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‘दोषी सांसदों पर आजीवन प्रतिबंध लगाना संसद के अधिकार क्षेत्र में’, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि सांसदों की अयोग्यता पर फैसला करने का अधिकार पूरी तरह से संसद के पास है और यह न्यायिक समीक्षा से परे है।

 

नई दिल्ली

 

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर एक याचिका का विरोध किया है। दरअसल इस याचिका में दोषी सांसदों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि सांसदों की अयोग्यता पर फैसला करने का अधिकार पूरी तरह से संसद के पास है और यह न्यायिक समीक्षा से परे है।

केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कही ये बात
केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि क्या आजीवन प्रतिबंध लगाना सही है या नहीं, यह पूरी तरह से संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है। वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की है। साथ ही देश के एमपी एमएलए कोर्ट में मामलों की सुनवाई में तेजी लाने की मांग की गई। सर्वोच्च न्यायालय ने 10 फरवरी को धारा 144 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था। इस याचिका का केंद्र ने विरोध किया है। केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि जनप्रतिनिधि कानून 1951 की धारा 8 (1) के तहत दोषी नेताओं को दोषसिद्धि की तारीख से छह वर्षों के लिए या फिर जेल होने की स्थिति में रिहाई के बाद छह वर्षों तक अयोग्य ठहराया जा सकता है।

केंद्र सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि याचिकाकर्ता का संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 पर इस मामले में भरोसा पूरी तरह से गलत है। संविधान के अनुच्छेद 102 और 191 संसद के किसी भी सदन, विधान सभा या विधान परिषद की सदस्यता के लिए अयोग्यता से संबंधित हैं। केंद्र ने कहा कि अनुच्छेद 102 और 191 के खंड (ई) संसद को अयोग्यता को नियंत्रित करने वाले कानून बनाने की शक्ति प्रदान करते हैं और इसी शक्ति का प्रयोग करते हुए 1951 का अधिनियम बनाया गया था।

 

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