अमेरिका से भारतीयों का पलायन : एक दशक में क्या बदला मोदीजी के शाशनमें ये क्या हो रहा है ?

राज्यसभा में सपा प्रमुख और सांसद अखिलेश यादव ने फ्रांस और अमेरिका की यात्रा पर निकले नरेन्द्र मोदी पर एक जबरदस्त तंज कसा
राज्यसभा में सपा प्रमुख और सांसद अखिलेश यादव ने फ्रांस और अमेरिका की यात्रा पर निकले नरेन्द्र मोदी पर एक जबरदस्त तंज कसा। उन्होंने कहा कि पिछली अमेरिका यात्रा में आप हीरा लेकर गए थे, इस बार आपको सोने की जंज़ीर लेकर जाना चाहिए था, ताकि उसे देखकर डोनाल्ड ट्रंप को कोई दूसरी जंज़ीर याद आए। उन्होंने यह भी कहा कि आप लौटते में अपने जहाज में न सही, दूसरे जहाज में कुछ महिलाओं और बच्चों को साथ ले आएं, ताकि कम से कम कोई सम्मानजनक तरीके से वापस आ जाए।
तंज के रूप में ही सही लेकिन सपा सांसद ने एक महत्वपूर्ण बिंदु सदन में उठाया और इससे पहले भी कुछ दिनों पहले संसद के बाहर विपक्षी सांसदों ने हथकड़ियों के साथ मोदी सरकार के सामने प्रदर्शन किया था, ताकि सरकार भारत और भारतीय नागरिकों के अपमान को अमेरिका के सामने पुरजोर तरीके से उठाए। हालांकि अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे भारतीयों को हाल ही में जिस अमानवीय तरीके से ट्रम्प सरकार ने वापस भेजा है, मोदी समर्थक उसे न केवल जायज ठहरा रहे हैं, बल्कि वे उन भारतीयों को ‘ड्रग तस्कर’ तक कहने से भी नहीं हिचकिचा रहे। सेना के जहाज़ में बेड़ी-हथकड़ी पहनाकर बैठाना, उन्हें भूखा-प्यासा रखना, पेशाब-पाखाने के लिए घसीट कर ले जाना – इन सब तौर-तरीकों पर जब न केवल बुद्धिजीवियों और विपक्ष के नेताओं ने, बल्कि आम जनता ने भी सवाल उठाये तो उन्हें भी तथाकथित अपराधियों का समर्थक बता दिया गया। और भी कई तरह के कुतर्क अमरीकी सरकार की इस कार्रवाई के पक्ष में गढ़ लिये गये हैं।
इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकतीं कि किसी भी देश में बिना इजाज़त जाना और रहना वहां के कानून के मुताबिक अपराध ही है, लेकिन इस सवाल का कोई जवाब अब तक नहीं मिला है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने जब अमेरिका में गैर कानूनी ढंग से रह रहे प्रवासियों को वापस भेजने का खुला ऐलान कर ही दिया था तो भारत सरकार ने इस बारे में कोई पूछताछ क्यों नहीं की। जब कोलम्बिया और मैक्सिको जैसे छोटे-छोटे देशों ने ट्रम्प की कार्रवाई का विरोध किया तो भारत सरकार चुप क्यों रह गई और क्यों पूरी दुनिया के सामने देश को शर्मसार होने दिया। आखिर क्यों विदेश मंत्री ने लचर सी प्रतिक्रिया दी कि ये तो अमेरिका का ‘स्टैंडर्ड प्रोसीजर’ है और पहले भी ऐसा होता आया है।
क्या विदेश मंत्री महोदय भूल गये कि बाइडेन की सरकार ने भी तकरीबन डेढ़ हज़ार भारतीय प्रवासियों को वापस भेजा था, लेकिन उसकी कहीं कोई चर्चा नहीं हुई। ट्रम्प ने अपना राक्षसी चेहरा न दिखाया होता तो देश-दुनिया को बाइडेन की कार्रवाई का शायद पता ही नहीं चलता। भारत सरकार से पूछा जाना चाहिये कि जिस देश में लावारिस लाशों को भी सम्मान दिया जाता है, उस देश के नागरिकों के साथ पशुवत व्यवहार उसने कैसे स्वीकार कर लिया। अभी एक साल भी नहीं हुआ है जब मानवाधिकारों के उल्लंघन पर अमेरिकी रिपोर्ट को भारत ने खारिज कर दिया था। तो फिर अमेरिका द्वारा भारतीय नागरिकों के मानवाधिकारों के उल्लंघन को भारत ने कैसे स्वीकार कर लिया ?
