‘एक देश, एक चुनाव’ में मिली कामयाबी तो क्या उसके बाद आएगा ‘एक देश-एक वर्दी’

केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने मंगलवार को लोकसभा में ‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए 129वां संविधान संशोधन बिल पेश किया। इसके बाद संसद में खूब हंगामा हुआ। कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने इस बिल का विरोध किया। बिल को असंवैधानिक बताते हुए इसे तुरंत वापस लेने की मांग की। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, यह बिल जब कैबिनेट में आया था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजना चाहिए। कानून मंत्री ऐसा प्रस्ताव कर सकते हैं। बाद में इस बिल को जेपीसी में भेज दिया गया है। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुलिस के लिए ‘वन नेशन, वन यूनिफॉर्म’ का विचार दिया था। जानकारों का कहना है कि अगर देश में ‘एक देश, एक चुनाव’ की प्रक्रिया लागू कराने में केंद्र सरकार को सफलता मिलती है तो ‘वन नेशन, वन यूनिफॉर्म’ की अवधारणा भी आगे बढ़ सकती है।
बता दें कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने लोकसभा चुनावों के एलान से पहले मार्च में ‘एक देश, एक चुनाव’ से जुड़ी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। अक्तूबर 2022 में पीएम मोदी ने हरियाणा के सूरजकुंड में आयोजित चिंतन शिविर में ‘एक पुलिस, एक वर्दी’ का विचार दिया था। विभिन्न राज्यों के गृह मंत्रियों, गृह सचिवों और शीर्ष पुलिस अधिकारियों के समक्ष पीएम मोदी ने कहा था, ‘पुलिस के लिए ‘वन नेशन, वन यूनिफॉर्म’ सिर्फ एक विचार है। इसे राज्यों पर थोपा नहीं जा रहा है। पांच, पचास या सौ वर्षों में इस बाबत आगे बढ़ा जा सकता है। इसके साथ ही पीएम मोदी ने कहा था कि सभी राज्यों को इस पर विचार करना चाहिए।
उसके बाद संसद में भी यह सवाल पूछा गया। जब पीएम मोदी ने देश के समक्ष ‘एक देश-एक वर्दी’ का विचार रखा तो उस पर गंभीरता से चर्चा होने लगी। पुलिस एवं सुरक्षा बलों के बीच एक बहस चालू हो गई। कई सांसदों ने इस बाबत सरकार से सवाल किया था। भारत में ‘एक देश-एक वर्दी’ का फॉर्मूला लागू होगा या नहीं, इस बाबत एक-दो नहीं, बल्कि लोकसभा में सात सांसदों ने यह सवाल पूछा था। इन सांसदों ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से पूछा था कि ‘एक देश-एक वर्दी’ के लिए क्या रूपरेखा तैयार की गई है। क्या इस संबंध में राज्य सरकारों के साथ कोई परामर्श किया गया है। इसका उत्तर देते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था, ‘पुलिस’, राज्य का विषय है। राज्यों की पुलिस के लिए एक समान वर्दी के मुद्दे पर विचार करने के मकसद से राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के गृह मंत्रियों के चिंतन शिविर में चर्चा की गई थी।
लोकसभा सांसद बिद्युत बरन महतो, श्रीरंग आप्पा बारणे, धैर्यशील संभाजीराव माणे, संजय सदाशिवराव मांडलिक, प्रतापराव जाधव, सुब्रत पाठक और सुधीर गुप्ता ने पूछा था, क्या सरकार का ‘एक देश-एक वर्दी’ की अवधारणा के माध्यम से राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों में पुलिस व सुरक्षा बलों के ड्रेस कोड में एकरूपता लाने का विचार है। क्या सरकार ने इस संबंध में सामने आ रही चुनौतियों का अध्ययन किया है और इसके लिए कोई रुपरेखा तैयार की गई है। क्या केंद्र सरकार ने इस संबंध में राज्य सरकारों के साथ कोई परामर्श किया है। यदि ऐसा है तो उसका ब्यौरा क्या है। विभिन्न राज्य सरकारों की क्या प्रतिक्रिया है। क्या प्रभावी पुलिसिंग के लिए पुराने कानूनों की समीक्षा और संशोधन करने का कोई विचार है। मानवीय इंटेलिजेंस को मजबूती प्रदान करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। सांसदों ने पूछा, क्या सरकार का पूरे देश में ‘एक समान कानून और व्यवस्था नीति’ लागू करने का भी विचार है।
