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सुनो मोदी सरकार! प्लीज टैक्स कम करो या बदल दो मिडल क्लास की परिभाषा, अब तो 10 लाख कमाने वाला भी हो गया गरीब

देश में मिडल क्लास वर्ग के हाथों में लाखों कमाने के बाद भी पैसा नहीं बच रहा है. सैलरी पर इनकम टैक्स लगता और बचा हुआ पैसा जरूरी कामों पर खर्च हो जाता है. घरेलू बचत कम होती जा रही है.

Middle Class Income & Tax: भारत में एक तरफ अमीर है तो दूसरी ओर गरीब और इन दोनों के बीच है आम आदमी यानी मिडल क्लास मैन…सालों से सरकार का फोकस गरीब, किसान और कॉरपोरेट्स पर रहा है. शायद यही वजह है कि मिडल क्लास को हर बार अनदेखा कर दिया जाता है. हर साल बजट में गरीबों व किसानों के कल्याण और कॉरपोरेट्स के लिए निवेश बढ़ाने को लेकर आकर्षक योजनाओं को ऐलान किया जाता है, साथ ही इन दोनों वर्गों को कई तरह की छूट और राहत भी मिलती है, और मिडल क्लास मैन हाथ मलते रह जाता है. आम आदमी की सरकार से कोई बड़ी चाहत नहीं है, वह हर बार सिर्फ इनकम टैक्स में छूट व राहत की उम्मीद करता है क्योंकि, बढ़ती महंगाई व खर्चों के कारण जेब में कुछ बचता नहीं है. पहले कमाई पर इनकम टैक्स, फिर वस्तु और सेवाओं पर कर और बाद में जो पैसा बचा उससे अगर कहीं निवेश किया तो उस पर मिलने वाले रिटर्न पर भी टैक्स.

खैर, आम बजट 2025 आने वाला है और एक बार फिर से मिडल क्लास वर्ग सरकार की ओर देख रहा है कि शायद इस बार भी इनकम टैक्स के मोर्चे पर राहत मिल जाए. अब यह मांग जोर पकड़ने लगी है कि बजट में केवल गरीबों पर ध्यान केंद्रित करने की राजनीतिक धारणा से हटकर सरकार को मध्यम वर्ग परिवारों पर फोकस करना चाहिए. इसमें सबसे पहले सरकार को इस बात पर प्राथमिकता देनी चाहिए कि आय के आधार पर मिडल क्लास वर्ग की परिभाषा को फिर से परिभाषित किया जाए.

क्या है मिडल क्लास की परिभाषा

दरअसल, देश में सबसे बड़ी आबादी मध्यमवर्गीय परिवारों की है. इसमें भी एक महत्वपूर्ण मध्यम वर्ग आय की वर्तमान परिभाषाओं से ज्यादा कमा रहा है, लेकिन जीवन के खर्चों को शामिल करने के बाद किसी भी तरह से वास्तविक रूप में अमीर नहीं है. आलम यह है कि शहरों में 10 लाख रुपये कमाने वाले व्यक्ति के पास भी जीवन से जुड़े खर्चों को पूरा करने के बाद ज्यादा कुछ नहीं बचता है.

सबसे पहले, सरकार को इस बारे में गहराई से सोचने की ज़रूरत है कि वह मध्यम वर्ग को क्या मानती है. मौजूदा समय में भारतीय मध्यम वर्ग को ऐसे व्यक्तियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनकी आय प्रति वर्ष 3.1 लाख रुपये से लेकर 10 लाख रुपये प्रति वर्ष होती है. 10 लाख रुपये से ज्यादा की आय पर 20 प्रतिशत टैक्स स्लैब आते हैं. ऐसे में 10 लाख रुपये कमाने वाली व्यक्ति की आय का एक अच्छा-खास हिस्सा इनकम टैक्स में चला जाता है.

टैक्स और जरूरी खर्च में खत्म हो जाती सैलरी

2023-24 के लिए घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण से पता चलता है कि औसत शहरी परिवार अपने कुल मासिक खर्च का लगभग 40 प्रतिशत भोजन पर खर्च करता है. इसके अलावा, शिक्षा, स्वास्थ्य, वाहन किराया, ईंधन और परिवहन पर लगभग 25 प्रतिशत खर्च हो जाता है. ऐसे में कमाई का 65 प्रतिशत हिस्सा खर्च हो जाता है. इसके अलावा, इमरजेंसी खर्च अलग होते हैं. ऐसे में देखा जाए तो 10 लाख रुपये सालाना कमाने वाले मिडल क्लास मैन के पास ज्यादा पैसा नहीं बचता है.

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