मोदी सरकार के शुतुरमुर्गी रवैये के दो कारण हो सकते हैं। एक तो उसके शब्दकोश से ‘मानवीय गरिमा’ शब्द गायब हो चुका है। दूसरे, अपने ही देश में अपने ही नागरिकों के साथ वह जिस तरह से अब तक पेश आती रही है, वह दूसरे किसी देश में या दूसरे किसी देश द्वारा भारतीयों के साथ किये जाने वाले अमानवीय व्यवहार के खिलाफ़ बोलने का नैतिक अधिकार भी खो चुकी है। अल्पसंख्यकों, मजदूरों, किसानों और बेरोजगारों के प्रति सरकार और उसके समर्थकों की नफ़रती सोच जब तब उजागर होती रहती है। सबसे बड़ा और ज्वलंत उदाहरण तो पिछले डेढ़ साल से सुलगता मणिपुर ही है, जहां मुख्यमंत्री का इस्तीफा तो हो गया है, लेकिन प्रधानमंत्री के पदार्पण की आस अब भी नहीं है।
वापस भेजे गये भारतीयों के बारे में पूछा जा रहा है कि आखिर वे वहां गये ही क्यों थे। सवाल दरअसल ये होना चाहिये कि जब देश में विकास के बड़े-बड़े दावे किये जा रहे हों, विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का तमगा सीने पर लटकाया जा रहा हो तो बड़ी संख्या में लोग देश से पलायन क्यों कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि लगभग सवा 7 लाख भारतीय अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे हैं, जिनमें से ज़्यादातर पंजाब और गुजरात से हैं। साल 2023 के आखिर में फ्रांस में ईंधन लेने के लिए रुके एक विमान में सवार 60 गुजरातियों को वापस भारत भेज गया था। वे सैलानी बनकर निकारागुआ के रास्ते अमेरिका में घुसना चाहते थे।
अमेरिका के होमलैण्ड सिक्योरिटी डिपार्टमेन्ट के अंतर्गत काम करने वाली यूएस कस्टम एंड बॉर्डर प्रोटेक्शन पेट्रोल द्वारा विदेशी नागरिकों के आंकड़े हर साल जारी किये जाते हैं, जो गैर कानूनी तरीके से अमेरिका में प्रवेश करते हुए पकड़े जाते हैं। उसके अनुसार ऐसे भारतीय नागरिकों की संख्या 2012 में 1 हज़ार से काफ़ी कम थी, जो 2023 में लगभग 1 लाख हो गई। अक्टूबर 2023 से सितंबर 2024 के बीच उसने 90 हज़ार से भी ज़्यादा भारतीयों को अमेरिका में बिना इजाज़त घुसते हुए गिरफ़्तार किया। इनमें से आधे कनाडा की और बाकी मेक्सिको की सीमा पर अमेरिकी सीमा सुरक्षा बल द्वारा गिरफ़्त में लिये गये।
कानूनी तरीके से विदेश जाकर बसने वाले भारतीयों की संख्या भी देखें तो विदेश मंत्रालय के ही आंकड़ों के अनुसार 2014 से 2023 के बीच 10 लाख से ज़्यादा लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी। साल 2022 और 23 में तो नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की संख्या तकरीबन 5 लाख थी। हालांकि, 2014 से पहले भी नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या हर साल करीब-करीब डेढ़ लाख ही थी। साल 2015 में दक्षिण कोरिया प्रवास में नरेंद्र मोदी ने तंज किया था कि पिछली सरकारों की नीतियों के कारण लोग देश छोड़कर जाना चाहते थे। उन्होंने कहा था कि अब लोग विदेशों के बजाय भारत आकर रहना पसंद करते हैं, भले ही विदेश की तुलना में उनकी कमाई यहां कम हो।
मोदी जी ने तब यह भी कहा था कि देश का मिजाज़ बदल गया है। सोचने की बात है कि 2015 से 2025 तक एक दशक में क्या बदला है। क्या इस बदलाव में यह संभव है कि नरेन्द्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति के समक्ष भारतीयों को हथकड़ियों के साथ वापस भेजने पर आपत्ति उठा सकें।