सांसदों द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि ‘पुलिस’, राज्य का विषय है। राज्यों की पुलिस के लिए एक समान वर्दी के मुद्दे पर विचार करने के मकसद से राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के गृह मंत्रियों के चिंतन शिविर में चर्चा की गई थी, ताकि कानून प्रवर्तन के लिए पुलिस को समान पहचान की जा सके, जिससे नागरिक देश में कहीं भी पुलिस कार्मिकों की पहचान कर सकें।
‘पुलिस’ राज्य का विषय होने के नाते, राज्यों की वर्दी के हिस्से के रूप में उनका अपना प्रतीक और बैज रख सकते हैं। बतौर नित्यानंद राय, राज्यों के पुलिस बल मौजूदा विधिक और संस्थागत ढांचे के अंतर्गत कार्य करते हैं। मौजूदा नियमों की समीक्षा और कार्यात्मक आवश्यकता पर इसका संशोधन एक सतत प्रक्रिया है। गृह राज्य मंत्री ने बताया था, हालांकि पुलिस राज्य का विषय है, इसलिए पुलिस बल को कुशल एवं योग्य बनाने और उनकी कार्यप्रणाली को अधिक प्रभावकारी एवं पारदर्शी बनाने की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों एवं संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन की है।
‘बीएसएफ’ के पूर्व एडीजी एसके सूद का कहना था, यह उतना आसान भी नहीं है। किसी भी पुलिस या बल का ‘नाम/निशान’, उसके कार्मिकों के दिल में बसता है। वैसे भी कानून व्यवस्था, राज्य का विषय है, इसलिए इस संबंध में किसी अंतिम निर्णय पर पहुंचना इतना आसान नहीं है। ये भी देखना होगा कि एक वर्दी होने पर किसी भी राज्य की पुलिस दूसरे राज्य में बिना किसी प्रोटोकॉल को फॉलो किए घुस सकती है। अपराधी को कौन पकड़ ले गया, इस बाबत पड़ोसी राज्यों की पुलिस में आपसी टकराव संभव है। ऐसे में ‘वन नेशन, वन यूनिफॉर्म’ की अवधारणा पर गहराई से विचार करने की जरूरत है।
बतौर एसके सूद, आज भी अधिकांश राज्यों में पुलिस की खाकी वर्दी है। केवल कंधे पर लगे बैज, बेल्ट या टोपी, ही तो अलग होती है। इससे तो पुलिस कहीं कमजोर नहीं पड़ती। किसी राज्य में पुलिस की छवि खराब है या पुलिस सुधारों की प्रक्रिया पर काम नहीं हो रहा है तो उस दिशा में पहल करनी जरूरी है। केवल वर्दी एक जैसी करने से क्या होगा। जिस बात पर चिंतन होना चाहिए कि आज भी आम लोगों का पुलिस पर भरोसा क्यों नहीं बन पा रहा है, इस दिशा में कोई काम नहीं हो रहा। कश्मीर में तैनात पुलिस कर्मी और तमिलनाडु पुलिस की वर्दी एक जैसी नहीं हो सकती। विभिन्न पुलिस बलों और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में कई स्पेशलाइज्ड यूनिट होती हैं। मसलन कमांडो, स्पेशल सेल, आर्म्ड पुलिस व यातायात पुलिस की अपनी अलग पहचान है।
पुलिस बलों के रैंक व बैज अलग होते हैं।
नाम और निशान का बहुत महत्व होता है। कोई भी जवान इन दोनों बातों को अपने सीने से लगाकर रखता है। विभिन्न बलों में वर्दी सजाने की एक परंपरा होती है। हर कोई अपनी वर्दी को बेहतर बनाने का प्रयास करता है। जैसे पंजाब पुलिस की तर्ज पर दिल्ली पुलिस ने भी अपने वर्दी के सामने वाले हिस्से पर बैज लगा लिया है। बतौर एसके सूद, अगर सब कुछ एक समान कर पुलिस को ‘इंडियन पुलिस’ कहा जाएगा तो उसके बाद राज्यों की पुलिस के बीच टकराव संभव है। एक राज्य में दूसरे प्रदेश के अपराधी छिपते हैं। यहां पर दिल्ली-एनसीआर को ही लें। अगर एक जैसी वर्दी हुई तो दिल्ली, हरियाणा और यूपी के अलावा राजस्थान पुलिस किसी भी आरोपी को अपनी मनमर्जी से पकड़ने के लिए आ सकती है।
अगर कहीं गोली चलने जैसी अप्रिय घटना हो गई तो केवल कंधे के बैज से यह पता लगाना मुश्किल हो जाएगा कि वह पुलिस टीम किस राज्य से आई थी। आरोपी को किस राज्य की पुलिस ने अरेस्ट किया है, यह पता लगाना आसान नहीं होगा। कई बार पुलिस के वेश में अपराधी ही किसी बड़ी वारदात को अंजाम दे सकते हैं। जीरो एफआईआर की आड़ में पुलिस बलों के बीच एक नई टकराहट शुरू हो सकती है।