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हिंसक हुई राजनीतिक रैली में शामिल होने के लिए किसी शख्स को नजरबंद नहीं कर सकते : बॉम्बे हाईकोर्ट

उक्त एफआईआर निर्विवाद रूप से मराठा आरक्षण के समर्थन में हुए विरोध प्रदर्शन के संबंध में दर्ज की गई थीं। ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता (निखिल रंजवान) एक राजनीतिक रैली का हिस्सा थे, जिसने भयंकर हिंसक रूप ले लिया।

 

मुंबई

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने कहा कि किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए निवारक नजरबंदी में रखना क्योंकि वह एक राजनीतिक रैली में शामिल हुआ जो बाद में हिंसक हो गई, स्पष्ट रूप से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को इस तरह सीमित करना उचित नहीं ठहराया जा सकता।

जस्टिस विभा कंकनवाड़ी और जस्टिस रोहित जोशी की खंडपीठ ने मजिस्ट्रेट अदालत व राज्य सरकार के 2024 के आदेश को रद्द कर दिया। इस आदेश में 20 वर्षीय छात्र को 2023 में मरथा आरक्षण के लिए आंदोलन में भाग लेने के लिए उसके खिलाफ दर्ज दो प्राथमिकियों के आधार पर निवारक नजरबंदी में रखा गया था।

पीठ ने 14 जनवरी के अपने आदेश में कहा कि उक्त एफआईआर निर्विवाद रूप से मराठा आरक्षण के समर्थन में हुए विरोध प्रदर्शन के संबंध में दर्ज की गई थीं। ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता (निखिल रंजवान) एक राजनीतिक रैली का हिस्सा थे, जिसने भयंकर हिंसक रूप ले लिया।

 

पीठ ने कहा, रैली में 600 से अधिक लोगों ने भाग लिया था। पुलिस ने 50 लोगों की पहचान की है और दो प्राथमिकियों के आधार पर निवारक हिरासत का आदेश देना एक कठोर कार्रवाई है। ऐसा भी कोई दावा नहीं किया गया कि याचिकाकर्ता ने ही रैली/आंदोलन का आयोजन किया था। पीठ ने कहा कि यह पूरी तरह संभव है कि जब प्रदर्शन हिंसक हो गया तो आवेश में आकर याचिकाकर्ता ने कुछ गलत काम कर दिया। हालांकि, यह अपने आप में उसे निवारक नजरबंदी में रखकर उसकी स्वतंत्रता को बाधित करने का आधार नहीं हो सकता।

अदालत ने कहा कि, यह बात सही है कि सीसीटीवी फुटेज में दिख रहा है कि, याचिकाकर्ता हिंसा के दौरान एक दुकान पर पत्थर फेंक रहा है। पंचनामा से पता चलता है कि इस तरह के कृत्य अन्य व्यक्तियों द्वारा भी किए गए। यह बहुत संभव है कि जब विरोध प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया तो याचिकाकर्ता ने क्षणिक आवेश में आकर कुछ गलत किया हो। हालांकि, यह अपने आप में उसे निवारक हिरासत में रखकर उसकी स्वतंत्रता को कम करने का आधार नहीं हो सकता है।

 

 

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