बार ट्रम्प सरकार’। उसी ट्रम्प ने 2024 का चुनाव जीतने के बाद जब पद सम्हाला तो मोदी को आमंत्रित तक नहीं किया। भारत के दुश्मन देश चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग बुलाये गये, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर गये और यहां तक कि भारत के सर्वाधिक अमीरों में से एक मुकेश अंबानी सपत्नीक आमंत्रित थे। जयशंकर कई दिनों तक मोदी के लिये आमंत्रण पाने की आस व जुगाड़ में वाशिंगटन डीसी में बैठे रहे फिर भी उन्हें नहीं बुलाया गया। तो भी मोदी ने उन्हें बधाइयां देने के लिये उद्देश्यहीन यात्रा की। ट्रम्प ने द्वीपक्षीय अनुबन्ध के नाम पर अमेरिका से पुराने व पॉयलेटों के लिये खतरनाक हो चुके एफ-35 लड़ाकू विमान तथा महंगी दरों पर प्राकृतिक गैस व तेल खरीदी के लिये उनके दस्तखत ले लिये।

इतना ही नहीं, उनके पहुंचने के पहले से लेकर ट्रम्प भारत की आयात-निर्यात नीति की लगातार आलोचना यह कहकर कर रहे थे कि भारत दुनिया के उन देशों में से एक है जिसका शुल्क सबसे ज्यादा है जिसके चलते भारत के साथ व्यापार मुश्किल है। उन्होंने मोदी की उपस्थिति में साफ कर दिया कि वे ‘रेसिप्रोकल नीति’ अपनाएंगे। यानी भारत अमेरिकी वस्तुओं पर जितना शुल्क लगायेगा, उतना ही अमेरिका भी भारतीय वस्तुओं पर लगायेगा। इसके विपरीत अब ट्रम्प ने ऐलान कर दिया है कि वे विदेशी वस्तुओं पर 100 फीसदी शुल्क लगाएंगे, जिनमें भारत भी शामिल है। ट्रम्प की इस दादागिरी का जवाब देते हुए चीन ने भी बराबरी का शुल्क लगाने की घोषणा कर दी है जबकि भारत इसका जवाब कैसे देगा, यह अब तक स्पष्ट नहीं। व्यवसायिक हलकों में कहा जा रहा है कि इससे भारत के आयात-निर्यात को बड़ा झटका लग सकता है।

अपमान की अगली श्रृंखला में ट्रम्प ने कई देशों के अवैध प्रवासियों को वापस भेजने का बीड़ा उठाया। वे उनके बारे में खराब शब्दों का प्रयोग तक करते रहे हैं। कई देशों के लोगों को उन्होंने वापस भेजा लेकिन कोलंबिया, मैक्सिको आदि देशों ने अपने नागरिकों की सम्मानजनक वापसी कराई जबकि भारतीयों को हथकड़ी-जंजीरों में बांधकर भेजा गया। ट्रम्प को इसमें इसलिये कठिनाई नहीं आई क्योंकि स्वयं भारत सरकार ने उसके इस कार्य को जायज ठहराया। ट्रम्प व उनके खास दुनिया के सबसे बड़े कारोबारी एलन मस्क हर रोज दुनिया भर से अमेरिका आये अवैध प्रवासियों को गालियां देते हैं लेकिन सिर्फ भारतीयों को बेड़ियों में भेजते हैं क्योंकि बाकी देश और उनका नेतृत्व अपने नागरिकों के साथ खड़ा रहता है।

वैसे ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह में खालिस्तानी नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू को बुलाया गया जिसने अपने साथियों के साथ जयशंकर की उपस्थिति में खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाये व उसका झंडा फहराया। उनकी बढ़ती हिम्मत का ही परिणाम है कि गुरुवार की सुबह (भारतीय समयानुसार) अपनी ब्रिटेन यात्रा के दौरान जब जयशंकर लंदन के चैथम हाउस से निकले तो इन्हीं खालिस्तानियों ने उनके सामने तिरंगा फाड़ा तथा खालिस्तानी नारे लगाये। इस बात को यदि भारत की ओर से पहले ही अमेरिकी प्रशासन के सामने उठाया जाता तो अलगाववादियों के हौसले दुनिया के किसी भी हिस्से में इतने बुलन्द न हुए होते।

यह सारा कुछ उस समय हो रहा है जब मोदी खुद के गले में विश्वगुरु का तमगा लटकाये घूमते हैं और हर विदेशी राष्ट्राध्यक्ष से जबरन गले लिपटकर अपने भक्तों के आगे दुनिया के सबसे ताकतवर नेता की छवि गढ़ते रहते हैं। वैसे अब ट्रम्प भी मोदी की महत्वाकांक्षा, फितरत तथा खोखलेपन को जान चुके हैं और शायद उन्हें यह संदेश देना चाहते हैं कि दुनिया में रहेगा तो एक ही विश्वगुरु- अमेरिका!

मोदी बेशक अपना जितना चाहे अपमान करायें लेकिन भारत कभी इतना कमजोर नहीं रहा है। आजादी के तुरन्त बाद जब भारत की राजदूत से कहा गया कि ‘जो अमेरिका के साथ नहीं वह उसका दुश्मन है’, तब जीर्ण-शीर्ण भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें तत्काल वापस बुला लिया था। दोनों बड़ी महाशक्तियों- अमेरिका व तत्कालीन सोवियत संघ को नकार कर भारत के नेतृत्व में निर्गुट सवा सौ देशों का संगठन बनाया गया। अमेरिकी गेहूं न खाना पड़े इसलिये पूरा भारत सोमवार की शाम को चूल्हा नहीं जलाता था। 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध को रूकवाने के लिये अमेरिका को सातवां नहीं सत्तरवां बेड़ा भेजने के लिये ललकारने वाला यही देश था तथा इसी अमेरिका की धमकियों से डरे बिना दो बार परमाणु परीक्षण देखने वाली पीढ़ी अब भी जिंदा है। अमेरिका द्वारा सुपर कम्प्यूटर देने से इंकार करने पर जिस देश ने खुद का उपकरण तैयार कर लिया उसका आज असहनीय अपमान हो रहा है।

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